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क्या आप जानते हैं, रेपो रेट और सीआरआर का आखिर क्या मतलब होता है?

क्या आप आरबीआई की मौद्रिक समीक्षा के दौरान लिए जाने वाले शब्दों के असली मायने जानते हैं, अगर नहीं तो यहां जानिए

By Praveen DwivediEdited By: Published: Wed, 01 Aug 2018 02:23 PM (IST)Updated: Sat, 04 Aug 2018 11:38 AM (IST)
क्या आप जानते हैं, रेपो रेट और सीआरआर का आखिर क्या मतलब होता है?
क्या आप जानते हैं, रेपो रेट और सीआरआर का आखिर क्या मतलब होता है?

नई दिल्ली (जेएनएन)। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने आज की एमपीसी में नीतिगत दरों में इजाफे का फैसला किया है। केंद्रीय बैंक ने अब रेपो रेट को 6.25 फीसद से बढ़ाकर 6.50 फीसद और रिवर्स रेपो को 6 फीसद से बढ़ाकर 6.25 फीसद कर दिया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर मौद्रिक नीति समिति की बैठक के दौरान सुनाई पड़ने वाले भारी भरकम शब्द रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर का आखिर मतलब क्या होता है? अगर नहीं तो यह खबर आपके काम की है। हम अपनी खबर के माध्यम से आपको इन्हीं शब्दों का मतलब बताने की कोशिश करेंगे।

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क्या होती है रेपो रेट?

रेपो रेट वह दर होती है जिसपर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन मुहैया कराते हैं। रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि बैंक से मिलने वाले तमाम तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे। मसलन, गृह ऋण, वाहन ऋण आदि। वहीं इसके ज्यादा होने की सूरत में बैंकों से मिलने वाला कर्ज भी महंगा हो जाता है।

रिवर्स रेपो रेट?

यह रेपो रेट से उलट होता है। यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है।

सीआरआर: देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत प्रत्येक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है।

एसएलआर: यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को अपना पैसा सरकार के पास रखना होता है, उसे एसएलआर कहते हैं। नकदी की तरलता को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है जिसका इस्तेमाल किसी आपातकाल वाले लेनदेन को पूरा करने में किया जाता है।

एमएसएफ क्या है?

आरबीआई ने पहली बार वित्त वर्ष 2011-12 में सालाना मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू में एमएसएफ का जिक्र किया था। यह कॉन्सेप्ट 9 मई 2011 को लागू हुआ। इसमें सभी शेड्यूल कमर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसदी तक लोन ले सकते हैं। बैंकों को यह सुविधा शनिवार को छोड़कर सभी वर्किंग डे में मिलती है।


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