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आजादी का प्रतीक बना 67 साल पुराना पेड़

By Edited By: Published: Fri, 15 Aug 2014 03:01 AM (IST)Updated: Fri, 15 Aug 2014 02:07 AM (IST)
आजादी का प्रतीक बना 67 साल पुराना पेड़

कृष्ण गोपाल मित्तल, कटघोरा रायपुर, [बिलासपुर]। अब तक हमने हरे-भरे दरख्तों को प्रकृति प्रेमियों की नजर में खूबसूरती, वैज्ञानिकों के लिए प्राणवायु का संचालक व धार्मिक दृष्टि से ईश्वर के रूप में ही जाना। अब एक ऐसे वृक्ष के बारे में भी जानिए, जिसे लोग देश भक्ति से ओत-प्रोत होकर आजादी के दिन की याद में पूजते हैं। 67 साल पहले 15 अगस्त 1947 को ठीक आजादी के दिन गांव के तीन लोगों ने बरगद का पौधा गांव की चौपाल में लगाया था। अब यह वट वृक्ष विशाल हो गया है। तब से लेकर अब तक हर साल लोग स्वतंत्रता की प्रत्येक वषर्षगांठ पर इसकी छांव में एकत्र होकर वंदना करते हैं और आजादी का उत्सव मनाते हैं।

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स्वतंत्रता के 67वीं वर्षगांठ का उत्सव पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाएगा। जगह-जगह आन-बान और शान से तिरंगा फहराया जाएगा। वर्षो के संघर्ष व हजारों के बलिदान से मिली आजादी के इस उत्सव को पो़़डी-उपरो़़डा के ग्राम पंचायत लखनपुर में एक अनोखे रिवाज के साथ मनाया जाएगा। लगभग 800 की आबादी वाले इस गांव में स्वतंत्रता दिवस का पर्व नए उत्साह व उमंग लेकर आता है। कटघोरा से मात्र 4 किलोमीटर की दूर बांकीमोंगरा मार्ग पर स्थित इस गांव में इस एक दिन के लिए बुजुर्गो व महिलाओं से लेकर बच्चा-बच्चा 67 वर्ष पुराने एक पेड़ की छांव में सिमट जाते हैं। खास बात यह है कि बरगद का यह पे़़ड 67 वर्ष पहले 15 अगस्त 1947 को ठीक स्वतंत्रता के दिन ही लगाया गया था। गांव के तीन देशभक्त ग्रामीणों ने देश की आजादी उस तिथि की याद में यह बरगद का वह पौधा रोपा था, जो आज एक विशाल वृक्ष बन चुका है। गांव के लोगों का कहना है कि बार-बार मांग किए जाने के बावजूद प्रशासन व गांव के सरपंच द्वारा इस पे़़ड को सुरक्षित रखने कोई इंतजाम नहीं किए जा रहे हैं। उन्होंने देश की स्वतंत्रता के उस पावन दिन की याद में लगाए गए इस ऐतिहासिक वृक्ष के संरक्षण की मांग की है।

नई पी़़ढी के लिए प्रेरणा

गांव के 85 वर्षीय बुजुर्ग घासीराम गों़़ड ने बताया कि अंग्रेजों की 150 वषर्षो की गुलामी से मुक्ति व देश की आजादी की खुशी तो सब मनाते हैं, लेकिन उसके पीछे देश के वीर सपूतों के संघर्ष को सम्मान नहीं मिलता। ऐसे में गांव के तीन लोगों फिरतूराम साहू, गोवर्धन साहू व रोंगसूराम कंवर ने आने वाली पी़़ढी को प्रेरित करने के उद्देश्य से यह वृक्ष रोपा था। गांव के युवा जब-जब इस वृक्ष की छांव से गुजरें, उन्हें अपनी आजादी का दिन याद आए। हजारों-लाखों के बलिदान से मिली स्वतंत्रता का मोल समझें और इसे संभालकर रखें। घासीराम ने बताया कि जब यह पे़़ड लगाया गया था, तब यह गांव महज 8 से 10 घरों का एक टोला था। घने जंगलों वाले शहर से दूर इस वीरान गांव में संचार के ऐसे माध्यम नहीं थे कि कोई उन तक स्वतंत्रता मिलने की खबर पहुंचा सके। ऐसे में गांव के एक मात्र पांचवीं पास फिरतू साहू ने आजादी के देशव्यापी उत्सव में पूरे गांव के शरीक होने की बात कही। उन तीन लोगों ने मिलकर गांव में एक छोटे से उत्सव की योजना रखी और यह पे़़ड प्रतीक स्वरूप रोपा गया।

एक बुजुर्ग आज भी है साक्षी

गांव के पटवारी ओंकार प्रसाद यादव ने बताया कि भारत की आजादी के दिन गांव के तीन बुजुर्गो ने प्रतीक स्वरूप बरगद का एक पौधा लगाया था। संयोग से मेरा जन्म भी अगस्त 1947 को ही हुआ था। ठीक मेरे घर के दरवाजे के सामने ही रोपा गया वह पौधा आज विशाल पे़़ड बन चुका है, जिसे मैं अपने ब़़डे भाई की तरह ही मानता हूं।

वृक्ष को लगाने वाले रोगसूराम कंवर के पुत्र इतवार साय को गर्व है कि उनके पिता ने देश की स्वतंत्रता के पहले दिन वह पौधा लगाया था। आज उस वृक्ष के सामने मेरा सर श्रद्धा से झुक जाता है। उसे देखकर मुझे मेरे पिता की झलक दिखाई देती है। आजादी का वह पावन दिन और मेरे पिता याद आते हैं।

15 अगस्त 1947 को बरगद का यह पेड़ लगाने वाले तीन लोगों में एक 85 वर्षीय धनीराम गोंड़ का कहना है कि यह वृक्ष देखते ही उनका मन खुशी से झूमने लगता है। दिन में कम से कम एक बार वे उसका दर्शन करने जरूर पहुंचते हैं और उसकी छांव में बैठकर अपनी यादें ताजा करते हैं।


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