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45 दिनों में भुगतान के नियमों में बदलाव चाहते हैं माइक्रो व स्मॉल उद्यमी, उद्यम पोर्टल को लेकर भी हैं शिकायतें

चूंकि माइक्रो व स्मॉल उद्यमी एक-दूसरे से आपस में काफी माल की खरीदारी करते हैं इसलिए उन्हें भी अब एक-दूसरे को 45 दिनों में भुगतान करना अनिवार्य हो गया है। अब उद्यमी कह रहे हैं कि यह नियम सिर्फ कारपोरेट या बड़े स्तर के उद्यमियों पर लागू होना चाहिए। कुछ उद्यमियों ने बताया कि वे खुद को उद्यम पोर्टल से अपने पंजीयन को समाप्त करने की भी सोच रहे हैं।

By Jagran News Edited By: Praveen Prasad Singh Published: Thu, 04 Apr 2024 09:15 PM (IST)Updated: Thu, 04 Apr 2024 09:15 PM (IST)
माइक्रो व स्मॉल उद्यमी 45 दिनों के भुगतान नियम में बदलाव की कर रहे हैं मांग।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। छोटे उद्यमी खासकर माइक्रो व स्मॉल स्तर के उद्यमियों का मानना है कि भुगतान समस्या को दूर करने के लिए बनाए गए नियम ही अब उनके कारोबार को बाधित कर रहा है। सरकार ने छोटे उद्यमियों की मांग पर ही इस नियम को बनाया था जो इस साल एक अप्रैल से लागू हो गया है। इसके तहत अगर माइक्रो व स्मॉल उद्यमी से माल खरीदने वाला उन्हें 45 दिनों के भीतर भुगतान नहीं करेगा तो उस बकाए रकम को उसकी आय मान ली जाएगी और उस पर इनकम टैक्स देना होगा।

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चूंकि माइक्रो व स्मॉल उद्यमी एक-दूसरे से आपस में काफी माल की खरीदारी करते हैं, इसलिए उन्हें भी अब एक-दूसरे को 45 दिनों में भुगतान करना अनिवार्य हो गया है। अब उद्यमी कह रहे हैं कि यह नियम सिर्फ कारपोरेट या बड़े स्तर के उद्यमियों पर लागू होना चाहिए जो माइक्रो व स्मॉल से माल की खरीदारी करते हैं।

हाल ही में कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने भी सरकार से इस नियम को एक साल के लिए स्थगित करने की मांग की थी। उनका कहना है कि इस प्रावधान को लेकर उद्यमियों को अधिक जागरूक करने की जरूरत है। माइक्रो व स्मॉल उद्यमियों ने बताया कि चूंकि 45 दिनों के अंदर भुगतान का नियम उन्हीं उद्यमियों के लिए मान्य है जो एमएसएमई मंत्रालय के उद्यम पोर्टल पर पंजीकृत है और जो निर्माता है। ट्रेडिंग करने वालों पर भी यह नियम लागू नहीं है। इसलिए अब बड़ी संख्या में उद्यमी गैर पंजीकृत उद्यमी या ट्रेडर्स से माल की खरीदारी करना पसंद कर रहे हैं।

कुछ उद्यमियों ने बताया कि वे खुद को उद्यम पोर्टल से अपने पंजीयन को समाप्त करने की भी सोच रहे हैं। गारमेंट निर्माता कंपनी रिचलुक के निदेशक शिव गोयल ने बताया कि उनके सेक्टर में पूरी चेन उधार पर चलती है और माल बिकने पर उसका भुगतान होता रहता है। उदाहरण के लिए उन्होंने बताया कि वह गारमेंट के लिए कच्चा माल उधार पर लेते हैं और फिर माल बनाकर अन्य रिटेलर्स को उसे बेचने के लिए भी उधार पर देते हैं। जब रिटेलर माल बेच लेता है तो उनके पास भुगतान आता है और वे भी अपना उधार चुका देते हैं। अब 45 दिनों के भुगतान नियम के बाद वे पंजीकृत उद्यमियों से माल की खरीदारी करने को प्राथमिकता नहीं देंगे क्योंकि तय समय पर भुगतान नहीं करने पर वह रकम उनकी आय मान ली जाएगी और उस पर टैक्स देना होगा।

हालांकि इस नियम में यह भी प्रविधान है कि बकाए रकम का भुगतान करने के बाद अगले वित्त वर्ष के इनकम टैक्स रिटर्न में वह उद्यमी भुगतान को दिखाकर दिए गए टैक्स को वापस ले सकता है। गारमेंट निर्माता इस मामले में सरकार को अपना ज्ञापन भी सौंप चुके हैं। हालांकि मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि जुलाई में चालू वित्त वर्ष 2024-25 के लिए पेश होने वाले पूर्ण बजट में ही इस मांग पर कोई विचार हो सकता है।

 


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