जानिए, सट्टेबाजों के लिए क्यों आसान है पिच क्यूरेटर को निशाना बनाना
बीसीसीआइ अनुभव के आधार पर क्यूरेटरों को 35,000 से 65,000 रुपये देता है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। बीसीसीआइ की पिच समिति के पूर्व चेयरमैन वेंकट सुंदरम के लिए क्यूरेटर का पैसे के लोभ में आकर भ्रष्टाचार में लिप्त होना कोई हैरानी की बात नहीं है। उनका कहना है कि कम वेतन पाने वाले मैदानकर्मी इस तरह की पेशकश के सामने कमजोर हो जाते हैं।
पिच विशेषज्ञ होने के अलावा सुंदरम पूर्व प्रथम श्रेणी बल्लेबाज हैं। अब बर्खास्त हुए पुणे के क्यूरेटर और पूर्व तेज गेंदबाज पांडुरंग सलगांवकर के खिलाफ खेलते थे। सुंदरम ने कहा, 'खिलाड़ी और अधिकारी बीते समय में भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं, इसलिए अगला आसान निशाना क्यूरेटरों के होने की संभावना थी, जिन्हें मेरी राय में मैच अधिकारियों और खिलाड़ियों की तुलना में काफी कम वेतन मिलता है।'
बीसीसीआइ के पांच क्षेत्रीय क्यूरेटरों को करीब 65,000 रुपये प्रति महीना दिए जाते हैं, जबकि राज्य संघ अपने क्यूरेटरों को सीधे भुगतान करता है और यह राशि भी कोई भारी भरकम नहीं होती। यह खिलाड़ियों और अधिकारियों को मिलने वाली राशि से काफी कम होती है। प्रथम श्रेणी क्रिकेटरों को सालाना 12 लाख रुपये के करीब मिलते हैं, जबकि अंपायर और रेफरियों को प्रत्येक मैच में 20,000 रुपये के करीब दिए जाते हैं।
सुंदरम ने कहा, 'भारतीय क्रिकेटरों की कमाई करोड़ों में होती है। प्रथम श्रेणी खिलाड़ियों को लाख में राशि मिलती है और वे इसके हकदार भी हैं, लेकिन आपको मैदानकर्मियों को भी देखना चाहिए।'
बीसीसीआइ अनुभव के आधार पर क्यूरेटरों को 35,000 से 65,000 रुपये देता है। राज्य संघ इनमें से कुछ को 20,000 रुपये से भी कम देते हैं। इसलिए मैच फिक्स करने वालों के लिए उन्हें निशाना बनाना आसान होता है।