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जानिए क्या होता है लिबोर?

लंदन का इंटर बैंक मार्केट धन का थोक बाजार है, जहां बैंक एक-दूसरे से उधार लेते हैं

By Surbhi JainEdited By: Published: Mon, 25 Jun 2018 12:04 PM (IST)Updated: Mon, 25 Jun 2018 12:04 PM (IST)
जानिए क्या होता है लिबोर?

नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। अर्थव्यवस्था में विकास दर, महंगाई दर और एक्सचेंज रेट की तरह ब्याज दरों की अहम भूमिका होती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक प्रचलित ब्याज दर है लिबोर, जो दुनियाभर में ब्याज दरों का रुख तय करती है। पिछले कुछ वर्षों में लिबोर विवादों में घिरी रही है। हाल में सिटी बैंक का लिबोर से जुड़ा एक मामला खासा चर्चा में भी रहा है, जिसके चलते इस बैंक पर अमेरिका में 10 करोड़ डॉलर का जुर्माना लगा है। वहीं अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के एक सलाहकार ने भी कहा है कि अगर लिबोर फेल होता है तो उस स्थिति के लिए वैकल्पिक आपात योजना बनाकर रखनी चाहिए। आखिर लिबोर क्या है? यह कैसे तय होती है? ब्याज दरों को कैसे प्रभावित करती है? ‘जागरण पाठशाला’ के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।

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लंदन का इंटर बैंक मार्केट धन का थोक बाजार है, जहां बैंक एक-दूसरे से उधार लेते हैं। बैंक जिस ब्याज दर पर एक दूसरे से उधार लेते हैं, उसे लिबोर कहते हैं। लिबोर का मतलब है लंदन इंटर बैंक ऑफर्ड रेट। लिबोर ब्याज दरों के लिए बेंचमार्क का काम करती है। यह दर कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में अलग-अलग करेंसी में करीब 350 लाख करोड़ डॉलर मूल्य के फाइनेंशियल प्रोडक्ट जैसे- कॉरपोरेट लोन से लेकर क्रेडिट कार्ड, मॉर्टगेज से लेकर सेविंग अकाउंट और इंटरेस्ट रेट स्वैप्स को रेफरेंस रेट लिबोर होती है। इसमें से करीब 200 लाख करोड़ डॉलर के फाइनेंशियल प्रोडक्ट डॉलर में होते हैं। इसलिए लिबोर में मामूली उतार-चढ़ाव से मनी मार्केट में अरबों का नफा-नुकसान हो जाता है। चूंकि डॉलर दुनिया की महत्वपूर्ण करेंसी है, इसलिए डॉलर लिबोर सर्वाधिक प्रचलित ब्याज दर है।

ऐसे तय होती है लिबोर:

लिबोर कैसे तय होती है इसकी एक रोचक कहानी है। लंदन के इंटरबैंक बाजार में, सार्वजनिक अवकाश को छोड़कर, हर कारोबारी दिवस को सुबह 11 बजे से 16 बड़े बैंक, आइसीई बैंचमार्क एडमिनिस्ट्रेशन के तत्वावधान में एक मंच पर आते हैं और यह सूचित करते हैं कि वे एक-दूसरे से किस ब्याज दर पर उधार लेने को तैयार हैं। ये बैंक 5 करेंसी (डॉलर, यूरो, पौंड, येन व स्विस फ्रेंक) व 7 अवधियों (ओवरनाइट, एक सप्ताह, एक माह, दो माह, तीन माह, छह माह व एक साल) में उधार लेने को अलग-अलग ब्याज दरें लिखकर देते हैं। उदाहरण के लिए किसी एक बैंक को डॉलर उधार लेने हैं तो वह यह बताएगा कि एक सप्ताह या एक माह या एक साल की अवधि को निर्धारित डॉलर राशि उधार लेने को वह कितनी ब्याज दर चुकाने को तैयार है। इसी तरह वह अन्य 4 करेंसी उधार लेने को भी सातों अवधि के लिए अलग-अलग ब्याज दर का प्रस्ताव करता है। जितने बैंक अपनी ब्याज दरें बताते हैं उनमें से 4 उच्चतम तथा 4 न्यूनतम दरों को अलग कर दिया जाता है और बाकी बची दरों का एक औसत निकाल लिया जाता है। औसत निकलने के बाद प्रत्येक करेंसी को कुल 7 अवधियों के लिए सात अलग-अलग ब्याज दर निकलती है। चूंकि यही प्रक्रिया सभी पांचों करेंसी (डॉलर, यूरो, पौंड, येन व स्विस फ्रेंक) के लिए दोहराई जाती है, इसलिए कुल 35 अलग-अलग ब्याज दर निकलती हैं। इनकी संख्या भले ही 35 हो, इसे एकवचन के रूप में लिबोर ही कहते हैं। 2014 से पहले लिबोर के निर्धारण का प्रशासन ब्रिटिश बैंकर्स एसो. के पास था। उस समय 10 अलग-अलग करेंसी के लिए 15 अलग-अलग अवधियों को लिबोर तय की जाती थी। ब्रिटिश बैंकर्स एसोसिएशन ने 1986 में तीन करेंसी (डॉलर, येन और पौंड) के साथ लिबोर की शुरुआत की थी।


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