अमेरिका में सुधरी अर्थव्यवस्था, बिगाड़ सकते है भारत के आर्थिक हालात
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में हो रहा सुधार, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं माना जा सकता
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में इजाफा किया है, जिसने भारत समेत अन्य एशियाई बाजारों की चिंता को बढ़ा दिया है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में हो रहे सुधारों का जिक्र करते हुए फेडरल ने ब्याज दरों में 0.25 फीसद की बढ़ोतरी की है।
फेडरल रिजर्व के चेरयमैन जेरोम पॉवेल के मुताबिक अमेरिकी अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है और बेरोजगारी में कमी आई है। इसके साथ ही लोगों के खर्च करने की क्षमता में बढ़ोतरी हुई, जो निकट भविष्य में महंगाई को हवा दे सकता है।
2018 में यह दूसरी बार है, जब अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने दरों में इजाफा किया है। दरों को बढ़ाने के बाद बैंक ने आने वाले महीनों में भी बढ़ोतरी के संकेत दिए हैं।
हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में हो रहा सुधार, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं माना जा सकता है।
फेडरल रिजर्व की तरफ से दरों में आगे भी बढ़ोतरी किए जाने का संकेत भारत समेत अन्य एशियाई बाजरों के लिए शुभ संकेत नहीं है। भारतीय शेयर बाजार को अमेरिकी केंद्रीय बैंक के फैसले से तात्कालिक झटका लगा है। बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का सेंसेक्स करीब 250 अंक तक टूट गया जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का एनएसई 80 अंक तक टूट गया।
गौरतलब है कि फेडरल रिजर्व में अपनी बैठक में 2018 के दौरान 2.8 फीसद ग्रोथ की उम्मीद जताई है।
भारत पर क्या होगा असर?
अमेरिकी फेडरल का यह फैसला भारत के लिहाज से अच्छी खबर नहीं मानी जा सकती। दूसरा बड़ा कारण रुपये के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में आ रही मजबूती है। डॉलर में मजबूती और अमेरिकी बाजार में आकर्षक ब्याज दरों के कारण भारतीय बाजार में निवेश करने वाले विदेशी निवेशक यहां से पैसा निकाल सकते हैं।
वहीं भारतीय कंपनियों के लिए विदेशों में कर्ज जुटाना पहले के मुकाबले ज्यादा महंगा हो जाएगा, जिसका असर उनके बैलेंट शीट पर होगा।
हालांकि रुपये में आई कमजोरी से भारतीय निर्यातकों को फायदा होता है। निर्यात में बढ़ोतरी और उससे होने वाले फायदे के लिए रुपये का कमजोर होना जरूरी हो जाता है। भारत में काम करने वाली आईटी कंपनियों को ऐसी स्थिति में विशेष फायदा होता रहा है।
स्थिति नियंत्रण से बाहर जाने पर इस मामले में आरबीआई भी दखल देती है लेकिन फेडरल की तरफ से इस साल के दौरान दरों में आगे भी इजाफा किए जाने के संकेत ठीक नहीं है।