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राष्ट्रीय टीम का कप्तान होना आसान नहीं होता: गावस्कर

नए साल की ओर बढ़ रही भारतीय टीम के लिए महेंद्र सिंह धौनी का अचानक यूं टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेना मददगार साबित नहीं होने वाला है। धौनी ने अपने खेल से क्रिकेट में नए आयाम स्थापित किए हैं। उनकी आक्रामक बल्लेबाजी, बेहतरीन विकेटकीपिंग और कूल रहने की आदत ने

By sanjay savernEdited By: Published: Wed, 31 Dec 2014 10:35 AM (IST)Updated: Wed, 31 Dec 2014 10:39 AM (IST)
राष्ट्रीय टीम का कप्तान होना आसान नहीं होता: गावस्कर

(गावस्कर का कॉलम)

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नए साल की ओर बढ़ रही भारतीय टीम के लिए महेंद्र सिंह धौनी का अचानक यूं टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेना मददगार साबित नहीं होने वाला है। धौनी ने अपने खेल से क्रिकेट में नए आयाम स्थापित किए हैं। उनकी आक्रामक बल्लेबाजी, बेहतरीन विकेटकीपिंग और कूल रहने की आदत ने उनकी कप्तानी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्हें हमेशा विश्व कप ट्रॉफी को वापस देश लाने और एक खिलाड़ी के तौर पर टीम को सबसे ऊपर रखने के लिए याद किया जाएगा। धौनी के जैसे खेलने वाले कुछ ही खिलाड़ी हैं और टेस्ट क्रिकेट को उनकी कमी काफी खलेगी। किसी भी राष्ट्रीय टीम का कप्तान होना आसान नहीं होता, खासकर तब जब कप्तान विकेटकीपर भी हो। पिछले कुछ समय से भारत निरंतर 500 रन से अधिक ही बना रहा है, ऐसे में आश्चर्य नहीं कि धौनी शारीरिक एवं मानसिक रूप से थकान का अनुभव कर रहे हों। भारतीय टीम को उनकी कमी बहुत ज्यादा अखरेगी। अच्छी बात यह है कि वह सीमित ओवरों के क्रिकेट में अभी भी बल्ले से जलवे दिखाने के लिए उपलब्ध रहेंगे।

युवा विराट कोहली पहले ही टेस्ट में कप्तानी कर चुके हैं। उन्होंने दो शानदार शतक लगाकर दिखा दिया है कि जिम्मेदारी से उनके प्रदर्शन पर कोई प्रभाव नहीं पडऩे वाला। यह केवल नया साल नहीं, बल्कि कोहली के नेतृत्व में एक नए युग की शुरुआत होने जा रही है। उम्मीद है कि वह अपनी जिम्मेदारी को उम्दा ढंग से निभाएंगे।

उधर, मेलबर्न टेस्ट के आखिरी दिन भारतीय खिलाड़ी अपनी ही बात पर कायम नहीं रह सके। मैच के दौरान कई भारतीय खिलाडिय़ों को यह कहते हुए सुना गया कि परिस्थितियां चाहें जो भी हों, हम जीत के लिए खेलेंगे। हालांकि आखिरी में उन्होंने ड्रॉ के लिए खेलने की राह चुनी और इसके साथ ही सीरीज भी गंवा दी। बयानबाजी से कहीं ज्यादा आपका मैदान पर किया गया प्रदर्शन बोलता है। लेकिन साल के आखिरी दौरे पर भारतीय खिलाड़ी बयानबाजी में ही ज्यादा मशगूल रहे और परिणाम में भी कोई अंतर नहीं रहा। हालांकि ड्रॉ होने के कारण भारत व्हाइटवॉश से बच गया।

इन सबके साथ एडिलेड टेस्ट को याद करना भी जरूरी है, जिसमें भारत ने ऑस्ट्रेलिया को जीत तोहफे के रूप में दे दी। साथ ही खुद को एक कदम पीछे कर लिया। हालांकि इस टेस्ट के आखिरी दिन भारत की रणनीति को गलत नहीं कहा जा सकता। लेकिन जब मैच जीतना असंभव दिख रहा हो तो उसे बचाने के लिए सही कदम उठाने चाहिए। सिडनी टेस्ट की जहां तक बात है तो भारत के पास सीरीज में बराबरी करने का कोई मौका नहीं है। अगर एडिलेड टेस्ट को भारत ने बचा लिया होता तो वह केवल एक हार और एक ड्रॉ के साथ सिडनी टेस्ट में उतरता। ऐसे में उसके पास बराबरी करने का भी मौका रहता। खासकर तब जब सिडनी की पिच स्पिन गेंदबाजों के माकूल मानी जाती है। (पीएमजी)

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