मेरे लिए भी मुश्किल होता यहां पर फैसला लेना: प्रॉक्टर
जब बल्लेबाजों को खेलने में दिक्कत आ रही थी तो उन्होंने मैच को रोका, अपना समय लिया और फैसला किया। निश्चित ही यह सही रणनीति थी।
जोहानिसबर्ग, अभिषेक त्रिपाठी। सिडनी में भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट मैच में एंड्रूय साइमंड्स और हरभजन सिंह के बीच हुए मंकी गेट को एक दशक से भी ज्यादा समय बीत गया, लेकिन उस मैच में रेफरी रहे माइक प्रॉक्टर उसे अब तक नहीं भूले हैं। प्रॉक्टर ने शनिवार को दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि मैंने उस के बाद बहुत नुकसान ङोला है। जब उनसे पूछा गया कि अगर आप भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच तीसरे टेस्ट मैच में मैच रेफरी होते तो क्या करते, उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर जब दुनिया की दो शीर्ष टीमें खेल रही हों और इस तरह की परिस्थितियां हों तो आपके लिए फैसला लेना कठिन हो जाता है। मेरे लिए भी यह कठिन फैसला होता, लेकिन इस मैच के दोनों अंपायर अलीम दार, इयान गोल्ड और मैच रेफरी एंडी पायक्रॉफ्ट ने सही फैसला लिया। मैं भी ऐसा ही करता।
जब बल्लेबाजों को खेलने में दिक्कत आ रही थी तो उन्होंने मैच को रोका, अपना समय लिया और फैसला किया। निश्चित ही यह सही रणनीति थी। उन्होंने वांडर्स की पिच के बारे में पूछे जाने पर कहा कि यह खतरनाक है, लेकिन ऐसी भी नहीं है जिस पर खेला न जा सके। इसमें बीच-बीच में एक-दो गेंदें असमान उछाल के साथ आती हैं, इसे तकनीक वाला बल्लेबाज आसानी से खेल सकता है।
मंकी गेट प्रकरण आज भी याद
इस पूर्व दक्षिण अफ्रीकी रेफरी ने कहा कि मुङो आज भी उस मैच की एक-एक चीज याद है। मेरे पास वीडियो सुबूत थे, लेकिन उसके बाद भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) के जरिये भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) अपने खिलाड़ियों खास तौर पर हरभजन सिंह को बचाने में सफल रहा था। उन्होंने आरोप लगाया कि उस समय मास्टर-ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने भज्जी को बचाने के लिए झूठ बोला था कि भारतीय स्पिनर ने कोई नस्लवादी टिप्पणी नहीं की।
उन्होंने कहा कि मैंने अपनी किताब ‘कॉट इन द मिडिल’ में लिखा है कि उस मैच के दौरान बीसीसीआइ के अध्यक्ष शरद पवार ने आइसीसी के तत्कालीन अध्यक्ष के ऊपर दबाव बनाया। उनसे कहा गया कि अगर भारतीय खिलाड़ियों के ऊपर से आरोप हटाए नहीं गए तो टीम सिडनी एयरपोर्ट में खड़े चार्टर्ड विमान से उड़कर तुरंत वापस भारत आ जाएगी।
भारत में उठाया नुकसान
उन्होंने कहा कि इस प्रकरण से मुङो निजी तौर पर काफी नुकसान उठाना पड़ा। 2008 में हुए मंकी गेट प्रकरण के बाद क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया ने मेरी लाइफ टाइम मेंबरशिप को रद कर दिया। आइपीएल का दूसरा संस्करण जब दक्षिण अफ्रीका में हुआ तो मुझे उसके कई मैचों में मैच रेफरी का काम देखना था।
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