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मौलिक बातों के बारे में मिथ्या धारणा

कुछ दिनों पहले मुझे एक म्यूचुअल फंड निवेशक से पत्र मिला। यह व्यक्ति लगातार ही अच्छे फंडों में निवेश कर रहा है और अच्छा रिटर्न प्राप्त कर रहा है। इसके बावजूद वह अपने निवेश के बारे में नाखुश है, क्योंकि फंड निवेश करने का मौलिक अंकगणित किस तरह काम करता

By Edited By: Published: Mon, 27 Apr 2015 08:35 AM (IST)Updated: Mon, 27 Apr 2015 08:45 AM (IST)
मौलिक बातों के बारे में मिथ्या धारणा

कुछ दिनों पहले मुझे एक म्यूचुअल फंड निवेशक से पत्र मिला। यह व्यक्ति लगातार ही अच्छे फंडों में निवेश कर रहा है और अच्छा रिटर्न प्राप्त कर रहा है। इसके बावजूद वह अपने निवेश के बारे में नाखुश है, क्योंकि फंड निवेश करने का मौलिक अंकगणित किस तरह काम करता है, उसके बारे में उन्हें मिथ्या धारणा है।

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चर्चा के लिए यह एक रोचक मामला है, क्योंकि ऐसा लगता है कि उसने म्यूचुअल फंडों के बारे में सभी तरह की आम मिथ्या धारणाओं को अपने दिमाग में बिठा लिया है। इन धारणाओं में कई त्रुटियां हैं। इस मानसिक मॉडल के चलते निवेश के फैसले गलत हो सकते हैं। मैं यह लेख लिख रहा हूं, इसकी वजह यह है कि ऐसी कई मिथ्या धारणाएं बेहद सामान्य हैं। लेकिन यह मामला किसी भी तरह से सामान्य नहीं हैं।

इस निवेशक ने मुझे जो ईमेल भेजा है उसका सार इस प्रकार है: मैं इक्विटी म्यूचुअल फंडों में भारी निवेश करता हूं। हमेशा डिविडेंड विकल्प चुनता हूं, ताकि कर मुक्त लाभांश के रूप में आय हो सके। अब तक मैंने रेगुलर प्लान में (वितरक के माध्यम से) कई निवेश किए हैं। अब बेहतर रिटर्न प्राप्त करने के लिए मैं अब डायरेक्ट प्लान्स में निवेश करना चाहूंगा।

इसके साथ समस्या यह है कि फंड के डायरेक्ट प्लान का एनएवी अधिक होता है। इसलिए मुझे बेहद कम यूनिटें मिलती हैं। डायरेक्ट प्लान्स रेगुलर की अपेक्षा प्रति यूनिट कम लाभांश देते हैं। डायरेक्ट प्लान आखिर कम डिविडेंड क्यों देते हैं, विशेषकर क्योंकि उच्च एनएवी की वजह से यह समस्या और बदतर हो जाती है।
आइए, अब मिथ्या धारणाओं के बारे में एक-एक करके विचार करें।

1-फंड लाभांश पूंजीगत वृद्धि के साथ-साथ वास्तविक रिटर्न हैं: बहुत से निवेशक सोचते हैं कि यह सही है। समस्या की जड़ ‘डिविडेंड’ शब्द है, जिसका कॉरपोरेट डिविडेंड की तुलना में फंड में बिल्कुल अलग अर्थ होता है। फंड में डिविडेंड अतिरिक्त आय नहीं है, बल्कि यह आपकी पूंजी से निकासी है। अगर किसी फंड में आपका एक लाख रुपये का निवेश है और यह आपको 5000 रुपये डिविडेंड देता है तो लाभांश मिलने के बाद आपका निवेश 95,000 रुपये होगा। इसका कोई अपवाद नहीं है।

इसका कोई अतिरिक्त फायदा भी नहीं है। म्यूचुअल फंड डिविडेंड का मतलब बस इतना होता है कि आपके धन में से कुछ निकालकर आपको देना। जब तक कि आपको आय की जरूरत न हो, तब तक एक इक्विटी फंड में डिविडेंड का विकल्प चुनने का कोई मतलब नहीं है। वास्तव में अगर आपको आय की भी आवश्यकता है तो भी नॉन-डिविडेंड ग्रोथ विकल्प चुनना बेहतर है। इस तरह आप अपनी जरूरत व समय के हिसाब से धनराशि निकाल सकते हैं। निवेश एक साल से अधिक का है तो यह टैक्स फ्री होगा।

2-उच्च और निम्न एनएवी अप्रासंगिक हैं: यह मिथ्याधारणा सक्रियता के साथ फंड सेल्समेन नए फंडों को आगे बढ़ाने के लिए फैला रहे हैं, जो कि कम एनएवी के साथ शुरू होते हैं। वास्तव में जो बात मायने रखती है वह है फंड का निवेश प्रबंधन। एक फंड का एनएवी अगर 10 है और दूसरे का 100 तो अगर उनके पोर्टफोलियो समान हैं तो उनसे रिटर्न भी समान मिलेगा। आप एक में अधिक यूनिटें और दूसरी में कम रख सकते हैं, लेकिन यह अप्रासंगिक है।

अगर एक फंड 20 प्रतिशत लाभ पाता है तो इसमें आपका निवेश 10,000 रुपये बढ़कर 12 हजार रुपये हो जाएगा। यह 12 रुपये के एनएवी पर 1,000 यूनिटें भी हो सकती हैं और 1,200 रुपये का एनएवी भी हो सकता है। इस तरह इसमें कोई अंतर नहीं पड़ता। फंड के एनएवी का एकमात्र इस्तेमाल इसकी खुद की तुलना के लिए होता है। इससे आपको पता चलता है कि आपने कितना रिटर्न कमाया। एक फंड के एनएवी की तुलना दूसरे से करना (ऐसा निवेशकों और फंड सेल्समैन के बीच आम बात है) पूरी तरह अनुपयोगी है। यह बुरे निवेश फैसलों का स्रोत है।

यह दुर्भाग्य की बात है कि इन दोनों ही मिथ्या धारणाओं को फैलाया जा रहा है। फंड इंडस्ट्री की ओर से कथित निवेशक शिक्षा प्रयासों ने भी कभी उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की है। यह इसलिए है, क्योंकि दोनों का इस्तेमाल सेल्समैन ऐसे फंड बेचने के लिए करते हैं, जिनको बेचने के लिए कोई दूसरी खूबी नहीं है।
फंड का फंडा, धीरेंद्र कुमार

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