एनपीएस और इपीएफ में कौन बेहतर
आज की तारीख में चार करोड़ से ज्यादा सदस्य रिटायरमेंट के बाद बेहतर जिंदगी के लिए ईपीएफ के भरोसे पर नौकरी कर रहे हैं।
इपीएफ में सुनिश्चित रिटर्न है। यह सभी के लिए समान है। ईपीएफ पर ब्याज दर बढ़ाकर 8.8 फीसद की गई है। एनपीएस में इससे थोड़ा ज्यादा रिटर्न प्राप्त हो सकता है। भारी शोरशराबे और विरोध के बाद आखिरकार ईपीएफ निकासी की 60 फीसद राशि पर आयकर लगाने का प्रस्ताव सरकार को वापस लेना पड़ा। यह प्रस्ताव जल्दबाजी में तैयार किया गया था। इसका मकसद लोगों को ईपीएफ के बजाय एनपीएस में निवेश के लिए बाध्य करना था।
लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि पिछले साठ से अधिक वर्षों से ईपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि) टैक्स बचाने का लोकप्रिय साधन रहा है। आज की तारीख में करीब चार करोड़ सदस्य रिटायरमेंट के बाद बेहतर जिंदगी के लिए ईपीएफ की रकम के भरोसे पर नौकरी कर रहे हैं। दूसरी ओर, एनपीएस (नेशनल पेंशन सिस्टम) की शुरुआत 2004 में नए सरकारी कर्मचारियों के लिए की गई थी। इसे 2009 में आम जनता के लिए खोल दिया गया। यह अलग बात है कि आम जनता के बीच यह स्कीम अभी तक लोकप्रिय नहीं हुई है। ईपीएफ और एनपीएस के बीच बुनियादी फर्क यह है कि ईपीएफ में वार्षिक ब्याज के रूप में सुनिश्चित करमुक्त आय प्राप्त होती है। वहीं, मार्केट-लिंक्ड स्कीम होने और 50 फीसद तक योगदान का निवेश शेयर बाजार में किए जाने से एनपीएस से मिलने वाला रिटर्न शेयर बाजार की चाल पर निर्भर है। इसलिए एनपीएस में बेहतर रिटर्न की संभावनाएं स्पष्ट रूप से ईपीएफ के मुकाबले अधिक हैं। बशर्ते कि एनपीएस योगदान का शेयर बाजार में निवेश कम से कम दस साल की दीर्घ अवधि के लिहाज से किया गया हो।
ईपीएफ की अपनी खूबियां हैं। सबसे पहले तो इसका रखरखाव और इसकी निगरानी आसान है। इसमें सभी खाताधारकों को मिलने वाला वार्षिक रिटर्न हमेशा एक सा रहता है। भले ही उनकी उम्र और योगदान कुछ भी हो। जबकि एनपीएस पर यह बात लागू नहीं होती। इसमें रिटर्न फंड मैनेजरों के कार्यप्रदर्शन पर निर्भर करता है। इसके अलावा इसका रिटर्न इस बात से भी प्रभावित होता है कि किस सब्सक्राइबर के लिए इक्विटी और डेट के निवेश का कितना प्रतिशत निर्धारित किया गया है। अहम बात यह है कि ईपीएफ और एनपीएस दोनों के मामले में कर बचत के प्रावधान दोनों के लिए अलग हैं।
ईपीएफ में केवल धारा 80सी के तहत डेढ़ लाख रुपये तक के डिडक्शन की सुविधा है। जबकि एनपीएस में धारा 80सीसीडी के तहत 50 हजार रुपये के अतिरिक्त डिडक्शन का प्रावधान भी है। कुल मिलाकर देखा जाए तो एनपीएस और ईपीएफ स्कीमें एक-दूसरे का विकल्प होने के बजाय पूरक स्कीमें हैं। प्रत्येक व्यक्ति के पोर्टफोलियो में ये दोनो स्कीमें होनी चाहिए। ये दोनों ऐसे फल हैं जिन्हें सेब और संतरा कहा जा सकता है। दोनों की आपस में तुलना नहीं की जा सकती। दोनो ही स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद हैं।
ईपीएफ बनाम एनपीएस
1. पात्रता : ईपीएफ में केवल संगठित क्षेत्र के वेतनभोगी कर्मचारी ही योगदान कर सकते हैं। बीस या अधिक कर्मचारियों वाले सभी निजी प्रतिष्ठानों के लिए ईपीएफ में योगदान आवश्यक है। एनपीएस में अप्रैल, 2004 के बाद नौकरी में आए सरकारी कर्मचारियों के अलावा आम लोग भी योगदान कर सकते हैं। इनमें व्यवसायी, स्वरोजगार वाले लोग, गृहणियां तथा संगठित/ असंगठित क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारी शामिल हैं। इस तरह एक निजी क्षेत्र का कर्मचारी ईपीएफ और एनपीएस दोनों को अपना सकता है। मगर व्यवसायी अथवा स्वरोजगार वाले लोगों के समक्ष केवल एनपीएस अथवा कुछ हद तक पीपीएफ के माध्यम से अपने रिटायरमेंट की प्लानिंग का ही विकल्प है।
2. निवेश का तरीका
ईपीएफ में निवेश एकदम अनुशासित ढंग से होता है। इसमें कर्मचारी को कुछ नहीं करना पड़ता। नियोक्ता की ओर से उसके वेतन की 12 फीसद राशि काटकर ईपीएफ खाते में डाल दी जाती है। इसके साथ उतनी ही राशि का योगदान नियोक्ता को भी करना पड़ता है। इसके उलट एनपीएस पूरी तरह स्वैच्छिक है। इसमें निवेशक चाहें तो एकमुश्त राशि अथवा किसी भी तरह की मासिक किस्त के रूप में निवेश कर सकते हैं।
3. न्यूनतम/अधिकतम निवेश
एनपीएस के तहत एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 6,000 रुपये का निवेश जरूरी है। जबकि अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। ईपीएफ में कर्मचारी का योगदान सामान्यत: मूल वेतन के 12 प्रतिशत पर निर्धारित है। यदि कर्मचारी चाहे तो इसमें बढ़ोतरी करवा सकता है। इस तरह सामान्यत: ईपीएफ में योगदान की सीमा है।
4. असेट आवंटन
हाल तक ईपीएफ में 100 फीसद आवंटन डेट इंस्ट्रूमेंट्स में होता था। हालांकि अब ईपीएफओ ने कोष में हर साल जमा होने वाली नई राशि के न्यूनतम पांच फीसद व अधिकतम 15 फीसद हिस्से का इक्विटी बाजार में ईटीएफ के जरिये निवेश करने की अनुमति दे दी है। एनपीएस के मामले में निवेशकों को दो विकल्प दिए जाते हैं : या तो वे इक्विटी और डेट में अपने पैसे के निवेश का विभाजन खुद तय करें अथवा डिफॉल्ट ऑप्शन के तहत पहले से तय हिस्सेदारी को स्वीकार कर लें। डिफॉल्ट ऑप्शन के तहत रिटायरमेंट तक हर साल इक्विटी में आवंटन कम होता जाता है, जबकि डेट में बढ़ता जाता है। पहले विकल्प के अंतर्गत इक्विटी में अधिकतम 50 फीसद तक आवंटन किया जा सकता है। इसके अलावा छह पेंशन फंड मैनेजरों में से एक का चुनाव करना पड़ता है।
संभावित रिटर्न
ईपीएफ में सुनिश्चित रिटर्न है। यह सभी के लिए समान है। पिछले वित्त वर्ष में ईपीएफ पर 8.75 फीसद की दर से रिटर्न मिल रहा था। इसे हाल में बढ़ाकर 8.8 फीसद कर दिया गया है। ईपीएफ पर ब्याज दर का निर्धारण अर्थव्यवस्था की स्थिति के मुताबिक किया जाता है। दूसरी ओर इक्विटी में निवेश के कारण एनपीएस में इससे थोड़ा ज्यादा रिटर्न प्राप्त हो सकता है। इस वर्ष एनपीएस में निवेश से प्राप्त होने वाला रिटर्न ईपीएफ के मुकाबले 2-3 फीसद अधिक रहने की उम्मीद है।
कर लाभ
मौजूदा प्रावधानों के अनुसार ईपीएफ में किए योगदान पर आयकर कानून की धारा 80सी के तहत 1.5 लाख रुपये तक के डिडक्शन की सुविधा है। इस सीमा में पीपीएफ, ईएलएसएस, इंश्योरेंस प्लान, ट्यूशन फीस, पंचवर्षीय फिक्स्ड डिपाजिट वगैरह में निवेश भी आता है। एनपीएस में इसके अलावा 80सीसीडी (1बी) के तहत 50,000 रुपये तक के अतिरिक्त डिडक्शन की छूट भी है। इस छूट में किसी अन्य स्कीम की हिस्सेदारी नहीं है।
परिपक्वता पर ईपीएफ की पूरी राशि करमुक्त है। रिटायरमेंट के समय ईपीएफ की पूरी रकम निकाली जा सकती है। इसके उलट एनपीएस में केवल 40 फीसद राशि बिना टैक्स के निकाली जा सकती है। बाकी 60 फीसद राशि का निवेश एन्यूटी यानी पेंशन प्लान में किया जा सकता है। एनपीएस से किसी भी दशा में रिटायरमेंट के वक्त शत-प्रतिशत राशि की निकासी संभव नहीं है। आपको कम से कम 40 फीसद राशि का निवेश एन्यूटी प्लान में करना ही होगा।
वर्तमान सुधार के माध्यम से सरकार का मकसद अधिक राजस्व जुटाना नहीं बल्कि लोगों को पेंशन योजना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना है।
-अरुण जेटली, वित्त मंत्री
सरकार का जोर सेवानिवृत्ति के बाद लोगों का जीवन बेहतर और आत्मनिर्भर बनाना है। यही वजह है कि सरकार ने आम बजट में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) से रिटायरमेंट के समय 40 प्रतिशत धन निकासी को कर से मुक्त किया है। सरकार चाहती है कि शेष आय को लोग अपने बुढ़ापे के लिए निवेश करें। इस तरह अगर कोई व्यक्ति अपनी 60 प्रतिशत धनराशि को एन्युटी में निवेश करेगा तो न तो उसे टैक्स लगेगा और साथ ही उसे पेंशन की सुविधा भी मिलेगी। फिलहाल बहुत कम लोगों को पेंशन की सुविधा प्राप्त है। इसलिए सरकार के इस कदम से अधिकाधिक लोग पेंशन के लिए प्रोत्साहित होंगे।
हसमुख अढिया, राजस्व सचिव
जो भी लोग अपने रिटायरमेंट के बाद बचत करना चाहते हैं, सरकार उनके साथ है। सरकार उनके साथ मिलकर काम करना चाहती है और उन्हें प्रोत्साहन और अवसर देना चाहती है। ईपीएफ के संबंध में भी कर प्रस्ताव पेंशन तंत्र को मजबूत करने के लिए लाया गया था।
जयंत सिन्हा, वित्त राज्य मंत्री
- अनिल चोपड़ा (ग्रुप सीईओ एवं डायरेक्टर, बजाज कैपिटल)