जरूरतों के मुताबिक तय करें वित्तीय लक्ष्य
हर व्यक्ति आरामदेह जीवन जीने का सपना देखता है। इस सपने में अपना आलीशान मकान, लक्जरी कार, मोटा बैंक बैलेंस, बच्चों का अच्छा भविष्य और रिटायरमेंट के बाद आरामदेह जिंदगी के दृश्य शामिल होते हैं। मगर ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं है जो इस ख्वाब को पूरा करने मे
हर व्यक्ति आरामदेह जीवन जीने का सपना देखता है। इस सपने में अपना आलीशान मकान, लक्जरी कार, मोटा बैंक बैलेंस, बच्चों का अच्छा भविष्य और रिटायरमेंट के बाद आरामदेह जिंदगी के दृश्य शामिल होते हैं। मगर ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं है जो इस ख्वाब को पूरा करने में मददगार साबित होती हो। कठोर परिश्रम करके और मोटे वेतन वाली नौकरी पाकर भी इन इच्छाओं को पूरा करना आसान नहीं है।
इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए आपको ऐसी सुनियोजित रणनीति अपनानी होगी, जिसमें वित्तीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समस्त खर्चों और बचतों का प्रबंधन करने की क्षमता हो। संपत्ति प्रबंधन अथवा वेल्थ मैनेजमेंट इसमें मदद करता है। यह जीवन में वित्तीय स्थायित्व प्रदान करता है। इसके लिए फाइनेंशियल प्लानिंग जरूरी है।
फाइनेंशियल प्लानिंग क्या है
वित्तीय नियोजन यानी फाइनेंशियल प्लानिंग वह रणनीति है, जिसमें अपनी बचतों का सुनियोजित तरीके से निवेश करते हुए वित्तीय लक्ष्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त किया जाता है। अल्प, मध्यम और दीर्घ अवधि के लक्ष्यों के आधार इसे तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है :
अल्प, मध्यम व दीर्घ अवधि लक्ष्य
हर एक व्यक्ति के जीवन में कुछ प्राथमिकताएं होती हैं। इन्हें उनकी समयावधि के अनुसार श्रेणीबद्ध किया जाता है। अल्पकालिक लक्ष्य वे लक्ष्य हैं, जिन्हें हम एक साल के भीतर प्राप्त करना चाहते हैं। उदाहरण के लिए छुट्टियों में भ्रमण पर जाना, पार्टी देना, बड़ी खरीदारी वगैरह। मध्यम अवधि के लक्ष्य वे हैं जिन्हें पूरा करने के लिए तीन साल चाहिए होते हैं। जैसे कि कार की खरीद। जबकि दीर्घकालिक लक्ष्यों को पूरा करने में तीन साल से ज्यादा का वक्त लगता है। उदाहरण के लिए बच्चों की पढ़ाई, शादी अथवा मकान की खरीद। इन लक्ष्यों का निर्धारण इनके लिए आवश्यक धनराशि तथा व्यक्ति की आयु के अनुसार करना चाहिए। वित्तीय लिहाज से आयु वर्ग चार तरह के होते हैं :18-25 वर्ष, 25-35 वर्ष, 35-45 वर्ष तथा 45-60 वर्ष।
कैसे प्राप्त करें
कुछ ऐसे वित्तीय उपकरण हैं जिनका इस्तेमाल अपने पैसे को जमा कर कम समय में मुनाफा कमाने में किया जा सकता है। ये हैं :
1-बचत खाता , 2-कम मेच्योरिटी वाले रिर्कंरग डिपॉजिट
मध्यकालिक लक्ष्यों की प्राप्ति
मध्यम अवधि के लक्ष्य एक से तीन साल के होते हैं। इनमें कार खरीदने के लिए किया जाने वाला भुगतान और कभी-कभी विवाह का खर्च भी आ जाता है। मध्यम अवधि के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आपको किसी जमा खाते अथवा म्यूचुअल फंड में निवेश पर विचार करना चाहिए। लेकिन इनसे जुड़ी शर्तों का पूरा अध्ययन कर लेना चाहिए। कोशिश ऐसी मेच्योरिटी तारीख वाले उपकरण में निवेश की होनी चाहिए, जो आपके पैसे की जरूरत के नजदीक पड़ती हो। इससे आप समय पूर्व धन निकासी पर लगने वाली पेनाल्टी से बच जाएंगे।
दीर्घकालिक लक्ष्यों के जोखिम
दीर्घकालिक लक्ष्यों में रिटायरमेंट प्लान, मकान की खरीद, बच्चों की पढ़ाई वगैरह आते हैं। चूंकि इनमें तीन साल से ज्यादा का समय लगता है। लिहाजा आप ज्यादा ऊंचे जोखिम वाली संपत्तियों (जैसे कि इक्विटी)
में निवेश के लिए पैसा बचाने का निश्चय करें।
निवेश में जोखिम की गणना
जोखिम का स्तर आयु पर निर्भर करता है। आम तौर पर 18-25 आयु वर्ग में ज्यादा जोखिम सहा जा सकता है। जबकि 45-60 का आयु वर्ग जोखिम लेना नहीं चाहता। ऐसे में किस इंस्ट्रूमेंट में आप पैसा लगाएं इसका निर्धारण इस प्रकार होगा :
कम जोखिम के लिए : यदि आप कम जोखिम लेना चाहते हैं तो आपको अपनी 80 फीसद रकम डेट इंस्ट्रूमेंट्स में लगानी चाहिए। जबकि 20 फीसद राशि इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स में। इससे डेट इंस्ट्रूमेंट पर आपको कूपन रेट के अनुसार सुनिश्चित रिटर्न प्राप्त होगा।
मध्यम अवधि जोखिम के लिए : यदि आप मध्यम अवधि का जोखिम लेने की स्थिति में हैं तो डेट और इक्विटी में आधा-आधा निवेश करें।
दीर्घकालिक जोखिम के लिए : अस्सी फीसद निवेश इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स में और 20 फीसद डेट इंस्ट्रूमेंट में करना उचित होगा। इस विकल्प में निवेश की अवधि लंबी होनी चाहिए।
डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश से आपको कुछ ब्याज के साथ सुनिश्चित रिटर्न प्राप्त होगा। इनमें ज्यादातर सरकारी एवं कंपनियों के बांड, फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) तथा डेट म्यूचुअल फंड वगैरह आते हैं। दूसरी ओर इक्विटी इंस्ट्रमेंट्स का रिटर्न शेयर बाजार अथवा स्टॉक मार्केट की चाल पर निर्भर होता है।
इन बिंदुओं से आपको अपने वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति में वित्तीय प्लानिंग की अहमियत के साथ-साथ निवेश के लिए उपलब्ध उपकरणों को समझने में मदद मिलेगी। अपने लक्ष्यों को समझने के लिए हमेशा समय दें। उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक उपायों को लेकर एकदम स्पष्ट हो जाएं। इसीलिए कहते हैं कि यदि शुरुआत अच्छी हो तो आधा काम हो गया समझो।
आपात कोष बनाकर लक्ष्यों की प्राप्ति की स्थापना करें : दैनिक खर्चों के अलावा आपको बचतों के जरिये एक आपातकालीन कोष निर्मित करना चाहिए। यह पैसा अल्पकालिक, मध्यकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों की पूर्ति में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से आपकी मदद कर सकता है। यह कोष जीवन की किसी भी अवांछनीय स्थिति में आपके लिए मददगार साबित हो सकता है। मोटे तौर पर नियम यह है कि यह कोष आपके दो-तीन माह के वेतन या आमदनी के बराबर होना चाहिए।
लक्ष्य निर्धारित करते वक्त हमें इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए:
-कितने धन की जरूरत है
-कितने समय में जरूरत होगी
-व्यक्ति की आयु क्या है
-भविष्य की आशाएं व खर्च
-परिवार का आकार
-प्रत्येक निवेश में जोखिम का स्तर
-व्यक्ति किस प्रकार के व्यवसाय में है
गौरव खुराना
फाउंडर एंड सीईओ,
डायलअबैंक डॉट कॉम