टुकड़े-टुकड़े जोड़कर बनी तस्वीर
यह बजट नीरस है या रोमांचक? असल में दोनों है। यह एक सक्षम बजट है जिसमें स्पष्टत: एक विजन को पूरा करने के लिए प्रावधान किए गए हैं, लेकिन यह हासिल करने योग्य और प्राथमिकताओं के दायरे में बंधा हुआ है। इस सरकार के तीन बजट निकल चुके हैं
यह बजट नीरस है या रोमांचक? असल में दोनों है। यह एक सक्षम बजट है जिसमें स्पष्टत: एक विजन को पूरा करने के लिए प्रावधान किए गए हैं, लेकिन यह हासिल करने योग्य और प्राथमिकताओं के दायरे में बंधा हुआ है। इस सरकार के तीन बजट निकल चुके हैं और अरुण जेटली ने अपनी छवि सतर्क और सतत सुधारक के तौर पर स्थापित की है। समस्या क्या है, उसका समाधान क्या है और किस तरह उसका हल होना है, इन बातों का बजट में स्पष्ट उल्लेख है।
उदाहरण के लिए वित्त मंत्री ने कई मौकों पर कहा है कि कॉरपोरेट टैक्स को साफ करने की जरूरत है। पिछले कुछ महीनों में उन्होंने साफ कहा है कि कॉरपोरेट को मिल रही टैक्स रियायतों को वापस लिया जाना है और कर की दरें कम करनी हैं। फिलहाल बड़ी कंपनियों को कर रियायतों का अधिक लाभ मिलता है। बजट ने कई रियायतों को खत्म कर दिया है। इससे बड़ी कंपनियों पर टैक्स का भार बढ़ेगा। इस तरह बजट ने छोटी कंपनियों और स्टार्ट अप के लिए कर का बोझ कम करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।
सबसे बड़ी खबर बचत, व्यक्तिगत निवेश और करों के संबंध में है। आम बजट में ऐसा कदम उठाया गया है जिसका इंतजार एक दशक से था। इस बजट ने नेशनल पेंशन सिस्टम और कर्मचारी भविष्य निधि को कर के मामले में बराबर का दर्जा दे दिया है।
हालांकि उन्होंने यह एनपीएस से धन निकासी को कर मुक्त बनाकर नहीं बल्कि दोनों ही पर आंशिक टैक्स लगाकर किया है। इन दोनों योजनाओं में से 40 प्रतिशत धन निकासी पर कर लगेगा। हमें इस बात के लिए शुक्रगुजार होना चाहिए कि ईपीएफ पर टैक्स पूर्व प्रभाव से लागू नहीं किया गया है। इसका मतलब यह है कि एक अप्रैल के
बाद एकत्रित होने वाली निधि पर ही टैक्स लगेगा। मुझे लगता है कि ईपीएफ पर टैक्स लगाने का विरोध होगा। यह इसलिए क्योंकि निम्न आय वाला कर्मचारी भी एकत्रित पैसा निकालने पर उच्च कर की सीमा में आ जाएगा। अगर 40 प्रतिशत धनराशि पर 30 प्रतिशत टैक्स लगता है तो पूरी राशि पर कर की दर 12 प्रतिशत हो जाएगी। हालांकि यह स्तर भी भविष्य में पहुंच जाएगा। बेहतर होगा कि इनमें से किसी पर भी टैक्स न लगे
लेकिन एनपीएस को भी ईपीएफ की बराबरी पर लाना भी बुरा नहीं है।
इस बजट को लेकर मेरी सबसे बड़ी शिकायत यह है कि आयकर से छूट की सीमा और धारा 80 के तहत कर छूट की सीमा नहीं बढ़ाई गई है। हर साल मुद्रास्फीति बढऩे से इनका मूल्य कम हो जाता है। इस तरह अगर आपकी आय में सामान्य बढ़ोतरी होती है तो भी सरकार का कर राजस्व बढ़ता है लेकिन मुद्रास्फीति के मुकाबले देखने पर
टैक्स काटने के बाद आपकी आय कम हो जाती है और कर मुक्त बचत का मूल्य भी घट जाता है। इससे भी खराब यह है निम्न आयकर की श्रेणी में आने वाले लोगों पर इसका ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ता है। हालांकि जेटली ने लाभांश वितरण कर के मामले में छोटे निवेशकों के साथ भेदभाव को खत्म कर दिया है। इस मामले में भी सामान्य
सिद्धांत को अपनाया गया है- अगर कहीं कर मामलों में विसंगति है तो वह एक जगह अधिक टैक्स लगाकर इसे खत्म करेंगे न कि दूसरी जगह कम करके। यह प्रतिरूप आने वाले कई वर्षों तक चलेगा।
निवेश के मामले में जो बदलाव है वह है ऑप्शन पर सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स में वृद्धि और 10 लाख रुपये से अधिक लाभांश पाने वालों पर 10 प्रतिशत की दर से लाभांश कर लगाना। इसमें से कोई भी सामान्य बचतकर्ताओं के लिए चिंता की बात नहीं है।
ट्रांजैक्शन टैक्स से सिर्फ अल्पकालिक व्यापारियों को नुकसान होगा जबकि 10 लाख रुपये से अधिक डिविडेंड पाने वाले ऐसे लोग होंगे जिनका करोड़ों का निवेश होगा। पहला जहां अल्पकालिक व्यापरियों के लिए चिंता का विषय है वहीं दूसरा धनाढ्य लोगों से संबंधित है।
धीरेंद्र कुमार