रॉडोडेनड्रॉन के फूलों से घिरे मैदान पर फिर कभी नहीं हुआ वनडे मैच, कपिल देव ने ठोके थे 175 रन
टनब्रिज वेल्स के नेविल क्रिकेट मैदान की कई दिशाओं में रॉडोडेनड्रॉन के फूल हैं। इन फूलों से घिरे इस मैदान पर एकमात्र वनडे मैच खेला गया है जिसमें कपिल देव ने 175 रन की पारी खेली थी।
नई दिल्ली, अभिषेक त्रिपाठी। 18 जून 1983 को तत्कालीन भारतीय कप्तान कपिल देव ने टनब्रिज वेल्स के नेविल क्रिकेट मैदान पर जिंबाब्वे के खिलाफ खेले गए विश्व कप मैच में नाबाद 175 रन की ऐतिहासिक पारी खेली थी। वनडे में यह उस समय की विश्व कप की सबसे की सबसे बड़ी पारी थी। भारत के पांच विकेट 17 रन पर ही गिर गए थे।
कपिल ने 138 गेंदों की पारी में 16 चौके और छह छक्के लगाकर भारत को जीत ही नहीं दिलाई, बल्कि इससे टीम को ऐसा आत्मविश्वास मिला कि उसने विश्व चैंपियन वेस्टइंडीज को हराकर विश्व कप भी अपने नाम किया। उस मैच में उनके बाद दूसरा सर्वोच्च स्कोर सैयद किरमानी (नाबाद 24) का था। भारत ने आठ विकेट पर 266 रन बनाए और फिर विरोधी टीम को 235 रन पर आउट करके 31 रन से जीत दर्ज थी।
यहां खिलते हैं रॉडोडेनड्रॉन फूल
पिछले साल इंग्लैंड में विश्व कप का कवरेज करने के लिए मैं वहीं था। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच होने वाले मैच से दो दिन पहले बारिश के कारण ट्रेनिंग सत्र नहीं हुआ तो हमने सोचा कि कपिल देव की उस पारी को तो अधिकतर लोग नहीं देख पाए थे, कम से कम उस मैदान को ही देखा जाए। विश्व कप के प्रसारक बीबीसी की हड़ताल होने के कारण उस मैच की रिकॉर्डिग नहीं हो पाई थी। मैदान में उपस्थिति करीब 4000 लोगों के अलावा कपिल की उस पारी को कोई नहीं देख पाया था।
लंदन के ओवल ट्यूब (मेट्रो) स्टेशन से ट्यूब पकड़कर चारिंग क्रॉस रेलवे स्टेशन, वहां से ट्रेन के जरिये टनब्रिज वेल्स स्टेशन पर उतरने के बाद टैक्सी के जरिये काउंटी टीम वेल्स के मैदान नेविल पहुंचना हुआ। जब वहां पहुंचा तो पता चला कि यह लॉर्ड्स, ओवल, वानखेड़े और एमसीजी जैसा स्टेडियम नहीं है। यह तो एक छोटा सा काउंटी टीम का मैदान है जिसमें कुछ सीटें और ड्रेसिंग रूम और अथाह खूबसूरती के अलावा कुछ नहीं है। छोटे से कस्बे में बने इस मैदान के गेट में ना ही कोई सुरक्षाकर्मी था और ना ही दफ्तर में कोई कर्मचारी।
मैदान की बाउंड्री 60 से 65 मीटर की होगी। 10 कदम चलते ही मैदान दिखाई दिया। अभी भी वह मैदान वैसा ही है। हरी-हरी घास वाले मैदान की बाउंड्री नीले व बैंगनी रंग के रॉडोडेनड्रॉन फूल वाले पेड़ों से बनी हुई है। यह फूल इसी क्रिकेट मैदान में पाए जाते हैं। 21वीं सदी में भी वहां सब कुछ प्राकृतिक लग रहा था। यहां बैठने के लिए दो स्टैंड हैं, जिसमें एक में वही पुराने जमाने का ड्रेसिंग रूम और एक छोटा सा पब है। ब्लूमेंटल स्टैंड में 412 सीट हैं, जबकि उसके बगल में बनी छोटी सी पवेलियन के नीचे 124 लोगों के बैठने की जगह है। मैच के समय मैदान के आसपास अस्थायी सीटें लगाई जाती हैं जिससे यहां करीब 6000 लोग मैच देख सकते हैं।
अभी भी लोगों को याद है वह मैच
जब मैं वहां पर स्टेडियम के बारे में जानकारी ले रहा था तो पास में ही रहने वाले स्टीव निकर मिले। उन्होंने कहा कि मैंने वह मैच देखा था। करीब 4000 दर्शक उस मैच में मौजूद थे। वह इस मैदान का पहला और आखिरी वनडे अंतरराष्ट्रीय मैच था। बादल होने के कारण गेंद स्विंग हो रही थी और यही कारण था कि गावस्कर समेत भारत के चार बल्लेबाज पवेलियन में जल्दी पहुंच गए।
सबको लग रहा था कि यह मैच जिंबाब्वे जीत जाएगा, लेकिन कपिल ने वह कर दिखाया जो किसी को उम्मीद नहीं थी। उस दिन बहुत हवा चल रही थी और कपिल हवा के खिलाफ ऑफ साइड में चौके-छक्के लगा रहे थे। अगर उस पारी की तुलना किसी से की जाए तो सिर्फ इयान बॉथम की 1981 की पारी याद आती है, जब उन्होंने फॉलोऑन के बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शतक लगाया था।
नेविल क्रिकेट मैदान से सटी हुई सड़क है और उसके दूसरी तरफ जेफ्री रिचर्ड्स का घर है। रिचर्ड्स अपने कुत्ते के साथ टहलते हुए मैदान में आ गए। क्रिकेट के शौकीन रिचर्ड्स ने बताया कि 1983 विश्व कप के समय मैं यहां नहीं था। मैं यहां बाद में रहने आया, लेकिन पड़ोसियों ने बताया कि कपिल ने एक ऐसा छक्का लगाया कि गेंद उस मकान में जाकर गिरी जिसमें मैं अब रहता हूं। वाकई में वह 100 मीटर से लंबा छक्का होगा।
इस ऐतिहासिक मैच को लेकर भारतीय टीम के पूर्व कप्तान कपिल देव ने कहा है कि जिंबाब्वे वाला मैच एक ऐसा मैच था जिससे पूरी टीम को यह लगने लगा था कि हम चोटी की चार टीमों को हरा सकते हैं और जब हमारा दिन हो तो हम किसी भी टीम को पराजित कर सकते हैं। इस पारी ने टीम को भरोसा दिलाया कि हमारे अंदर किसी भी परिस्थिति में जीत दर्ज करने की क्षमता है और हम किसी भी स्थिति में वापसी कर सकते हैं।