मधुमक्खी पालन से फसल पैदावार में 30 फीसद की बढ़ोतरी
बॉटनी विभाग की छात्रा कुमारी नेहा सिंह मधुमक्खी पालन, परागण और शहद की शुद्धता जैसे महत्वाकांक्षी विषय पर शोध कर रही हैं।
बिलासपुर। प्रदेश के जिन इलाकों में मधुमक्खी की बहुतायत है, और जहां ये परागण करती हैं, वहां के किसान संपन्न्ता में अन्य क्षेत्रों के कृषकों से बहुत आगे हैं। क्षेत्र विशेष के लिए मधुमक्खी खुशहाली और संपन्न्ता का पर्याय बन गई है। मधुमक्खी की परागण और शुद्धता पर जारी शोध के प्रारंभिक नतीजे बताते हैं कि जिस क्षेत्र विशेष में मधुमक्खियों का बसेरा है, वहां फसल का उत्पादन अन्य क्षेत्र की तुलना में तकरीबन 30 फीसद अधिक है। यह परंपरागत तरीके से खेती करने वाले किसानों की फसल के उत्पादन का आंकड़ा है। गौर करने वाली बात ये है कि प्रदेश में अपनी तरह का यह पहला रिसर्च है।
गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग की छात्रा कुमारी नेहा सिंह मधुमक्खी पालन, परागण और शहद की शुद्धता जैसे महत्वाकांक्षी विषय पर शोध कर रही हैं। रिसर्च का पूरा फोकस प्रत्येक 10 ग्राम शहद में किस अनुपात में परागण होता है। साथ ही मौसम परिवर्तन के अनुसार शहद के बदलने वाले रंग और गुण पर भी सूक्ष्मता के साथ निगरानी रखी जा रही है। शोध के केंद्र में प्रत्येक सीजन में मधुमक्खियों द्वारा दिए जाने वाले शहद में परागण की मात्रा और शुद्धता को रखा गया है। रिसर्च के दौरान दूरस्थ जंगली क्षेत्रों के अलावा ऐसे इलाके, जहां मधुमक्खियों की संख्या बहुतायत में है और परंपरागत तरीके से क्षेत्र विशेष के आसपास रहकर ये अपनी गतिविधियों को संचालित करती हैं, जैसी जगहों पर विशेषतौर पर पड़ताल की गई। इन क्षेत्रों में फसल उत्पादन के नजरिए से आश्चर्यजनक व चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं। रिसर्च में इस बात का खुलासा किया गया है कि मधुमक्खियों की बसाहट वाले क्षेत्र में अन्य जगहों की तुलना में फसल उत्पादन में 30 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिल रही है। गौर करने वाली बात ये है कि सभी किसान परंपरागत तरीके से खेती-किसानी करने वाले हैं। शोध में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि उन्न्त खेती करने वाले किसान जिस हिसाब से खाद का प्रयोग करते हैं, उसके मुकाबले मधुमक्खियों के रहवास वाले इलाके में फसल का उत्पादन भी ज्यादा है। ये आंकड़े वनांचलों में जहां मधुमक्खियां बहुतायत में है, उस क्षेत्र विशेष का है।
इस तरह चलता है चक्र
वनांचलों में जहां मधुमक्खियां बहुतायत में पाई जाती है, फूल व पौधों मंे परागण करती है। यही परागण क्रॉप को बढ़ाता है। इससे चौतरफा लाभ होता है। पर्यावरण को शुद्ध रखने के साथ-साथ किसानों को फसल उत्पादन में लाभ मिल रहा है। वहीं शुद्ध शहद भी प्राप्त हो रहा है। जंगली क्षेत्र की मधुमक्खियां पेड़ों में उगे फूलों का रस लेती हैं। जाहिर है, वनांचल में विभिन्न् प्रजातियों के पौधे व जड़ी-बूटियों के पौधे भी होते हैं। इनके फूलों के रस लेकर मधुमक्खियां परागण करती हैं। पर्यावरण के कुशल संवाहक के रूप में भी इनकी भूमिका बेहद खास मानी जाती है। शोध के दौरान कोरबा, रायगढ़, पेंड्रा व अचानकमार क्षेत्र में विशेषतौर पर परीक्षण और अध्ययन किया गया है।
केंद्र ने जारी किया हनी सिटी का फरमान
सुश्री नेहा सिंह की शोध को तब और बल मिलते दिखाई दे रहा है, जब केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को निर्देश जारी कर प्रदेश के कम से कम एक जिले को हनी सिटी के रूप मेें विकसित किया जाए। इसके लिए मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने कहा गया है। पर्यावरण को संतुलित रखने के साथ ही उन्न्ति और विकास के लिए हनी सिटी को जरूरी बताया गया है। जारी निर्देशों पर भरोसा करें तो इसे अभियान के रूप में चलाने कहा गया है।
बॉटनी के विभाग प्रमुख नागालैंड के संपर्क में
जानकारी के अनुसार सेंट्रल यूनिवर्सिटी स्थित बॉटनी विभाग के आला अधिकारी नागालैंड में संचालित हनी मिशन के संपर्क में हैं। नागालैंड में देश का पहला और विशाल सेंटर चल रहा है, जहां शहर में परागण की मात्रा और शुद्धता की जांच की जाती है।
मधुमक्खियों के शहद में परागण की शुद्धता व हर मौसम में शहद के बदलने वाले रंग को लेकर डिपार्टमेंट की छात्रा रिसर्च कर रही है। रिसर्च के दौरान मधुमक्खियों के रहवास वाले क्षेत्रों में फसल उत्पादन में 30 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी पाई गई है। यह अच्छा संकेत है। जिस इलाके में इनका प्रभाव है, वहां पर्यावरण भी बेहद संतुलित है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हनी सिटी के रूप में जिले को विकसित करने निर्देश जारी किए हैं।
डॉ.एसके शाही, को-आर्डिनेटर, गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी
केंद्र सरकार ने निर्देश जारी कर जिले को हनी सिटी के रूप में विकसित करने के निर्देश दिए हैं। इसे अभियान के रूप में चलाने कहा गया है। केंद्र सरकार के निर्देशों के तहत आगे की कार्यवाही की जाएगी।
सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी, कलेक्टर