एक तरफ खस्ताहाल सड़कों पर डगमगाती जिंदगी तो दूसरी तरफ शराबबंदी पर राजनीतिक हिचकोले
सड़कों के जाल में उलझाव बढ़ता जा रहा है। गड्ढों के साथ हिचकोले भी हैं और इसी के बीच पर्यटन मंडल के होटलों में दोपहर 12 बजे से रात 12 बजे तक शराब बिक्री की अनुमति ने नया मुद्दा खड़ा कर दिया है।
सतीश चंद्र श्रीवास्तव। प्रदेश की राजनीति में इन दिनों दो बातों की ही चर्चा जोरों पर है। एक तरफ सड़क के गड्ढे हैं तो दूसरी तरफ शराबबंदी पर राजनीतिक हिचकोले हैं। धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन दुर्गा पूजा-दशहरा और क्रिकेट के भगवान समझे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के नेतृत्व में रोड सेफ्टी मैचों को जाते मानसून की बारिश ने शुरू में भले प्रभावित किया हो, परंतु पर्यटन विभाग के होटलों और मोटलों को भी बार लाइसेंस देने के आदेश ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा के माहौल को गर्म कर रखा है। साथ ही आजकल राज्य में उछला हुआ है सड़कों की बदहाली का मुद्दा।
आम लोगों के बीच चिंता और चर्चा का विषय बन चुकी खराब सड़कों के मुद्दे को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी गंभीरता से लिया और भेंट मुलाकात कार्यक्रमों में लगातार मिल रही शिकायतों के आधार पर लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के इंजीनियर इन चीफ (ईएनसी) को हटा दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि फंड होते हुए भी खराब सड़कों को ठीक करने में लापरवाही बरती जा रही है।
विभाग के प्रदेश स्तरीय मुखिया के खिलाफ कार्रवाई के साथ ही मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने और प्रमुखता से इस मुद्दे को लपक लिया। अब स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता 15 साल बनाम साढ़े तीन साल की तुलनात्मक लड़ाई पर उतर आए हैं। निर्मित सड़कों की लंबाई पर भी उलझाव है। पीडब्ल्यूडी मंत्री ताम्रध्वज साहू को स्वयं बचाव में उतरना पड़ा है और उन्होंने इंटरनेट मीडया पर राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय द्वारा सड़क पर गड्ढों के बीच खड़े होकर प्रसारित चित्र और वीडियो पर जवाबी हमला करते हुए आरोप लगाया है कि सरोज की यह पुरानी आदत है।
साहू ने दावा किया कि सड़कें बनाने के लिए पहले उन्हें खोदना पड़ता है। ऐसा हो नहीं सकता कि रातोंरात सड़क बन जाए। अब खोदी सड़कों और टूटी सड़कों में भेद पर दावे-प्रतिदावे की प्रक्रिया आगे बढ़ गई है। इधर पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के कार्यकाल में सड़क निर्माण के दावे पर भी कांग्रेस हमलावर हो रही है। ताम्रध्वज का दावा है कि जब प्रदेश में 32 हजार किलोमीटर सड़के ही हैं तो भाजपा शासनकाल में 62 हजार किमी सड़कों का निर्माण कहां हो गया?
जवाब में डा. रमन सिंह और पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने आंकड़े पेश करते हुए प्रश्न किया है कि क्या ग्रामीण सड़कों को राज्य सरकार अपना नहीं मानती? कांग्रेस के मंत्री और प्रवक्ता राष्ट्रीय राजमार्ग, राजकीय राजमार्ग के साथ मुख्य जिला मार्गों और ग्रामीण मार्गों को ही जोड़ कर 32 हजार किमी बता रहे हैं, जबकि भाजपा की तरफ से 15 वर्षों के शासनकाल में बने 25 हजार किमी प्रधानमंत्री सड़क योजना और मुख्यमंत्री सड़क योजना की साढ़े चार हजार किमी सड़क को भी 62 हजार किमी के आंकड़े में जोड़ा जा रहा है। इस तरह खराब सड़कों की लड़ाई में सड़कों की लंबाई को भटकाव के रूप में प्रविष्ट कराने की राजनीति भी आगे बढ़ रही है। सड़कों के जाल में उलझाव बढ़ता जा रहा है। गड्ढों के साथ हिचकोले भी हैं और इसी के बीच पर्यटन मंडल के होटलों में दोपहर 12 बजे से रात 12 बजे तक शराब बिक्री की अनुमति ने नया मुद्दा खड़ा कर दिया है। सड़क दुर्घटनाओं, शराब और सड़क के गड्ढों की सीधा संबंध है।
भाजपा ने शराब को इसलिए भी मुद्दा बना दिया है, क्योंकि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान जन घोषणापत्र में प्रदेश में शराबबंदी का वादा किया था। अब कांग्रेस के नेता सफाई दे रहे हैं कि आंध्र प्रदेश और हरियाणा की तरह जल्दबाजी में निर्णय नहीं लिया जा सकता। शराबबंदी पर राजनीतिक समिति के अध्यक्ष रायपुर के कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा का तर्क है कि गुजरात में सभी जगहों पर शराब उपलब्ध है और 2016 से बिहार में शराबबंदी के बाद हर वर्ष सैनिटाइजर और जहरीली शराब पीने से सैकड़ों लोगों की मौत हो रही है। वहां अदालतों में ढाई लाख मामले लंबित हो चुके हैं। आक्रामक होते हुए सत्यनारायण शर्मा ने कह दिया कि शराबबंदी भजपा का मुद्दा है, जनता का नहीं।
जवाब में भाजपा ने नारा दे दिया, ‘भूपेश सरकार का एक ही नारा, एक ही काम- बेचो दारू वसूलो दाम।’ भाजपा यह भी दावा कर रही है कि कांग्रेस ने जनघोषणा पत्र के सभी वचनों को पूरा करने के लिए गंगाजल लेकर कसम खाई थी। इसलिए पदयात्रा की घोषणा के साथ एक और नारा जोर पकड़ रहा है, ‘गंगाजल के सम्मान में, भाजपा मैदान में।’ सीएम भूपेश बघेल बीच का रास्ता निकालने की बात करते हुए कह रहे हैं कि जनता के सहयोग से ही शराबबंदी होगी। वह चाहते हैं कि गांव के लोग प्रस्ताव लाएं, ताकि सरकार सकारात्मक निर्णय ले सके।
[संपादकीय प्रभारी, नई दुनिया, रायपुर]