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Exclusive: सीओए के रवैये से अपमानित महसूस कर रहे हैं निरंजन शाह

न ही लोढ़ा समिति की रिपोर्ट और न ही सुप्रीम कोर्ट ने सीओए को बीसीसीआइ की वर्किंग कमेटी की ताकतों को हड़पने के लिए कहा है।

By Pradeep SehgalEdited By: Published: Wed, 20 Dec 2017 04:29 PM (IST)Updated: Wed, 20 Dec 2017 04:29 PM (IST)
Exclusive: सीओए के रवैये से अपमानित महसूस कर रहे हैं निरंजन शाह
Exclusive: सीओए के रवैये से अपमानित महसूस कर रहे हैं निरंजन शाह

नई दिल्ली, अभिषेक त्रिपाठी। बीसीसीआइ के पूर्व सचिव और नेशनल क्रिकेट अकादमी (एनसीए) के चेयरमैन निरंजन शाह सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त क्रिकेट प्रशासकों की समिति (सीओए) के रवैये से दुखी हैं और खुद को शार्मिदा व अपमानित महसूस कर रहे हैं।

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बीसीसीआइ के दिग्गज प्रशासक रहे निरंजन ने सोमवार को सीओए को लिखे तीन पन्ने के पत्र में कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने इसमें लिखा है कि मैं बहुत दुखी होकर यह पत्र लिख रहा हूं। एनसीए का चेयरमैन होने के बावजूद पता नहीं किन कारणों से बीसीसीआइ की तरफ से मुझे इसकी बैठक की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रण नहीं दिया जाता। अखबारों के जरिये मुझे पता चला कि तुफन घोष को एनसीए का सीओओ नियुक्त किया गया है लेकिन मैं आश्चर्यचकित हूं कि मेरे रहते हुए एनसीए की किसी बैठक में इस पद के बारे में और उसकी नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर कभी कोई चर्चा तक नहीं हुई। एनसीए के लिए मैंने बहुत मेहनत की और सालों से इसको प्रमोट किया लेकिन मुङो समझ में नहीं आ रहा कि मुझे इससे क्यों दूर रखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक 70 साल से ज्यादा उम्र का व्यक्ति बीसीसीआइ का पदाधिकारी नहीं हो सकता है लेकिन अगर राज्य संघ अपने प्रतिनिधि को बीसीसीआइ की उप समिति की अध्यक्षता के लिए भेजता है तो वह ऐसा कर सकता है।

सीओए का काम निगरानी करना

उन्होंने आगे इस पत्र में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सीओए की नियुक्ति दो कारणों से की थी। पहला, पिछले साल 18 जुलाई को दिए गए अपने आदेश को लागू कराना और दूसरा बीसीसीआइ के प्रशासन और प्रबंधन की निगरानी करना। पदाधिकारियों द्वारा चलाए जा रहे बीसीसीआइ की निगरानी करना और खुद बीसीसीआइ के प्रबंधन को हड़पने में अंतर होता है। अखबारों में सीओए द्वारा खुद को ही बीसीसीआइ की कार्यकारी समिति बताने की खबर पढ़कर भी बहुत दुख हुआ।

न ही लोढ़ा समिति की रिपोर्ट और न ही सुप्रीम कोर्ट ने सीओए को बीसीसीआइ की वर्किंग कमेटी की ताकतों को हड़पने के लिए कहा है। शक्तियों के विकेंद्रीकरण की जगह बीसीसीआइ की पावर दो व्यक्तियों के पास आना उसी तरह है जिसके खिलाफ लोढ़ा समिति ने सुधार की सिफारिश की थी। कुछ निर्णय तो इतने गुप्त तरीके से और जल्दबाजी में लिए गए कि किसी को उसके खिलाफ सवाल उठाने का मौका ही नहीं मिला? पता नहीं इसके पीछे क्या कारण थे? सीओए की बैठक के कुछ मिनट्स भी रिकॉर्ड नहीं किए गए। वहीं बीसीसीआइ पदाधिकारियों की विशेष आम सभा की ऑडियो रिकॉर्डिग तक सार्वजनिक कर दी गई। मेरे पत्र में लिख गए सुझावों को सही भावना से लेना चाहिए।

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