चीन के आयात से भारतीय मैन्युफैक्चरिंग हो रहा है प्रभावित
भारत में जहां उद्योगों को कर्ज लेने पर 11 से 14 फीसद तक ब्याज अदा करना पड़ता है वहीं चीन के उद्योगों को मात्र छह फीसद ब्याज पर कर्ज उपलब्ध है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। चीन से निरंतर बढ़ते आयात की कीमत भारतीय उद्योगों को चुकानी पड़ रही है। चीन की सरकार की तरफ से मिल रहे भारी भरकम प्रोत्साहन घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को प्रभावित कर रहे हैं। इन प्रोत्साहनों के चलते भारतीय उत्पाद अपने ही बाजार में प्रतिस्पर्धा में पिछड़ते जा रहे हैं। जबकि सरकार मैन्युफैक्चरिंग की सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में हिस्सेदारी मौजूदा 16 फीसद से बढ़ाकर 25 फीसद तक पर जोर रही है। मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए काफी कुछ किए जाने की जरूरत है।
यह निष्कर्ष संसद की एक स्थायी समिति का है जिसने हाल ही में चीनी आयात और उसके भारतीय उद्योगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का आकलन किया। इस आकलन में समिति ने पाया कि चीन के उत्पादों के भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धी होने की बड़ी वजह उनकी कम कीमत है। इन उत्पादों की कीमत में कमी की एक बड़ी वजह चीनी कंपनियों को निर्यात पर मिलने वाली 17 फीसद सरकारी राहत है। इससे चीन की कंपनियों के उत्पाद उनकी भारतीय समकक्ष कंपनियों के उत्पादों के मुकाबले 5-6 फीसद सस्ते हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त चीन के जिन प्रांतों में उत्पादन इकाइयां हैं, उनसे भी निर्माताओं को रियायत और प्रोत्साहन मिलता है।
समिति का मानना है कि चीन केवल विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों को अनदेखा कर अपनी मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को समर्थन ही नहीं दे रहा बल्कि उसकी अन्य नीतियां भी उद्योगों के लिए मददगार साबित हो रही हैं। चीन में ब्याज दरें भी उद्योगों के अनुकूल हैं। भारत में जहां उद्योगों को कर्ज लेने पर 11 से 14 फीसद तक ब्याज अदा करना पड़ता है वहीं चीन के उद्योगों को मात्र छह फीसद ब्याज पर कर्ज उपलब्ध है। यहां तक कि चीन के उद्योगों के लिए लॉजिस्टिक्स की लागत भी भारत के मुकाबले कम है। समिति के मुताबिक चीन में यह लागत कारोबार का एक फीसद है जबकि भारत में यह तीन फीसद बैठती है। बिजली, वित्तीय और लॉजिस्टिक्स को मिलाकर भारत और चीन की लागत में करीब नौ फीसद का अंतर है।
समिति ने व्यापार में चीन के प्रतिस्पर्धी होने की वजहों को गिनाते हुए कहा है कि चीन बड़े पैमाने पर कंज्यूमर उत्पादों का निर्माण करता है जिससे उसकी उत्पादन लागत काफी कम हो जाती है। साथ ही चीन की कंपनियां विभिन्न क्वालिटी के उत्पाद बनाती हैं जिनमें सस्ते और घटिया क्वालिटी के उत्पाद भी शामिल हैं। य सस्ते उत्पाद ही भारतीय बाजार में बड़ी मात्र में उपलब्ध हैं। 2017-18 में भारत और चीन के बीच 89.6 अरब डॉलर का द्विपक्षीय कारोबार हुआ।
इस अवधि में भारत के कुल विदेश व्यापार में चीनी उत्पादों की हिस्सेदारी 16.6 फीसद रही जो 2013-14 में 11.6 फीसद थी। दोनों देशों के आपसी निर्यात और आयात में हुई वृद्धि का अंतर इसी बात से समझा जा सकता है कि 2007-08 से 2017-18 के बीच भारत से चीन को होने वाले निर्यात में मात्र 2.5 अरब डॉलर की वृद्धि हुई। लेकिन देश में चीन से आयात इस अवधि में 50 अरब डॉलर बढ़ गया। समिति का मानना है कि चीन का आयात भारतीय उद्योग को इस कदर प्रभावित कर रहा है कि बड़ी संख्या में निर्माता व्यापारी बनकर रह गए हैं। समिति का मानना है कि सरकार ने जिस प्रकार मोबाइल फोन पर आयात शुल्क की व्यवस्था लागू की है और चरणबद्ध मैन्युफैक्चरिंग कार्यक्रम अमल में लाया है उसने चीन से मोबाइल हैंडसेट के आयात में कमी की है। इस तरह के उपाय अन्य उत्पादों के लिए भी लागू करने की आवश्यकता बतायी है। समिति का कहना है कि घरेलू मैन्युफैक्चरिंग की रफ्तार बढ़ाने के लिए उन्हें चीनी कंपनियों की तरह के प्रोत्साहन मेक इन इंडिया की नीति के तहत मिलना चाहिए।
जानकारों का मानना है कि ऐसा होने पर ही भारतीय और अन्य देशों की कंपनियां भारत में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में रुचि दिखाएंगी। गौरतलब है कि हाल ही में सैमसंग ने भारत में दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग इकाई स्थापित की है।