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'पतंग' से मिल रहा उड़ने का हौसला

शैलेन्द्र सिंह, नई दिल्ली देशभर के स्कूलों में शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के अंतर्गत 25 फीसद ग

By Edited By: Published: Fri, 04 Sep 2015 10:35 PM (IST)Updated: Fri, 04 Sep 2015 10:35 PM (IST)
'पतंग' से मिल रहा उड़ने का हौसला

शैलेन्द्र सिंह, नई दिल्ली

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देशभर के स्कूलों में शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के अंतर्गत 25 फीसद गरीबी कोटा लागू कर दिया गया है। इसका ही परिणाम है कि गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों के लिए आज निजी स्कूलों के दरवाजे खुले हैं। बावजूद इसके अभी भी अध्ययन व सामाजिक स्तर के मामले में सामान्य श्रेणी के विद्यार्थियों से ये बच्चे बेहद पिछड़े नजर आते हैं। स्कूली शिक्षा में सामान्य व गरीब कोटे के बच्चों के बीच इस खाई को पाटने का काम पतंग नामक विशेष प्रोजेक्ट के माध्यम से किया जा रहा है। इसके जरिये राजधानी दिल्ली के नामचीन हैरिटेज स्कूल (वसंत कुंज) और डीपीएस (वसंत विहार) स्कूल में पढ़ने वाले गरीब बच्चों की क्षमताओं का विकास कर उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया जा रहा है।

सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी (सीसीएस) व टेक महिंद्रा फाउंडेशन के साझा प्रयास से यह प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। इस संबंध में सीसीएस के अध्यक्ष पार्थ जे शाह कहते हैं कि इस प्रयास का मूल उद्देश्य उन बच्चों पर विशेष ध्यान देना है, जो आर्थिक रूप से संपन्न परिवारों के बच्चों की अपेक्षा शैक्षणिक मोर्चे पर पिछडे़ हैं। आरटीई लागू होने से दिल्ली ही नहीं बल्कि देशभर में गरीब कोटे के विद्यार्थियों के लिए निजी स्कूलों के दरवाजे तो खुल गए हैं, लेकिन वहा पढ़ने वाले संपन्न व मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों के मुकाबले आज भी इन बच्चों के लिए स्कूली शिक्षा मुश्किल है। हम नहीं चाहते हैं कि ये बच्चे इन कमियों के चलते शेष 75 फीसद बच्चों के मुकाबले खुद को पिछड़ा महसूस करें और सरकार की ओर से मिले इस लाभ से वंचित हों। वह बताते हैं, पतंग के माध्यम से हम इन बच्चों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए निशुल्क ट्यूशन व अन्य माध्यमों का इस्तेमाल कर उनकी बौद्धिक क्षमताओं और व्यक्तित्व का विकास कर रहे हैं।

पतंग प्रोजेक्ट की प्रोग्राम मैनेजर अदिति अग्रवाल बताती हैं कि इस प्रोजेक्ट का ये दूसरा साल है। पहले साल हमने टैगोर इंटरनेशनल के साथ शुरुआत की थी और फिर इसमें हैरिटेज स्कूल और डीपीएस, वसंत कुंज भी शामिल हुए। अदिति बताती हैं कि अब हम इस प्रोजेक्ट को डीपीएस व हैरिटेज स्कूल में चला रहे हैं। अदिति बताती हैं कि प्रशिक्षित शिक्षकों की मदद से इस प्रोजेक्ट का लाभ करीब 130 बच्चों को मिल रहा है और यकीन मानिए इन बच्चों में खूब बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इस बात को स्कूल प्रबंधन भी महसूस करता है। डीपीएस में हम पहली से तीसरी कक्षा और हैरिटेज में पहली से चौथी कक्षा के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इन कक्षाओं में हम स्कूल की छुट्टी होने के बाद करीब तीन घंटे तक बच्चों को न सिर्फ क्लास में जरूरी अध्ययन के लिए तैयार करते हैं बल्कि उन्हें जीवन जीने के तौर तरीके भी सिखाते हैं। जिससे वे पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ खुद को बेहतर इंसान भी बना सकें।

ऐसे होता है बच्चों का चुनाव

बच्चों का चुनाव स्कूल में पढ़ा रहे शिक्षकों के साथ निरंतर बातचीत के माध्यम से किया जाता है। प्रोजेक्ट से जुड़े लोग शिक्षकों से जानते हैं कि कक्षा में कौन सा बच्चा अध्ययन व अन्य आवश्यक स्किल्स के स्तर पर कमजोर है। फिर उस बच्चे व उसके अभिभावकों से बात कर स्कूल की छुट्टी होने के बाद बच्चे के लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन किया जाता है। इसमें अभिभावक भी भाग लेते हैं। इस तरह इन विशेष कक्षाओं में विशेषज्ञ शिक्षकों की मदद से सेंटर फॉर सिविल सोसायटी अन्य विद्यार्थियों से पिछड़ रहे बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने का काम करती है।

शिवम को मुख्यधारा में लाई नुदरत

सऊदी अरब की जजान यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाली नुदरत सलीम पीएचडी की पढ़ाई के लिए दिल्ली आई। यहां आकर उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ पतंग प्रोजेक्ट में बच्चों को पढ़ाने की शुरुआत की। नुदरत कहती हैं कि उन्हें शिवम नामक एक बच्चा मिला जो कक्षा में एकदम खामोश होकर एक कोने में बैठा रहता था। नुदरत ने बताया कि शिवम को अंग्रेजी में अध्ययन को लेकर परेशानी थी लेकिन जब उन्होंने उसे कहानियों के जरिये समझाना शुरू किया तो उसमें बदलाव आने लगा। करीब एक साल के बाद शिवम के शिक्षकों का कहना है कि कल तक खामोश रहने वाला शिवम आज कक्षा में होने वाली गतिविधियों में न सिर्फ हिस्सा लेता है बल्कि उसका प्रदर्शन भी अच्छा रहता है। नुदरत कहती हैं कि इस प्रोजेक्ट के माध्यम से जो शांति और सुकून उन्हें मिलता है वह सऊदी अरब में अध्यापन के दौरान नहीं मिलता था।


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