मैरिज लोन: शादी के लिए लोन लेने से पहले आपको जनानी चाहिए ये पांच बातें
मैरिज लोन काफी हद तक पर्सनल लोन के समान होते हैं।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। शादी करना अपने आप में सुखद अनुभव है। यह जरूरी नहीं है कि शादी के समय अपने सपने को पूरा करने के लिए कपल्स के पास पर्याप्त धन हो। शादी के लिए जरूरी खर्चों को पूरा करने के लिए विभिन्न बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां कई तरह के लोन देती हैं।
हम इस खबर में शादी के लिए मिलने वाले लोन के बारे में बता रहे हैं...
मैरिज लोन क्या है
मैरिज लोन काफी हद तक पर्सनल लोन के समान होते हैं। आप या तो पर्सनल लोन ले सकते हैं और ‘शादी के खर्च के रूप में लोन के कारण का उल्लेख कर सकते हैं या शादी के लिए लोन का विकल्प चुन सकते हैं। कई बैंक, NBFC विभिन्न विशिष्टताओं के साथ मैरिज लोन देते हैं।
इंटरेस्ट रेट एंड प्रोसेसिंग फी
सभी बैंक और एनबीएफसी मैरिज लोन पर ब्याज की उच्च दर लगाते हैं, क्योंकि यह एक प्रकार का असुरक्षित लोन है जो शादी के खर्चों को कवर करने के लिए होता है। आम तौर पर मैरिज लोन पर लागू ब्याज दरें 11 फीसद से शुरू होती हैं, जो क्रेडिट स्कोर, रीपेमंट हिस्ट्री, कमाई के स्रोत, क्रेडिट आदि के आधार पर 24-25 फीसद तक बढ़ सकती हैं। इसके अलावा, प्रोसेसिंग फीस, 1 फीसद से 3 फीसद के बीच होती है, जो मैरिज लोन पर लागू (करों को छोड़कर) होती है।
रीपेमेंट और ईएमआई
लोगों को मैरिज लो पर सबसे अच्छा रीपेमंट अवधि और समान मासिक किश्त (ईएमआई) का चयन करना चाहिए। क्वांटम और ईएमआई की फ्रीक्वेंसी पर निर्णय बेहद सावधानी से लिया जाना चाहिए। लोगों को ऐसी राशि का विकल्प चुनना चाहिए जिसे वे आसानी से चुका सकें।
जॉइंट लोन सुविधा
बैंक और वित्तीय सेवा कंपनियां विवाह के लिए जॉइंट लोन सुविधाएं भी देती हैं जिसमें मैरिज लोन चुकौती का बोझ भागीदारों के बीच बंट जाता है। विशेष रूप से साझा निर्भरता के साथ, जॉइंट लोन दोनों भागीदारों के क्रेडिट प्रोफाइल को प्रभावित करता है और इसके साथ भागीदारों को आवश्यक रूप से रीपेमेंट समय सीमा पर ईएमआई का प्रबंधन करना होता है।
प्रीपेमेंट चार्ज
अधिकांश बैंक और NBFC शादी के लोन पर प्रीपेमेंट शुल्क लगाते हैं। यदि कोई व्यक्ति लॉक-इन अवधि पूरी होने से पहले लोन राशि को चुकता करना चाहता है, तो बैंक निर्धारित प्राप्तियों और पेबल्स के रूप में प्रीपेमेंट पेनल्टी के रूप में 5 फीसद चार्ज कर सकते हैं। आम तौर पर छह महीने से एक साल की लॉक-इन अवधि होती है।