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DDCA के लोकपाल और वकीलों को भुगतान से इन्कार, नियमों का दिया हवाला

DDCA के लोकपाल और वकीलों को भुगतान से इन्कार कर दिया गया है और हाई कोर्ट से नियुक्त हस्ताक्षरकर्ता ने नियमों का हवाला दिया है।

By Vikash GaurEdited By: Published: Wed, 20 May 2020 07:56 AM (IST)Updated: Wed, 20 May 2020 07:56 AM (IST)
DDCA के लोकपाल और वकीलों को भुगतान से इन्कार, नियमों का दिया हवाला
DDCA के लोकपाल और वकीलों को भुगतान से इन्कार, नियमों का दिया हवाला

नई दिल्ली, अभिषेक त्रिपाठी। दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा नियुक्त दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के हस्ताक्षरकर्ता वरिष्ठ वकील राजीव बंसल ने नियमों का हवाला देकर संघ के लोकपाल दीपक वर्मा और अधिवक्ता गौतम दत्ता व अंकुर चावला को भुगतान करने से इन्कार किया है। हालांकि इससे पहले डीडीसीए के सदस्य वकीलों को हो रहे भुगतान पर सवाल उठा चुके हैं।

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राजीव ने लोकपाल, दोनों वकीलों और निदेशकों को भेजे गए ईमेल में लिखा है कि यह बहुत पीड़ादायक है कि मैं आप सभी को यह लिख रहा हूं। इस साल 13 मार्च को दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार, मुझे डीडीसीए द्वारा किए जाने वाले भुगतानों को मंजूरी देने का कर्तव्य सौंपा गया था। दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश स्पष्ट है। आदेश स्पष्ट रूप से उन भुगतानों को निर्धारित करता है जिन्हें इस स्तर पर अनुमोदित किया जा सकता है। फिर से मुझे कुछ भुगतान को मंजूरी देने के लिए दबाव दिया गया लेकिन मैंने उसे विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया है। मुझसे समय पर और फिर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं के भुगतानों को अनुमोदित करने के लिए कहा गया है, जिनके लिए मेरा बहुत सम्मान है।

अब, मुझे लोकपाल दीपक वर्मा के चालान भेज दिए गए हैं। वह सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं और मैं उन्हें उच्च सम्मान से देखता हूं। इसने वास्तव में मुझे पीड़ा दी है कि जब मैंने अपनी मौखिक बातचीत में संकेत दिया था कि लोकपाल के भुगतान को जारी करना संभव नहीं हो सकता है, तो मुझे बार-बार ऐसा करने के लिए कहा गया है और मैंने ऐसा करने से इन्कार कर दिया लेकिन फिर भी मुझे इसे लिखित रूप में कहने के लिए कहा गया है। मेरे पास विकल्प नहीं है। बहुत भारी मन के साथ, मैं ये लिख रहा हूं कि 13 मार्च के हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार लोकपाल, अधिवक्ता गौतम दत्ता, अंकुर चावला को दिए गए भुगतान जारी नहीं किए जा सकते। यदि यह महसूस होता है कि हाई कोर्ट के 13 मार्च के आदेश की मेरी व्याख्या सही नहीं है, तो आप अपने कानूनी उपायों का सहारा ले सकते हैं।


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