विराट कोहली के इस कदम पर उठ रहा है ये बड़ा सवाल, आखिर क्यों कर रहे हैं ऐसा?
कोहली दरअसल शुरू से ही विवाद प्रेमी रहे हैं और क्रिकेट बोर्ड व भारतीय क्रिकेट को लेकर मनमानी करते रहे हैं।
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने खिलाड़ियों के लिए पारिश्रमिक बढ़ाने की मांग की है। उन्होंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की ओर संकेत करते हुए कहा कि खिलाड़ियों को उनकी मेहनत का पर्याप्त पारिश्रमिक मिलना चाहिए। यह भी कहा कि चैंपियन ट्राफी के बाद से लगातार जारी सीरीज के चलते खिलाड़ियों को आराम व अभ्यास का समय नहीं मिल पाता। उनकी मेहनताने की बात में तो दम है क्योंकि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड खिलाड़ियों की बदौलत ही कमा रहा है, लेकिन उन्हें मेहनताना बहुत कम देता है। यह मांग सुनील गावस्कर और संदीप पाटिल जैसे वरिष्ठ खिलाड़ी भी अपने समय पर उठा चुके हैं। कभी कभी तो भुगतान में भी काफी देरी कर दी जाती है पर अभ्यास व विश्राम संबंधी वक्तव्य गले नहीं उतरता क्योंकि उनका यह बयान खास तौर पर दक्षिण अफ्रीका के दौरे के संदर्भ में आया है जो कि श्रीलंकाई टीम के वर्तमान दौरे के तत्काल बाद शुरू होना है।
कोहली ने पहले क्यों नहीं मांगा आराम?
इससे पहले खेली गईं लगातार चार सीरीज के दरम्यान उन्हें कोई थकावट महसूस नहीं हुई और न ही उन्हें अभ्यास करने में समय की कमी या जरूरत महसूस हुई। ऐसा नहीं है कि इन चारों सीरीज के दौरान बिल्कुल भी अंतराल नहीं रखा गया। उनका यह बयान न केवल निराशाजनक है बल्कि हैरान कर देने वाला भी है क्योंकि जितनी लगातार सीरीज व मैच खेलने की वे दुहाई दे रहे हैं उससे कहीं बहुत ज्यादा मैच तो इंग्लिश काउंटियों की लीग में लगातार खेले जाते हैं। वैसे भी आराम व अभ्यास की बात कोहली जैसी शख्सियत की छवि के विपरीत है क्योंकि इन्हीं मुद्दों पर मतभेदों के चलते वे पूर्व कोच अनिल कुंबले की विदाई करा चुके हैं।
दिग्गजों ने नहीं किया ऐसा
दरअसल घरेलू मैदानों पर लगातार जीत दर्ज कर रहे विराट इस तथ्य से भली भांति परिचित हैं कि भारत का विदेशी दौरों पर प्रदर्शन अधिकांशत: घटिया रहा है। उन्हें इस बात का भी आभास है कि आगामी 27 दिसंबर से शुरू होने वाला दक्षिण अफ्रीकी दौरा उनके लिए बेहद कठिन साबित होगा क्योंकि दक्षिण अफ्रीकी टीम भी इस समय वैश्विक स्तर पर बेहद मजबूत है और वहां कि उछाल वाली तेज पिचों पर भारत के स्टार बल्लेबाजों के लिए अपना जौहर दिखाना आसान नहीं होगा और न ही वहां स्पिनरों का जादू चल पाएगा। कोहली के बयान से ऐसा लग रहा है कि वे खेलने से पहले ही हिम्मत हार बैठे हैं क्योंकि लगातार क्रिकेट खेलने वालों की जमात में वे अकेले नहीं हैं। इससे पूर्व ऑस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका की टीमों ने अस्सी व नब्बे के दशक के दौरान लगातार बड़ी बड़ी सीरीज खेली हैं पर उनके कप्तानों अथवा खिलाड़ियों ने कभी इस पर एतराज नहीं जताया। नब्बे के दशक में ऑस्ट्रेलियाई कप्तान एलन बॉर्डर ने तो लगातार पांच सीरीज खेलने के अलावा वन डे सीरीज भी खेली थी।
कोहली को विवाद से है लगाव !
कोहली दरअसल शुरू से ही विवाद प्रेमी रहे हैं और क्रिकेट बोर्ड व भारतीय क्रिकेट को लेकर मनमानी करते रहे हैं। खबरें तो यहां तक हैं कि अब टीम के पूर्व कप्तान धोनी व जडेजा जैसे वरिष्ठ खिलाड़ियों के साथ तालमेल तक बिठा पाने में उन्हें कठिनाई महसूस होने लगी है और जिस अनुशासन और अभ्यास का आज वे उठा रहे हैं उस को लेकर ही टीम के पूर्व कोच अनिल कुंबले की उनसे अनबन हो गयी थी और अंत में जो कुछ हुआ वह इतिहास है। कड़े मिजाज व अनुशासन प्रिय अनिल कुंबले उनसे जमकर अभ्यास कराते थे जोकि उनको पसंद नहीं था और आज वही कोहली अभ्यास की बात कर रहे हैं। अभ्यास ज्यादा से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने से होता है और इस दौरान वरिष्ठ खिलाड़ियों को आराम देकर नवोदित खिलाड़ियों की फौज तैयार की जाती है। ऑस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका की लगातार सफलता के पीछे यही सिद्धांत है जो कि भारत समेत अन्य देशों में नहीं अपनाया जाता। खासकर अपने देश में बोर्ड व चयन समिति से ज्यादा कप्तान को तवज्जो दी जाती है जिससे सही मायनों में प्रतिभाशाली व नवोदित खिलाड़ियों का प्रादुर्भाव नहीं हो पाता और पूरी टीम कप्तान के चहेते चंद खिलाड़ियों के इर्द गिर्द सिमटी रहती है।
भाग्य के धनी हैं कोहली
कोहली की टीम व उनके खेल का विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि चैंपियंस ट्राफी जीतने में असफल रहे कोहली ने पिछली चार सीरीज के अधिकांश मैच में उत्कृष्ट प्रदर्शन से नहीं बल्कि भाग्य के सहारे जीते हैं। हाल ही में संपन्न न्यूजीलैंड सीरीज के आखिरी मैचों में मात्र छह छह रनों से जीतना इसका ज्वलंत प्रमाण है। श्रीलंका के खिलाफ सीरीज का पहला मैच न जीत पाना इस बात का साफ द्योतक है कि मुश्किल परिस्थितियों में कोहली फेल हो जाते हैं और अंतत: सारा खेल एकतरफा हो जाता है। चैंपियंस ट्राफी में भी यही हुआ था।
कप्तान का महत्व टीम से ज़्यादा
भारतीय क्रिकेट के साथ दिक्कत यह रही है कि इसमें देश व टीम हित के बजाये कप्तान को ज्यादा महत्व दिया जाता है और खराब प्रदर्शन के बावजूद उसके पसंदीदा खिलाड़ी का स्थान टीम में बरकरार रहता है पर अच्छा प्रदर्शन कर रहे अथवा अच्छी फार्म में चल रहे खिलाड़ी बाहर बैठे अपने नसीब को कोसते रहते हैं। युवराज व प्रवीण कुमार जैसे तमाम खिलाड़ी इसके उदाहरण हैं। पूर्व में कई दिग्गज कप्तानों पर इस तरह के आरोप लग चुके हैं।
दूसरे देशों में नहीं होता ऐसा
ऑस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका में लगातार क्रिकेट के दरम्यान नई नई प्रतिभाओं को मौका देकर सीनियर खिलाड़ियों को अवकाश दे दिया जाता है। अपने देश में यह सब आज भी दूर की कौड़ी है। अव्वल तो कोई भी सीनियर खिलाड़ी अपना स्थान छोड़ना ही नहीं चाहता, और यदि किसी को विश्राम दे भी दिया गया तो बयानबाजी और राजनीति शुरू कर दी जाती है। टीम के पूर्व कप्तान अजहरूद्दीन व सौरव गांगुली के समय में ऐसा कई बार हुआ है। बहरहाल ,यदि कोहली क्रिकेट ज्यादा खेलने से थक गए हैं तो चयनकर्ताओं को उन्हें छोटा मोटा नहीं बल्कि लंबा विश्राम देकर अन्य किसी योग्य खिलाड़ी के हाथों में दक्षिण अफ्रीकी दौरे की कमान सौंप देनी चाहिए।
कपिल अग्रवाल (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) (ये लेखक के निजी विचार हैं।)