जेपी मॉर्गन फिक्स्ड इनकम संकट
समस्या का समाधान है कि जो फंड लिक्विडिटी की पेशकश कर रहा है, वह पोर्टफोलियो में भी वैसी ही तरलता रखे।
समस्या का समाधान है कि जो फंड लिक्विडिटी की पेशकश कर रहा है, वह पोर्टफोलियो में भी वैसी ही तरलता रखे।
निवेशकों को शांति से वास्तविकता को देखने के बजाय शोर पर ध्यान देने से कितना नुकसान होता? म्यूचुअल फंड में निवेश करने वालों के लिए अगस्त में दो डेट फंड में समस्या के चलते वास्तविक वित्तीय नुकसान मामूली रहा है। हालांकि इस घटना को लेकर अनावश्यक रूप से चिंता, फिक्स्ड इनकम निवेशों के बारे में मनगढ़ंत कहानियां और नियामकों में हड़कंप जरूर देखने को मिला।
अब यह पूरा मामला शांत होने के बाद पता चला है कि इसके बारे में की गई भविष्यवाणियों को सही ठहराने की कोई वजह नहीं थी। आंकड़े इसके गवाह हैं। मान लीजिए आपने इन दोनो फंड में इस संकट से पहले इस साल 20 अगस्त को एक लाख रुपये का निवेश किया है, तो इनमें से एक में आपको 500 रुपये का नुकसान हुआ और दूसरे में 1,000 रुपये का फायदा।
अब आपको बताते हैं कि यह पूरा संकट किस बारे में था। अगस्त के अंत में जेपी मॉर्गन म्यूचुअल फंड ने अपने दो डेट फंड- इंडिया ट्रेजरी फंड और इंडिया शॉर्ट टर्म इनकम फंड में रिडेम्पशन सीमित कर दिया। इन दोनों फंड के एनएवी में तेजी से गिरावट आई। यह गिरावट इसलिए आई क्योंकि दोनों फंड ने एमटेक ऑटो नाम की जिस कंपनी के बांड में निवेश किया था, उसने अपनी एक सहयोगी कंपनी में वित्तीय गड़बड़ी का खुलासा किया, जिसे उसने पहले छुपाकर रखा गया था। जिस रेटिंग एजेंसी ने इस बांड को रेटिंग दी थी उसने अपनी रेटिंग वापस ले ली। इसकी वजह से नियमानुसार फंड को इस बांड में अपना पूरा निवेश खत्म करना पड़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि उस समय एक फंड का मूल्य 3.4 प्रतिशत कम हुआ और दूसरे का 1.7 प्रतिशत। अब इनमें से एक 0.5 प्रतिशत का नुकसान हुआ है, जबकि दूसरे को एक प्रतिशत का फायदा हुआ है। यह फायदा इसलिए हुआ है, क्योंकि एमटेक के जिस फंड में दिक्कत थी उसका 85 प्रतिशत मूल्य पुन: प्राप्त कर लिया गया है। बाकी पोर्टफोलियो उम्मीद के अनुसार बढ़ रहा है। एक फिक्स्ड आय वाले फंड में एनएवी की गिरावट (जिसके बारे में भारतीय निवेशकों को अनुभव नहीं है) और रिडेंप्शन को सीमित करने से निवेशकों में हड़कंप मच गया। जैसा कि मैंने उस समय भी लिखा था कि म्यूचुअल फंड निवेश में जोखिम हमेशा रहता है। पिछले अनुभव को देखते हुए निवेशक अल्पावधि के फिक्स्ड इनकम फंड में ऐसी उथल-पुथल की उम्मीद नहीं रखते, लेकिन यह अपवाद भी सही नहीं ठहराया जा सकता।
इससे भी बढ़़कर तथ्य यह है कि जिस तरह विभिन्न क्षेत्रों में दबाव महसूस किया जा रहा है, ऐसी समस्याएं किसी भी प्रकार के फिक्स्ड इनकम फंड में सामने आ सकती हैं। हालांकि सच्चाई यह है कि ऐसा हो सकता है। भारत के बैंकों में जिस स्तर पर एनपीए है, उसे देखते हुए यह आश्चर्य है कि म्यूचुअल फंड द्वारा बांड में नौ लाख करोड़ रुपये के निवेश में से एक कंपनी में बहुत छोटी सी राशि के बांड का भुगतान करने में ही दिक्कत सामने आई है। जहां तक इस घटना के समय निवेशकों की प्रतिक्रिया का सवाल है तो प्राथमिक तौर पर इसकी वजह मीडिया की आधी अधूरी जानकारी के साथ कवरेज की वजह से निवेशकों में इतनी आशंका पैदा हुई। इस समस्या को इन अफवाहों ने भी बढ़ा दिया कि नियामक संस्थाएं फिक्स्ड इनकम फंड के चलाने के तौर तरीकों को बदलने के लिए कदम उठाने जा रही हैं। हालांकि किसी फंड या क्षेत्र तक इसे सीमित करना इसका सही विकल्प नहीं है।
संरचनात्मक दृष्टिकोण से एक समस्या यह है कि एएमसी ओपेन एंडेड फंड को उच्च तरलता और एक दिवसीय रिडेंप्शन की फैसिलिटी के साथ कॉरपोरेट बांडों के समर्थन से चला रहे हैं। ऐसे में अगर बड़ी संख्या में निवेशक किसी खबर की वजह से रिडेंप्शन की मांग कर रहे हैं तो एएमसी को कहीं से धन नहीं मिलेगा। इस तरह की खबर से बाजार भी फ्रीज हो जाता है। ऐसी स्थिति में फंड मैनेजर को अधिक लिक्विड फंड को बेचना पड़ सकता है। इससे पोर्टफोलियो की गुणवत्ता और खराब होगी। वजह यह है कि फिक्स्ड आय वाले निवेशक पेशेवर हैं, इसलिए उन्हें इसकी जानकारी होगी।
इस समस्या का सिर्फ यही समाधान है कि जो फंड लिक्विडिटी की पेशकश कर रहा है, वह अपने पोर्टफोलियो में भी वैसी ही तरलता रखे। इस संकट ने चाय के प्याले में तूफान उठने की उक्ति को चरितार्थ किया है। हालांकि यह अहम है कि निवेशकों, फंड मैनेजरों, मीडिया, विश्लेषकों और नियामकों को इससे सीख लेनी चाहिए।
धीरेंद्र कुमार