सरकार की आय और कुल व्यय का अंतर होता है राजकोषीय घाटा
जब कोई सरकार अपने बजट में आमदनी से अधिक खर्च का प्रावधान करती है तो उसे डेफिसिट फाइनेंसिंग कहते हैं
नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। सरकार ने आम बजट 2018-19 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.3 फीसद रखा है। राजकोषीय घाटा अधिक होने से न सिर्फ महंगाई बढ़ने का खतरा होता है बल्कि कर्ज भी महंगा हो जाता है। यही वजह है कि सरकार अपने खर्च पर नियंत्रण और राजस्व में वृद्धि के जरिये इस घाटे को काबू में रखने का प्रयास करती है। ऐसा करते समय उसे सब्सिडी कटौती और टैक्स दर बढ़ाने जैसे अलोकप्रिय कदम भी उठाने पड़ते हैं। ‘जागरण पाठशाला’ के नौवें अंक में हम इसी राजकोषीय घाटे को समझने का प्रयास करेंगे।
जब कोई सरकार अपने बजट में आमदनी से अधिक खर्च का प्रावधान करती है तो उसे डेफिसिट फाइनेंसिंग यानी घाटे का बजट कहते हैं। ऐसी स्थिति में सरकार घाटे की भरपाई के लिए धनराशि उधार लेती है। बजट में तीन प्रकार के घाटे का ब्योरा होता है- राजकोषीय घाटा, राजस्व घाटा और प्राथमिक घाटा। जब राजस्व प्राप्तियों और ऋण-भिन्न पूंजीगत (नॉन डेट कैपिटल) प्राप्तियों का योग, सरकार के कुल व्यय से कम होता है तो वह राजकोषीय घाटा कहलाता है। दरअसल यह सरकार की आय और कुल व्यय का अंतर होता है।
जीडीपी के अनुपात में व्यक्त होता है राजकोषीय घाटा: राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। राजकोषीय घाटा जितना अधिक होता है, सरकार पर कर्ज और ब्याज अदायगी का बोझ उतना ही बढ़ जाता है। यही वजह है कि सरकारें राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सब्सिडी और बाकी खर्च में कटौती करती हैं। वित्त मंत्रलय हर साल बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य तय करता है।
बांड व टी-बिल से उधार लेती है सरकार: घाटे को पाटने के लिए सरकार बांड और ट्रेजरी बिल जारी कर बाजार से उधार लेती है। भारत में केंद्र सरकार उधार लेने के लिए बांड (डेटेड सिक्योरिटीज) और टी-बिल दोनों जारी करती हैं जबकि राज्य सरकारें सिर्फ बांड जारी करती हैं, जिन्हें स्टेट डेवलपमेंट लोन भी कहते हैं। दोनों में अंतर यह है कि टी-बिल एक साल से कम अवधि का होता है जबकि बांड दीर्घावधि के लिए होता है और इसकी एक फिक्स्ड या फ्लोटिंग ब्याज दर होती है, जिसका भुगतान अंकित मूल्य पर किया जाता है।
असल में सरकार जब टैक्स के जरिये पर्याप्त धनराशि नहीं जुटा पाती तो उसे अपना खर्च चलाने के लिए धनराशि उधार लेनी पड़ती है। सैद्धांतिक तौर पर अर्थशास्त्री इस बात को लेकर एकमत नहीं कि राजकोषीय घाटा अच्छा होता है या खराब लेकिन ज्यादा उधार लेने के कई दुष्प्रभाव पड़ते हैं। मसलन, सरकार की ओर से ज्यादा उधार लेने से ब्याज दरें बढ़ जाती हैं और आम लोगों और कारोबारियों के लिए कर्ज महंगा हो जाता है। इससे महंगाई भी बढ़ती है। सरकार अगर घरेलू बाजार से उधार लेकर जरूरतें पूरी नहीं कर पाती है, तो उसे विदेश से उधार लेना पड़ता है। ऐसा होने पर विदेशी कर्ज का बोझ बढ़ जाता है। विदेशी पूंजी आने पर घरेलू मुद्रा मजबूत हो जाती है, जिससे निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
राजकोषीय घाटा नियंत्रित रहे, इसके लिए संसद ने बाकायदा कानून बनाया है। राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजटीय प्रबंधन कानून, 2003 के तहत राजकोषीय घाटे को कम करने के लक्ष्य तय किए जाते हैं। यह बात अलग है कि विगत वषों में कई बार सरकार इन लक्ष्यों से चूकी है और फिर कानून में बदलाव किया गया है। 2016 में सरकार ने इस कानून की समीक्षा के लिए एन. के. सिंह समिति गठित की थी। समिति ने वर्ष 2022-23 तक राजकोषीय घाटे को कम करके 2.5 प्रतिशत और राजस्व घाटा 0.8 प्रतिशत के स्तर पर लाने की सिफारिश की है।
राजस्व घाटे का गणित: बजट में दूसरा महत्वपूर्ण घाटा राजस्व घाटा होता है। अगर राजस्व प्राप्तियों की तुलना में राजस्व व्यय अधिक होता है तो उसे राजस्व घाटा कहते हैं। वित्त वर्ष 2018-19 में राजस्व घाटा 2.2 फीसद पर रखने का लक्ष्य है। इसे भी जीडीपी के अनुपात में व्यक्त करते हैं। राजस्व व्यय के रूप में सरकार कुछ धनराशि पूंजीगत परिसंपत्तियां सृजित करने के लिए अनुदान के रूप में खर्च करती है। जब इस राशि को राजस्व घाटे से घटा दिया जाता है तो उसे प्रभावी राजस्व घाटा कहते हैं। राजस्व घाटे में वृद्धि का आंकड़ा एक तरह से सरकार के लिए चेतावनी होता है कि या तो सरकार अपना व्यय कम करे या फिर आय बढ़ाए।
प्राथमिक घाटे से दिखती है आय की तस्वीर: सरकार हर साल बजट में एक निश्चित राशि का प्रावधान पूर्व में लिए गए ऋणों पर ब्याज चुकाने के लिए करती है। ब्याज चुकाने पर खर्च की गई राशि को जब राजकोषीय घाटे से घटा दिया जाता है, तो उसे प्राथमिक घाटा कहते हैं। वित्त वर्ष 2018-19 में प्राथमिक घाटा 0.3 प्रतिशत पर रखने का लक्ष्य तय किया गया है। प्राथमिक घाटा अगर शून्य हो तो इसका मतलब यह है कि सरकार ने चालू वित्त वर्ष में तो अपनी आय से अपना खर्च चला लिया है, लेकिन उसे पुराने कर्ज पर ब्याज चुकाने के लिए राजकोषीय घाटे के रूप में उधार लेना पड़ रहा है।