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वोडाफोन-आइडिया मर्जर मामले में कानूनी रास्ता तलाश रहा है दूसरसंचार विभाग

वोडाफोन और आइडिया ने आपस में विलय कर वोडाफोन आइडिया लिमिटेड बनने का फैसला किया है

By Praveen DwivediEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 12:19 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 12:57 PM (IST)

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। दूरसंचार विभाग (डीओटी) वोडाफोन के प्रशासनिक रूप से आवंटित स्पेक्ट्रम होल्डिंग्स के संबंध में वोडाफोन-आइडिया सेल्युलर के विलय पर कानूनी राय की तलाश में है। विलय एवं अधिग्रहण दिशानिर्देशों के अनुसार अधिग्रहण करने वाली कंपनी को बाजार निर्धारित मूल्य और प्रवेश शुल्क के बीच अंतर का भुगतान करना पड़ता है।

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सूत्रों ने बताया कि 4.4 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम के लिए इस तरह का भुगतान प्रो-रेटा आधार पर लाइसेंस वैधता की शेष अवधि के लिए किया जाना है। साथ ही साल 2015 में वोडाफोन समूह कंपनियों के विलय के समय डीओटी ने वोडाफोन के समक्ष ऐसी मांगें उठाईं थीं। वोडाफोन ने इन मांगों को चुनौती देते हुए टेलिकॉम डिस्प्यूट सेटलमेंट एंड अपीलेट ट्रिब्यूनल (टीडीसैट) का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर मांग के हिस्सा (6,700 करोड़ रुपये में से 2,000 करोड़ रुपये) का भुगतान किया गया था।

इंडस्ट्री से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अब मुद्दा यह है कि वोडाफोन का अधिग्रहण आइडिया की ओर से किया जा रहा है, तो क्या डॉट की ओर से इस डेफरेंशियल अमाउंट के लिए आइडिया सेल्युलर से मांग करनी चाहिए। अब डॉट इस संबंध में कानूनी रास्ता तलाश रहा है कि क्या डेफरेंशियल अमाउंट के लिए आइडिया से मांग की जा सकती है, जो कि बाजार निर्धारित मूल्य और वोडाफोन को प्रशासनिक रूप से आवंटित 4.4 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम के लिए भुगतान किए गए प्रवेश शुल्क के बीच का अंतर है। गौरतलब है कि वोडाफोन और आइडिया ने आपस में विलय कर वोडाफोन आइडिया लिमिटेड बनने का फैसला किया है।


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