ज्वाला की आग में तपकर निखरे पृथ्वी शॉ, अपनी शतकीय पारी से जीता सबका दिल
पृथ्वी शॉ ने राजकोट में टेस्ट पदार्पण करते हुए शतकीय पारी खेली और अपना नाम रिकॉर्ड बुक में दर्ज करा लिया।
उमेश राजपूत, नई दिल्ली। मुंबई के युवा बल्लेबाज पृथ्वी शॉ ने राजकोट में टेस्ट पदार्पण करते हुए शतकीय पारी खेली और अपना नाम रिकॉर्ड बुक में दर्ज करा लिया। 18 साल के पृथ्वी उन क्रिकेटरों में शामिल हैं जिन्होंने बेहद कम उम्र में ही बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। इसमें कोई शक नहीं कि पृथ्वी के अंदर स्वाभाविक प्रतिभा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षो में उनकी प्रतिभा को तराशने का काम क्रिकेट कोच ज्वाला सिंह ने किया। हालांकि, ज्वाला से मिलने से पहले भी पृथ्वी को दूसरे कोचों ने भी कोचिंग दी, लेकिन ज्वाला के संपर्क में आने के बाद पृथ्वी ने क्रिकेट में सफलता के नए अध्याय लिखना शुरू कर दिया।
भाग्यशाली साबित हुआ राजकोट : पृथ्वी के लिए राजकोट का स्टेडियम एक बार फिर भाग्यशाली साबित हुआ। पृथ्वी ने इसी मैदान पर तमिलनाडु के खिलाफ रणजी ट्रॉफी सेमीफाइनल में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में अपना पदार्पण करते हुए शतकीय पारी खेली थी। ज्वाला ने कहा, 'मुझे जब पता चला कि वह राजकोट में अपना पदार्पण टेस्ट खेलेगा तभी मुझे लगने लगा था कि वह शतक लगाएगा। वह निडर होकर बल्लेबाजी करता है और इससे फर्क नहीं पड़ता कि सामने किस स्तर का गेंदबाज है। वह अपना स्वाभाविक खेल खेलता है। साथ ही राजकोट का विकेट बल्लेबाजी के लिए काफी अच्छा है और इसका भी उसे फायदा हुआ।'
स्कूली क्रिकेट में मचाया धमाल : नौ नवंबर 1999 को मुंबई के करीब स्थित विरार में जन्मे पृथ्वी ने सबसे पहले 2013 में सुर्खियां बटोरी थीं। तब उन्होंने सिर्फ 14 साल की उम्र में स्कूली क्रिकेट में 546 रन की पारी खेली थी, जो उस समय स्कूली क्रिकेट में किसी भी बल्लेबाज का सबसे बड़ा स्कोर थी। इसके बाद पृथ्वी से काफी उम्मीदें लगाई जाने लगीं, लेकिन वह उन उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके और उन्हें एक पारी का स्टार माना जाने लगा।
ज्वाला ने बदली दिशा : जब पृथ्वी असफलता के दौर से गुजर रहे थे तो तब 2015 की शुरुआत में उनका संपर्क ज्वाला सिंह से हुआ। ज्वाला ने पृथ्वी पर कड़ी मेहनत की और उनकी तकनीक पर भी काफी काम किया। इसके बाद पृथ्वी के बल्ले से फिर से रन निकलने लगे और 2017 में उन्हें अपना रणजी पदार्पण और दलीप ट्रॉफी पदार्पण करने का मौका मिला। दोनों जगह उन्होंने पदार्पण मैचों में ही शतक जड़ दिया। इस साल की शुरुआत में भारत ने उनकी कप्तानी में अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप भी जीता और अब पृथ्वी ने अपने पदार्पण टेस्ट में ही शतक जड़कर अनोखी उपलब्धि हासिल कर ली।
जल्द करूंगा बात : पृथ्वी की हालांकि पिछले कुछ समय से ज्वाला से बात नहीं हुई है, लेकिन ज्वाला उनकी उपलब्धि पर काफी गौरवांवित हैं। ज्वाला ने कहा, 'किसी खिलाड़ी का टेस्ट पदार्पण में शतक जड़ा बहुत बड़ी उपलब्धि होती है और पृथ्वी ने तो इतनी कम उम्र में यह उपलब्धि हासिल की जो इससे पहले कोई भी भारतीय बल्लेबाज हासिल नहीं कर सका। रणजी ट्रॉफी, दलीप ट्रॉफी और अब टेस्ट मैच तीनों के पदार्पण पर शतक जड़ना महान उपलब्धि है। मैं उसकी इस उपलब्धि पर बहुत खुश हूं। मेरी शुभकामनाएं उसके साथ हैं। मेरी पिछले कुछ समय से उससे बात नहीं हुई है और मैं अब जल्द ही उसे फोन करके बधाई दूंगा और उसकी भविष्य की योजनाओं पर बात करूंगा। हमारी बात हो या ना हो, लेकिन जब भी वह मुझे याद करता है तो मैं उसके लिए मौजूद रहता हूं और आगे भी मौजूद रहूंगा। हम जल्द ही मिलेंगे और आगे की बातें करेंगे।'
लंबी रेस का घोड़ा : जब ज्वाला से पूछा गया कि यह अच्छा ही हुआ कि पृथ्वी को इंग्लैंड में जेम्स एंडरसन और स्टुअर्ट ब्रॉड जैसे स्विंग गेंदबाजों के सामने पदार्पण का मौका नहीं मिला तो उन्होंने इससे इन्कार करते हुए कह, 'पृथ्वी ने इंग्लैंड में भारत-ए के लिए अच्छे रन बनाए थे और यदि वह वहां टेस्ट खेलता तो वहां भी वह अच्छे स्कोर बनाता। पृथ्वी लंबी रेस का घोड़ा है। उसे इंग्लैंड में खेलने का मौका नहीं मिला, लेकिन जिस तरह से गेंद को हिट करता है उसे देखकर ब्रायन लारा, रिकी पोंटिंग और वीरेंद्र सहवाग जैसे दिग्गजों की बल्लेबाजी याद आती है।'
जिम्मेदारी का अहसास : आगे ऑस्ट्रेलिया का मुश्किल दौरा है। ज्वाला ने कहा, 'ऑस्ट्रेलिया में सलामी बल्लेबाजों के लिए रन बनाना कभी आसान नहीं रहा। ऑस्ट्रेलिया में सफल होने के लिए बैक फुट पर अच्छा खेलना जरूरी है। पृथ्वी जितना अच्छा फ्रंट फुट पर खेलता है उतना ही अच्छा बैक फुट पर भी खेलता है। विराट कोहली जैसा बड़ा कप्तान जब आपके पदार्पण टेस्ट से पहले आपसे आपकी भाषा में बात करता है तो निश्चित रूप से आपका आत्मविश्वास बढ़ता है और आपको अपनी जिम्मेदारी का अहसास होता है।'