सुरसरि को अविरल बहने दो
हरिराम द्विवेदी गंगा भारतीय संस्कृति की प्रवाहमान धारा है। यहां के जन मानस ने गंगा को मां की तरह पूजा है। गंगा को मुक्तिदायिनी की संज्ञा दी गयी है वह जीवनदायिनी भी हैं।
बनारस। हरिराम द्विवेदी गंगा भारतीय संस्कृति की प्रवाहमान धारा है। यहां के जन मानस ने गंगा को मां की तरह पूजा है। गंगा को मुक्तिदायिनी की संज्ञा दी गयी है वह जीवनदायिनी भी हैं। गंगा की पवित्रता का दृष्टान्त देकर लोग कसमें खाते हैं। गंगा लोक की आस्था से जुड़ी हैं। लोक की इसी मर्यादा की रक्षा के लिए अविरल एवं निर्मल गंगा की मांग को लेकर संत समाज ने तपस्या का जो अभियान चलाया है, उस अभियान के साथ पूरा जनमानस जुड़ा है। लोग सन्तों के प्रति श्रद्धावनत हो उनकी पूजा करते हैं, उनका आदर करते हैं। उनके इस अभियान के प्रति भी लोगों का पूरा समर्थन है। काशी में गंगा की गति की जो दुर्गति है उससे न केवल पीड़ा होती है बल्कि लज्जा का अनुभव होता है। बाहर से जो लोग श्रद्धा भरकर आते हैं गंगा की दुर्दशा देखकर नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं। एक उक्ति है काश्यां मरणान्मुक्ति और दूसरी उक्ति है गंगा तव दर्शनात्मुक्ति। इनमें लोग किस पर भरोसा करें। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी, मां गंगा के तट पर बसी अ?र्द्धवृत्ताकार अत्यन्त मनमोहक छवि से लसी काशी नगरी अपनी अप्रतिम सुबह के लिए विश्व प्रसिद्ध है। उस काशी में सुरसरि गंगा की दुर्दशा असहनीय पीड़ा देती है। कितने दिनों से इस दिशा में गुहार लगाई जा रही है पर कोई सुधार नहीं। आखिर कब तक चुप रहा जाय। कितना दर्द सहा जाय। आज जो स्थिति आई है उसका जिम्मेदार कौन है। गंगा की जलधारा निर्मल तभी होगी जब उसका अविरल प्रवाह बना रहेगा। प्रवाह रुक जाने से उसकी गुणवत्ता तो प्रभावित होती है, जगह-जगह मिलते हुए अवजल से धारा प्रदूषित हो जाती है जो जन-जीवन के लिए घातक है। वरुणा और अस्सी नदियों की दशा देखकर करुणा होती है। ये गन्देनाले में तब्दील होकर गंगा में मिल रही हैं जिसका परिणाम सामने है। एक ओर बांधों की बेड़ी में जल के प्रवाह को रोक दिया गया। दूसरी ओर जगह-जगह पानी उठाकर नहरों में बहाकर उसे और क्षीण कर दिया गया। प्रवाह के लिए जो कुछ बचा उसमें नगरों, महानगरों, कल कारखानों के अवजल मिलाये गये। फिर उसमें कितनी निर्मलता हो सकती है। इस लिए उसे कायम रखने के लिए जरुरी है उसे निर्बाध गति से बहने दिया जाये। जो भी अवजल मिल रहे हैं उन्हें रोका जाय उनका शोधन करके ही गंगा में गिराया जाय। हम अपने संतों के प्रति श्रद्धावनत हैं। वे स्वस्थ रहें और हमारा मार्ग दर्शन करते रहें। भारत सरकार ने ही गंगा को राष्ट्रीय नदी की संज्ञा दी है। राष्ट्र की यह अप्रतिम सम्पदा जो लोक की श्रद्धा आस्था और संवेदनाओं से जुड़ी है। उसकी पवित्र मर्यादा की रक्षा आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। सुरसरि गंगा की यह वेदना पूरे लोक की वेदना है, पूरी मानवता की वेदना है। इस लिए गंगा को बिना किसी व्यवधान के अविरल बहने दिया जाय ताकि उस की निर्मलता बनी रहे जिससे लोक कल्याण की परम्परा टूटने से बच जाये। गंगा साधारण नदी नहीं हैं। वह क्या है इसे जानने की जरूरत है। मर्यादा है इस देश की पहचान है गंगा, पूजा है, धरम है, ईमान है गंगा। दूषित न करे कोई यह अमृत की धार है। ममता-भरी धरती के गले का सिंगार है।आदर्श प्रवाहित है कि पावन विचार है, हर लहर में लिखा पवित्र मां का प्यार है। अपने में ही सम्पूर्ण हिन्दुस्तान है गंगा मर्यादा है इस देश की पहचान है गंगा। (लेखक हिन्दी व भोजपुरी के लब्ध साहित्यकार हैं)
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