Move to Jagran APP

दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर दृष्टिबाधित छात्रा बनी टापर, बेटी की पढ़ाई के लिए मां और पिता ने छोड़ी नौकरी, गोल्ड मेडल से सम्मानित

हिदायतुल्ला नेशनल ला यूनिवर्सिटी रायपुर से बीए एलएलबी (आनर्स) 2021 बैच की टापर दृष्टिबाधित छात्रा यवनिका की मां स्पेशल एजुकेटर के तौर पर काम कर रही थीं। उन्होंने बेटी की पढ़ाई में मदद के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। बेटी की सफलता पर वे फूली नहीं समाईं।

By Priti JhaEdited By: Published: Mon, 01 Aug 2022 03:12 PM (IST)Updated: Mon, 01 Aug 2022 03:32 PM (IST)
दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर दृष्टिबाधित छात्रा बनी टापर, गोल्ड मेडल से सम्मानित

रायपुर, ऑनलाइन डेस्क। मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसले से उड़ान होती है। ये कविता हम हमेशा ही सुनते आए हैं, लेकिन इसे चरितार्थ करके दिखाया है दिल्ली की रहने वाली एक दृष्टिबाधित छात्रा यवनिका ने। यवनिका रायपुर के हिदायतुल्ला नेशनल ला यूनिवर्सिटी से बीए एलएलबी (आनर्स) 2021 बैच की टापर हैं और इन्होंने प्रोफेशनल एथिक्स में गोल्ड मेडल हासिल किया है। यवनिका को ये गोल्ड मेडल यूनिवर्सिटी के पांचवें दीक्षा समारोह में चीफ जस्टिस आफ इंडिया की मौजूदगी में प्रदान किया गया।

loksabha election banner

मालूम हो कि यवनिका दृष्टिबाधित छात्रा हैं, लेकिन उन्होंने इसे कभी भी अपनी कमजोरी नहीं समझी, बल्कि उनके हौसले उन्हें उड़ान भरने के लिए लगातार प्रेरित करते रहे। यवनिका ने फैसला लिया कि वे ला की पढ़ाई करेंगी। यवनिका ने रायपुर के हिदायतुल्ला नेशनल ला यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया।

खुद के लिए नई मंजिल तय की

जानकारी हो कि दिल्ली की रहने वाली यवनिका के पिता भारतीय रेल सेवा में अधिकारी हैं और मां स्पेशल एजुकेटर के तौर पर काम कर रही थीं। उन्हें कोई परेशानी न हो, इसके लिए उनकी मां ने अपनी नौकरी छोड़ दी और उनके साथ ही रायपुर में पांच वर्ष तक रहीं। अपनी मंजिल को पाने में यवनिका ने पूरी जान लगा दी और आखिरकार वे इसमें कामयाब भी हुईं। इतना ही नहीं, यवनिका ने खुद के लिए नई मंजिल तय की है और इसे पाने के लिए वह नेशनल ला कालेज बेंगलुरु में एलएलएम कोर्स में एडमिशन लेकर पढ़ाई भी कर रही हैं। उनका कहना है कि रायपुर की पांच साल की जर्नी में कालेज, फैकल्टी और साथी स्टूडेंट्स ने उसका बहुत सपोर्ट किया, जिसके लिए वह हमेशा उनकी आभारी रहेंगी ।

दृष्टिबाधित यवनिका को मिला गोल्ड

बच्चों का भविष्य संवारने के लिए मां-बाप जो त्याग-तपस्या करते हैं, वह अतुलनीय है। हम यहां ऐसी ही दो विभूतियों का उल्लेख कर रहे हैं, जो तमाम अभिभावकों के लिए प्रेरणास्तोत्र हैं। हिदायतुल्ला नेशनल ला यूनिवर्सिटी, रायपुर से बीए एलएलबी (आनर्स) 2021 बैच की टापर दृष्टिबाधित छात्रा यवनिका की मां स्पेशल एजुकेटर के तौर पर काम कर रही थीं। उन्होंने बेटी की पढ़ाई में मदद के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। बेटी की सफलता पर वे फूली नहीं समाईं। इसी तरह एचएनएलयू में ओवर आल टापर रहीं पल्लवी मिश्रा के पिता ने भी बेटी का जीवन संवारने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। बेटी की सफलता पर उन्होंने कहा कि उनका त्याग सफल हो गया। पल्लवी को 11 गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया है।

दृष्टिबाधित के लिए पढ़ाई ब्रेल लिपि में

दृष्टिबाधित के लिए पढ़ाई ब्रेल लिपि में होती है। तब इस यूनिवर्सिटी में कोई बंदोबस्त नहीं था। यवनिका ने बताया- मैंने अपने हक के लिए संघर्ष किया। कुलपति का सहयोग मिला। छठवें सेमेस्टर में मुझे नोट्स मिला। मां ने पढ़ाई में मदद की। यवनिका 2021 बैच की टापर हैं और इन्होंने प्रोफेशनल एथिक्स में गोल्ड मेडल हासिल किया है। वहीं यवनिका को पसंद नहीं कि कोई दृष्टिबाधित बच्चों के संघर्ष को नजर अंदाज करे, उन्हें दया के भाव से अफसोस के साथ देखे।

पल्लवी ने छोड़ी एक करोड़ की नौकरी

वहीं, पल्लवी मिश्रा एचएनएलयू में ओवर आल टापर रहीं। उन्हें 11 गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। लंदन की ला फर्म ने पल्लवी को सालाना एक करोड़ की नौकरी का आफर किया, लेकिन इस आफर को पल्लवी ने ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि वे देश के लिए कुछ करना चाहती हैं। पल्लवी ने बताया कि वह ला प्रैक्टिस करना चाहती हैं। इससे अपने लिए और समाज काम कर सकेंगी। फर्म में काम करतीं तो पैसे जरूर मिलते, मगर जज बनने का सपना पूरा नहीं होता। पल्लवी ने कहा कि वह जज बनकर देश की न्याय व्यवस्था और लोगों में कानून के प्रति जागरूकता पर काम करूंगी। अब दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ताओं के साथ काम करते हुए पल्लवी जज बनने की तैयारियों में जुट जाएंगी। 10 सेमेस्टर में से छह में वे टापर रही हैं।

पिता ने कहा- मेरा त्याग सफल हो गया

पल्लवी के पिता आशुतोष मिश्रा इस वक्त ला प्रैक्टिसनर हैं। 20 सालों तक इंडियन ट्रेड सर्विस में बतौर अफसर काम किया। यूपीएससी क्लियर करने बाद मिली इस नौकरी को पिता ने बेटी की खातिर छोड़ दिया, क्योंकि परिवार दिल्ली में था और वे मुुंबई में रहकर काम कर रहे थे, बेटी का भविष्य संवरे, इस दिशा में समय नहीं दे पा रहे थे। उन्होंने खुद बेटी को पढ़ाई में मदद की। अब उनका कहना है कि बेटी ने जो हासिल किया है। उसके बाद मेरा त्याग सफल हो गया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.