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ये दो फैसले सही होते तो आज भारत इतिहास रच सकता था..

टीम इंडिया वनडे सीरीज गंवाने के बाद टेस्ट सीरीज के जरिए वापसी करने उतरी थी। काफी हद तक भारत उस वापसी के करीब भी पहुंच गई थी लेकिन अंत में भारत जीत से 40 रन दूर रह गई और वापसी का सपना एक बार फिर टूट गया। अगर ऑकलैंड में हुए पहले टेस्ट के चौथे दिन आज 407 रनों का विशाल लक्ष्य हासिल करन में सफल रहती तो ये टेस्ट

By Edited By: Published: Sun, 09 Feb 2014 01:01 PM (IST)Updated: Mon, 10 Feb 2014 08:13 PM (IST)

ऑकलैंड। टीम इंडिया वनडे सीरीज गंवाने के बाद टेस्ट सीरीज के जरिए वापसी करने उतरी थी। काफी हद तक टीम इंडिया उस वापसी के करीब भी पहुंच गई थी लेकिन अंत में भारत जीत से 40 रन दूर रह गया और वापसी का सपना एक बार फिर टूट गया। अगर ऑकलैंड में हुए पहले टेस्ट के चौथे दिन आज भारत 407 रनों का विशाल लक्ष्य हासिल करने में सफल रहता तो ये टेस्ट इतिहास में लक्ष्य का पीछा करते हुए उसकी सबसे बड़ी जीत होती। गौरतलब है कि इससे पहले भारत ने 1976 में 406 रनों के लक्ष्य का पीछा किया था, लेकिन आज धौनी के धुरंधर महज 40 रन से उस कीर्तिमान से चूक गए। इस हार के यूं तो कई कारण निकल कर सामने आएंगे, इससे पहले तीसरे दिन भी जब मुरली विजय के रूप में भारत का पहला विकेट गिरा था तो उससे विजय ज्यादा खुश नहीं दिखे थे। हॉटस्पॉट रीप्ले में जब उस एलबीडब्ल्यू के फैसले को देखा गया तो गेंद हल्का सा बल्ले को छूती हुई नजर आई थी, लेकिन भारत की दूसरी पारी में चौथे दिन अंपायरों के दो ऐसे फैसले देखने को मिले, जिन पर अगर सही से गौर फरमाया जाता तो आज तस्वीर दूसरी ही होती। क्या थे वो दो फैसले, आइए जानते हैं।

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1. वो गेंद बल्ले से टकराई थी:

चौथे दिन दूसरी पारी में 248 रन पर भारत के चार विकेट गिर चुके थे। टॉप ऑर्डर के कुछ बल्लेबाज अपना काम कर चुके थे और अब मिडिल ऑर्डर की जिम्मेदारी थी कि वे इस मजबूत नींव को और मजबूत करते। रहाणे और रोहित शर्मा उस वक्त क्रीज पर थे। दूसरी पारी के 81वें ओवर की पहली गेंद पर ट्रेंट बोल्ट ने रहाणे को एक शानदार इन-स्विंग गेंद फेंकी। रहाणे ने अपना पैर आगे बढ़ाकर इस गेंद को डिफेंड करने का प्रयास किया लेकिन गेंदबाज के अपील करते ही अंपायर ने रहाणे को एलबीडब्ल्यू करार दे दिया। हालांकि जब टीवी रीप्ले में हॉट-स्पॉट के जरिए देखा गया तो गेंद बल्ले का बाहरी किनारा छूते हुए निकली थी और फिर पैड से टकराई थी। शायद यहां पर बीसीसीआइ और टीम इंडिया को डीआरएस प्रणाली का विरोध करने का अफसोस जरूर हुआ होगा, वरना शायद इस विकेट के लिए वो आवाज उठा सकते थे। रहाणे का ये विकेट काफी महंगा साबित हुआ और इसके बाद भारत लड़खड़ाता चला गया।

2. थर्ड अंपायर का वो फैसला:

भारत 349 रन पर 8 विकेट खो चुका था और भारत को एतिहासिक जीत के लिए 50 से भी कम रन चाहिए थे। धौनी 39 रन पर खेल रहे थे और एक छोर पर टीम इंडिया की आखिरी उम्मीदों को कंधों पर लिए डटे हुए थे, हर ओवर में एक दो बाउंड्री लगाते थे और आखिरी गेंद पर रन लेकर स्ट्राइक रोटेट कर लेते थे। रणनीति के हिसाब से सब सही चल रहा था, लेकिन फिर नील वैगनर की एक धीमी बाउंसर गेंद आई जिस पर माही पुल खेलने के चक्कर में बोल्ड हो गए। गेंद अंदरूनी किनारा लेकर विकेट से टकरा गई। धौनी वापस जा ही रहे थे कि मैदानी अंपायरों ने थर्ड अंपायर से क्रीज पर वैगनर के कदमों की जांच करने को कहा। टीवी रीप्ले में साफ देखा गया कि गेंद फेंकने से पहले वैगनर का पिछला पैर किनारे वाली क्रीज से छुआ था, नियम के हिसाब से साइड क्रीज से पैर छूना नो बॉल होता है, और इस गेंद पर ऐसा हुआ भी, जिसकी पुष्टि सभी कमेंटेटरों ने भी की, लेकिन थर्ड अंपायर गैरी बैक्सटर को शायद कुछ और ही नजर आया और उन्होंने धौनी को आउट करार दे दिया, जिसके साथ ही बाकी बची थोड़ी-बहुत उम्मदों पर भी पानी फिर गया।

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