1986 में इंग्लैंड में टेस्ट जीत के हीरो ने कहा- खुश हूं जैसा भी मेरा करियर रहा
गावस्कर और विश्वनाथ की मौजूदगी में वेंगसरकर को भले ही वैसी शोहरत नहीं मिली लेकिन इसका कोई मलाल नहीं है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। सुनील गावस्कर और गुंडप्पा विश्वनाथ जैसे दिग्गजों के समय अपनी अगल बल्लेबाजी के पहचान बनाने वाले दिलीप वेंगकरकर अपने करियर से खुश हैं। गावस्कर और विश्वनाथ की मौजूदगी में वेंगसरकर को भले ही वैसी शोहरत नहीं मिली लेकिन इसका कोई मलाल नहीं है।
सोमवार को 63 वर्ष के हुए भारत के लिए 16 साल तक खेलने वाले वेंगसरकर ने कहा, 'जब मैं पीछे देखता हूं तो काफी अच्छा और संतोषजनक सफर रहा। भारत के लिए 116 टेस्ट खेलना सबसे बड़ा संतोष है और 129 वनडे भी खेले हैं। इसके साथ भारत की कप्तानी। यह शानदार सफर रहा।'
वेंगसरकर को क्या महसूस होता है कि उन्हें वह श्रेय नहीं मिला जिसके वह हकदार थे, यह पूछने पर उन्होंने कहा, 'यह भाग्य की बात है। आपको कड़ी मेहनत करके ईमानदारी से खेलकर टीम के लिए मैच जीतने होते हैं। यह हर क्रिकेटर का लक्ष्य होना चाहिए। इस तरह से जो भी उपलब्धियां या पहचान मिलती है, आपको श्रेय मिलता है या नहीं, यह सब भाग्य की बात है।'
1986 का यादगार दौरा
भारतीय टीम ने इंग्लैंड के दौरे पर टेस्ट सीरीज अपने नाम कर इतिहास रचा था। पहला टेस्ट भारत ने 5 विकेट से जीता था जबकि दूसरा मुकाबला 279 रन से अपने नाम किया था। तीसरा मुकाबला बराबरी पर खत्म हुआ था और सीरीज भारत ने जीती। दोनों ही मुकाबले में वेंगसरकर ने शतक बनाया था। पहले मैच में पहली पारी में नाबाद 126 जबकि दूसरे टेस्ट में दूसरी पारी में नाबाद 102 रन की पारी खेली थी।
वेंगसरकर ने भातीय क्रिकेट टीम में जगह बनाने वाले युवा खिलाड़ियों से घरेलू क्रिकेट को महत्व देने की सलाह दी। उनका कहना था कि वो टीम में अपनी जगह बनाने के बाद भी रणजी ट्रॉफी और दलिप ट्रॉफी में खेलते थे। इसकी वजह से उनको अपनी बल्लेबाजी में लगातार सुधार करने का मौका मिलता था।