शमी, भुवनेश्वर और उमेश के सामने आई ये बड़ी समस्या, द. अफ्रीका में कैसे दिखेगा कमाल?
भारतीय स्विंग मास्टर भुवनेश्वर कुमार भी इसको लेकर चिंता जता चुके हैं।
मेरठ, संतोष शुक्ल। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय टीम पहली बार टेस्ट सीरीज जीतने के लिए पूरी ताकत झोंकेगी लेकिन लाल कूकाबुरा की गेंद को लेकर भारतीय गेंदबाज असमंजस में हैं। भारतीय स्विंग मास्टर भुवनेश्वर कुमार भी इसको लेकर चिंता जता चुके हैं। अब देखना है कि घर पर लाल एसजी गेंद से खेलने वाले भारतीय गेंदबाज दक्षिण अफ्रीका में लाल कूकाबुरा गेंद से क्या कमाल दिखाते हैं?
वसीम अकरम और ग्लेन मैक्ग्रा जैसे महान तेज गेंदबाज भी एसजी गेंदों की सराहना कर चुके हैं। क्रिकेट विशेषज्ञों की मानें तो कूकाबुरा गेंद की पतली सीम करीब 20 ओवर बाद घिस जाती है, जिसके बाद सीमरों को खाद मदद नहीं मिलेगी। इस गेंद से रिवर्स स्विंग कराना बेहद कठिन होगा। दक्षिण अफ्रीकी पिचों पर नियमित गेंदबाजी करने वाले सीमर भले ही इन गेंदों से स्विंग हासिल कर लेते हों लेकिन भारतीय गेंदबाजों के लिए यह बेहद मुश्किल काम होगा।
एसजी की गेंद की चमक 70 से 80 ओवर तक बरकरार रहती है, जिससे स्पिन और तेज गेंदबाज दोनों को ग्रिप मिलती है। इस गेंद को लंबे स्पेल के बाद भी एक तरफ चमका कर सीमर रिवर्स स्विंग कर लेते हैं जबकि कूकाबुरा गेंद के साथ यह नहीं हो पाता है। गेंद की चमड़े की गुणवत्ता की भी इसमें खास अहमियत है।
एसजी कंपनी के मार्केटिंग डायरेक्टर पारस आनंद का कहना है कि भारतीय क्रिकेटर चमड़े की क्वालिटी के आधार पर गेंद को एक तरफ घिसते हैं। ऐसे में एक तरफ चमक बरकरार रहती है जिससे उन्हें मनचाहा घुमाव मिलता है। सभी जानते हैं कि टीम इंडिया में भुवनेश्वर स्विंग गेंदबाज हैं, लेकिन कूकाबुरा से उन्हें गेंद स्विंग कराने में चुनौती साबित हो सकती है। अगर ऐसा होगा तो भुवी को अपने तरकश से कई नए तीर निकालने होंगे।
खास बात-
1. एसजी की गेंद 1991 से टेस्ट क्रिकेट में मान्यता प्राप्त। भारत के साथ बांग्लादेश में भी इस्तेमाल।
2. कूकाबुरा की गेंद ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, एवं श्रीलंका में इस्तेमाल होती है।
3. वेस्टइंडीज, पाकिस्तान एवं इंग्लैंड में ड्यूक कंपनी की गेंदों से टेस्ट मैच होता है। यह गेंद भी एसजी की तरह मोटी सीम वाली होती है।