खुद पर से विश्वास खो बैठे थे युवी
भारत खुद को अंतिम ओवरों में आक्रमण के लिए तैयार कर चुका था। आधार बन गया था और विकेट हाथ में थे। ऊपर से कोहली जबरदस्त फॉर्म में थे और रनों की बारिश तय थी। अचानक सब कुछ जम सा गया। हवा का रुख आसानी से श्रीलंका की ओर मुड़ गया। एक अहम मौके पर भारतीय टीम इम्तिहान में फेल हो गई। यह तब
(रवि शास्त्री का कॉलम)
भारत खुद को अंतिम ओवरों में आक्रमण के लिए तैयार कर चुका था। आधार बन गया था और विकेट हाथ में थे। ऊपर से कोहली जबरदस्त फॉर्म में थे और रनों की बारिश तय थी। अचानक सब कुछ जम सा गया। हवा का रुख आसानी से श्रीलंका की ओर मुड़ गया। एक अहम मौके पर भारतीय टीम इम्तिहान में फेल हो गई।
यह तब हुआ जब युवराज सिंह ने अपने करियर की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पारी खेली। और उन्होंने इसके लिए कितना अहम समय चुना। विश्वास नहीं होता। बाउंसर, वाइड, यॉर्कर या कोण बनाती गेंद किसी पर भी उनका पैर या बल्ला नहीं पहुंच पा रहा था। कोहली दूसरे छोर पर खड़े होकर यह अविश्वसनीय घटना देख रहे थे।
मानसिक स्थिति कमजोर पड़ जाने की विभिन्न वजह हो सकती हैं। फील्डर के हाथ में सीधे शॉट खेलकर डॉट बॉल खेलना अलग बात है, लेकिन बिना छुए गेंद को विकेटकीपर के पास जाने देना बिल्कुल अलग स्थिति है। यह खुद में अविश्वास होने जैसा है। इस आधे घंटे में युवराज ने अपने क्रिकेट करियर के दो अहम लोगों को निराश किया। एक तो धौनी जो हर अच्छे-बुरे वक्तमें उनके साथ खड़े रहे और एक विराट जिनकी इच्छा ने उन्हें आइपीएल-7 का सबसे महंगा क्रिकेटर बना दिया। कुछ कैच छोड़ने, पूरे टूर्नामेंट में एक ओवर फेंकने के बाद बल्ले पर लगी जंग ने युवी के लिए परिस्थितियां एकदम से बदलकर रख दीं।
अब आगे की बात करें तो बल्लेबाजों को कोहली से सबक लेने की जरूरत है। रोहित के अंदर विराट जैसी रनों की भूख होनी चाहिए। रहाणे को उनकी एकाग्रता और धवन को उनके फुटवर्क का अनुसरण करना चाहिए। मिश्रा को ऐसी पिचों पर गेंदबाजी करने के लिए खुद पर विश्वास जताना होगा, जिस पर गेंद अधिक नहीं घूम रही हो। जडेजा को बायें हाथ के बल्लेबाजों के खिलाफ अधिक मेहनत करने की जरूरत है। अंतिम शब्द निश्चित रूप से श्रीलंकाई टीम के बारे में होने चाहिए। एक ऐसी टीम का जिसका आइसीसी टूर्नामेंट में बेहतरीन रिकॉर्ड रहा है, खिताब जीतना वाकई अच्छी बात है।
(टीसीएम)