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शेयर मार्केट से क्यों डिलिस्ट होती है कोई कंपनी, निवेशकों पर क्या होता है असर?

शेयर मार्केट से किसी भी कंपनी आमतौर पर दो तरह से डीलिस्ट होती है। पहला कंपनी खुद अपनी मर्जी से या फिर मार्केट रेगुलेटर के दबाव में। डीलिस्टिंग की प्रक्रिया में कंपनी शेयर बाजार से हट जाती है। ऐसे में उसका लेन-देन रेगुलेटरी दायरे से बाहर हो जाता है। यहां हम आपको बताएंगे कि जब कोई कंपनी मार्केट से हट जाती है तो उसके निवेशकों का क्या होता है।

By Jagran News Edited By: Subhash Gariya Published: Thu, 18 Apr 2024 10:10 AM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2024 10:10 AM (IST)
शेयर मार्केट से कंपनी के डीलिस्ट होने के बाद निवेशकों का क्या होता है।

बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। चर्चित वेब सीरीज 'Scam 1992' का एक डायलॉग है, 'शेयर मार्केट इतना गहरा कुआं है कि यह पूरे देश के पैसों की प्यास बुझा सकता है।' यह बात तो सही है कि अगर आपको शेयर बाजार की समझ है, तो आप अच्छे-खासे पैसे बना सकते हैं। लेकिन, अगर आपने सावधानी नहीं बरती, तो यही गहरा कुआं आपके निगलने में भी पल भर की देर नहीं करेगा। इस बात को फिलहाल रिलायंस कैपिटल के निवेशकों से बेहतर शायद ही कोई समझ सके।

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कभी अनिल अंबानी के ग्रुप की शान रही रिलायंस कैपिटल का शेयर 2700 रुपये तक पहुंच गया था। लेकिन, अनिल अंबानी का बुरा दौर शुरू होने के साथ यह कंपनी भी बर्बाद हो गई। स्टॉक प्राइस गिरकर 10 रुपये के करीब आ गया। निवेशकों के करोड़ों रुपये डूब गए। खुद रिलायंस कैपिटल दिवालिया हो गई। इसे दिवालियापन प्रक्रिया के तहत हिंदुजा ग्रुप ने खरीदा और उसने कंपनी को शेयर मार्केट से डीलिस्ट करने का फैसला किया है।

अब सवाल उठता है कि रिलायंस कैपिटल के डीलिस्ट होने के बाद जिन लोगों के कंपनी का शेयर है, उनका क्या होगा? क्या उन्हें अपने पैसे वापस मिलेंगे? इन सवालों का जवाब जानने से पहले डीलिस्टिंग को समझना जरूरी है।

क्या होती है शेयर मार्केट से डीलिस्टिंग?

जब भी कोई कंपनी शेयर मार्केट में लिस्ट होना चाहती है, तो वह अपना आईपीओ लाती है और जनता को पैसों के बदले अपनी कंपनी की हिस्सेदारी देती है। इससे कंपनी और जनता दोनों को फायदा होता है। लोगों को अपने निवेश पर रिटर्न मिलता है। वहीं, कंपनी की पैसों की जरूरत पूरी हो जाती है। इस पूरे सिस्टम की निगरानी सरकार करती है, तो इस पर लोगों का भरोसा भी रहता है।

डीलिस्टिंग इसके ठीक उलट प्रक्रिया है। इसमें कंपनी शेयर बाजार से हट जाती है। ऐसे में उसका लेन-देन रेगुलेटरी दायरे से बाहर हो जाता है। हालांकि, यह काम रातोंरात नहीं होता।

क्यों डीलिस्ट होती है कोई कंपनी?

शेयर मार्केट से डीलिस्टिंग अमूमन दो तरह की होती है। एक कंपनी की अपनी मर्जी से, दूसरा मार्केट रेगुलेटर के जरिए जबरन। कंपनी अपनी मर्जी से डीलिस्ट होने का फैसला कई वजहों से करती है। जैसे कि वह अपने कारोबार को नए सिरे से खड़ा रही है, जिसके लिए डीलिस्टिंग जरूरी हो। या उसे किसी ऐसी कंपनी ने खरीद लिया हो, जो उसे जनता की नजरों से दूर रखना चाहती हो या फिर जवाबदेह ना होना चाहती हो।

वहीं, जब मार्केट रेगुलेटर SEBI किसी कंपनी को डीलिस्ट करता है, तो उसका सीधा मतलब है कि कंपनी नियमों का पालन नहीं कर रही। मतलब कि उसके कामकाज में पारदर्शिता नहीं है। वह नियमित वित्तीय रिपोर्ट नहीं दे रही या निवेशकों से कुछ ऐसा छिपा रही है, जिसका शेयर की वैल्यू पर असर पड़ सकता है। दिवालिया होने पर भी कंपनी को शेयर बाजार डीलिस्ट किया जा सकता है।

डीलिस्टिंग के बाद निवेशक क्या होगा?

जब कोई कंपनी अपनी मर्जी से डीलिस्ट होती है, तो वह अमूमन शेयर बायबैक करती है। मतलब कि जनता के पास उसके जो भी शेयर हैं, वह उसे खरीद लेती है। बायबैक में कंपनी के प्रमोटर को अमूमन शेयर को मौजूदा मार्केट रेट से ज्यादा पर खरीदते हैं।

डीलिस्टिंग के वक्त स्टॉक का मूल्य कंपनी नहीं, बल्कि शेयरहोल्डर तय करते हैं। हालांकि, यह कंपनी पर है कि वह शेयरहोल्डर के ऑफर को स्वीकार करे या फिर मना कर दे। लेकिन, मना करने की सूरत में कंपनी डीलिस्ट नहीं होगी और इसमें शेयरधारकों के साथ कंपनी को भी नुकसान पड़ सकता है।

जैसा कि अक्टूबर 2009 में सुआशीष डायमंड्स के मामले में हुआ था। कंपनी ने जिस दिन डीलिस्टिंग पर मीटिंग का एलान किया, उसी दिन शेयर 20 प्रतिशत बढ़कर 252 रुपये पर पहुंच गया। निवेशकों को लगा कि अब कंपनी मार्केट भाव पर प्रीमियम देकर शेयर खरीदेगी और उन्हें तगड़ा मुनाफा होगा।

अगले 10 में सुआशीष डायमंड्स का शेयर 88 प्रतिशत तक उछल गया। एक वक्त तो यह 395 रुपये के हाई लेवल पर भी पहुंच गया। सुआशीष डायमंड्स ने मार्च 2010 में शेयरहोल्डर क 220 रुपये का ऑफर प्राइस दिया। लेकिन, उस वक्त में ही शेयर का भाव 293 रुपये था। दो महीने बाद प्रमोटरों ने ऑफर प्राइस को बढ़ाकर 320 रुपये किया, फिर भी निवेशक नहीं माने।

आखिर में प्रमोटरों ने डीलिस्टिंग का अपना ऑफर वापस ले लिया। इससे सुआशीष डायमंड्स के शेयरों में तेज गिरावट आई और यह 171 रुपये पर आ गया। और इसमें कंपनी और निवेशकों, दोनों को नुकसान हुआ।

अगर कंपनी को जबरन डीलिस्ट किया जाए तो...

इस सूरतेहाल में निवेशक के पास ज्यादा विकल्प नहीं होते। उन्हें अपने शेयरों का जो भी मूल्य मिल रहा होता है, वह उन्हें चुपचाप स्वीकार करना पड़ता है। इसमें स्टॉक की कीमत शेयरहोल्डर या फिर कंपनी नहीं, बल्कि कोई इंडिपेंडेंट एजेंसी करती है।

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जैसा कि Lanco Infratech और Moser Baer India के डीलिस्‍ट‍िंग के मामले में हुआ था। अगर किसी कंपनी की अनिवार्य डीलिस्टिंग हो रही है, तो उसमें प्रमोटर को अपनी हिस्सेदारी बेचकर निकल जाना ही बेहतर होता है। हालांकि, हर बार ऐसा नहीं होता।

रिलायंस कैपिटल की ही बात करें, तो इसमें निवेशकों को एक भी पैसा नहीं मिलेगा और यह SEBI के नियमों के तहत ही हो रहा है। कंपनी ने बताया कि NCLT के आदेश और SEBI के नियमों के मुताबिक रिलायंस कैपटिल को शेयर मार्केट से डीलिस्ट किया जा रहा है। उसने कहा कि रिलायंस कैपिटल के इक्विटी शेयरहोल्डर्स की liquidation value यानी परिसमापन मूल्य शून्य है। ऐसे में कंपनी किसी शेयरधारक को कोई ऑफर नहीं देगी और उन्हें अपने शेयरों के बदले कोई पैसा नहीं मिलेगा।

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