पहले कुंबले और अब अठोरे, क्या भारतीय क्रिकेट में शुरू हो चुका है कोच को हटाने का चलन?
कुंबले और अठोरे सिर्फ इसलिए हटाए गए क्योंकि खिलाड़ी ज्यादा मेहनत नहीं करना चाहते थे।
नई दिल्ली, लक्ष्य शर्मा। पिछले ही साल की बात है जब भारतीय क्रिकेट में कप्तान विराट कोहली और कोच अनिल कुंबले के बीच विवाद ने पूरे देश को हिला के रख दिया था, खबर थी कि कप्तान सहित टीम इंडिया के कई खिलाड़ी कुंबले के काम करने के तरीके से खुश नहीं थे, उन पर ये आरोप लगे कि वह टीम में तानाशाही कर रहे हैं। अब महिला क्रिकेट में भी इसका चलन शुरू हो गया जब खिलाड़ियों की शिकायत पर कोच को हटा दिया गया।
कुछ दिन पहले की बात है कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम के कोच तुषार अठोरे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उस वक्त तो उन्होंने इसका कारण निजी बताया लेकिन अब उन्होंने दिल की बात करते हुए कहा कि खिलाड़ियों की शिकायत पर कोच को हटाना सही नहीं है। अगर कोच खिलाड़ियों को उनके तरीके से कोचिंग करवाएगा तो फिर उसकी क्या भूमिका रहेगी।
आखिर किसने की तुषार अठोरे की शिकायत?
अब आखिर सवाल ये है कि तुषार की शिकायत किस खिलाड़ी ने की। इसका राज भी खुल गया, फर्जी डिग्री के कारण विवादों में आइ टी-20 कप्तान हरमनप्रीत कौर ने ही अपने कोच तुषार की शिकायत की है। अब अरोठे ने कहा कि अगर केवल खिलाड़ियों के आरोपों के आधार पर कोच को हटाए जाने लगा तो आप गलत संदेश दे रहे हैं।
तुषार से जब ये पूछा गया तो कि क्या उन्हे पता है कि उनकी शिकायत किसने की तो उन्होंने कहा हां मेरी शिकायत हरमनप्रीत ने की है। हरमनप्रीत ने बीसीसीआइ से शिकायत करते हुए कहा कि मैं टीम के गेंदबाजों को नेगेटिव गेंदबाजी के लिए कहता हूं लेकिन आप फुटेज निकाल कर देख लें, पिछले एक साल में किस गेंदबाज ने नेगेटिव लाइन पर गेंदबाजी की है।
अब पहले कुंबले चले गए थे और अब तुषार भी टीम से निकाल दिए गए लेकिन सवाल ये उठता है कि भारतीय क्रिकेट में आखिर ये चलन शुरु क्यों हो रहा है। क्या खिलाड़ी अपनी मनमर्जी करना चाहते हैं और अगर कोच ने ऐसा करने से मना किया तो उसे रास्ते से ही हटा देते हैं।
कोच ने चाही कड़ी मेहनत तो खिलाड़ियों दिखाया बाहर का रास्ता
अनिल कुंबले और तुषार अठोरे के मामले में एक बात मिलती है कि दोनों ही कोच टीम में अनुशासन चाहते थे और इसके लिए खिलाड़ियों को तैयार करना चाहते थे। कुंबले भी इसलिए नपे क्योंकि वह सभी खिलाड़ियों को कड़े अभ्यास के लिए कह रहे थे और तुषार भी एक अतिरिक्त अभ्यास सेशन चाहते थे.
अब दोनों ही कोच सिर्फ इसलिए हटाए गए क्योंकि खिलाड़ी ज्यादा मेहनत नहीं करना चाहते थे। खिलाड़ी अपनी मनमर्जी के मुताबिक सब करना चाहते हैं। खिलाड़ियों को वैसा कोच चाहिए जो उनकी कठपुतली हो और उन्हे अपनी मर्जी के हिसाब से टीम में रहने दे। इसका शायद सबसे अच्छा उदाहरण है डंकन फ्लेचर, जो बिना किसी सफलता के 4 साल कर टीम इंडिया में जमे रहे।
आखिरकार कौन है इसका जिम्मेदार?
इस चलन में सबसे ज्यादा गलती किसकी है। खिलाड़ियों की, कोच की या बीसीसीआइ की। शायद सबसे ज्यादा गलती तो बोर्ड की ही है कि उन्होंने खिलाड़ियों को पूरी छूट दे रखी है। ये बात सही है कि खिलाड़ियों से ही बीसीसीआइ की तिजोरी भरती है लेकिन जब खिलाड़ी अति कर दे तो क्या बीसीसीआइ को कड़ा रुख नहीं अपनाना चाहिए। अगर टीम के खिलाड़ी कोई शिकायत करते हैं तो क्या बीसीसीआइ को जांच नहीं करनी चाहिए। जांच के बाद जो जिम्मेदार हो उस पर कारवाइ करें फिर चाहे वह कोच हो कप्तान हो या कोई खिलाड़ी।