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क्या ग्रुप इश्योरेंस है पर्याप्त?

कितना बीमा जरूरी है या किसी व्यक्ति को कितना कवरेज लेना चाहिए, यह सवाल तो हर व्यक्ति जानना चाहता है लेकिन ग्रुप बीमा कितना जरूरी है यह कोई नहीं जानना चाहता, जबकि ग्रुप बीमा भी आज काफी महत्वपूर्ण हो गया है। इसके तहत कितना कवरेज लेना चाहिए, इस तथ्य का

By Edited By: Published: Mon, 28 Sep 2015 09:07 AM (IST)Updated: Mon, 28 Sep 2015 10:01 AM (IST)

कितना बीमा जरूरी है या किसी व्यक्ति को कितना कवरेज लेना चाहिए, यह सवाल तो हर व्यक्ति जानना चाहता है लेकिन ग्रुप बीमा कितना जरूरी है यह कोई नहीं जानना चाहता, जबकि ग्रुप बीमा भी आज काफी महत्वपूर्ण हो गया है। इसके तहत कितना कवरेज लेना चाहिए, इस तथ्य का पता सभी को होना चाहिए। कई बार लोग नियोक्ता की तरफ से दिए गए ग्रुप इंश्योरेंस को ही पर्याप्त मान लेते हैं। वह उससे ज्यादा की कवरेज लेने की कोशिश भी नहीं करते हैं।

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उनका कहना होता है कि जब कंपनी ने ग्रुप बीमा का कवरेज दिया हुआ है तो अलग से व्यक्तिगत कवरेज लेने की क्या जरूरत है। कई बार इसको लेकर वाद-विवाद भी होता है। इसके विरोध में एक मजेदार तर्क है, जब पूरे क्लास के बच्चों को एक तिरपाल से ढककर काम चलाया जा सकता है तो फिर सभी को अलग-अलग कपड़े खरीदने की क्या जरूरत है। लेकिन यह समझना चाहिए कि नियोक्ता की तरफ से जो ग्रुप बीमा दिया जाता है वह किसी कर्मचारी की व्यक्तिगत जरूरतों को देखते हुए नहीं दिया जाता, बल्कि एक सामूहिक जिम्मेदारी के तहत प्रदान किया जाता है। आमतौर पर ग्रुप बीमा के तहत दी जाने वाली राशि किसी कर्मचारी की सालाना आय से दो या तीन गुना ज्यादा होती है जो किसी भी सूरत में उस व्यक्ति की पूरी जरूरत को नहीं कर सकती। यह भी समझना चाहिए कि जब तक कर्मचारी नियोक्ता के यहां काम करता है, तभी तक उसे ग्रुप कवरेज मिलता है। नौकरी छोड़ने के बाद यह सुविधा खत्म हो जाती है।

मान लीजिए आप किसी कंपनी में काम कर रहे हैं और ग्रुप बीमा का कवरेज मिला हुआ है। आप 55 या 58 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं। आपसे ग्रुप बीमा वापस ले लिया जाता है। ऐसे में हो सकता है कि नए बीमा के लिए बहुत ज्यादा राशि देनी पड़े। कई मामलों में तो हो सकता है कि आपको कोई बीमा मिले ही नहीं। कई बार लोग एक नौकरी छोड़कर दूसरी पकड़ते हैं। इसमें देरी भी हो जाती है। इस बीच कुछ हो जाए तो परिवार को काफी दिक्कतों को सामना करना पड़ सकता है।

तो मेरा सुझाव यही है कि व्यक्तिगत बीमा को बिल्कुल अलग से देखना चाहिए। इसे नियोक्ता की तरफ से दिए जाने वाले ग्रुप बीमा से जोड़कर देखा ही नहीं जाना चाहिए। व्यक्तिगत कवरेज की गणना उसके दायित्व, उम्र, सेवा काल, आय, उसके ऊपर निर्भर लोगों की संख्या के आधार पर की जाती है। कई बार अपनी बदलती जरूरत के मुताबिक भी व्यक्तिगत कवरेज में बदलाव करते हैं। आज के दौर में हेल्थ कवरेज भी एक जरूरत बन गई है। इसकी भरपाई ग्रुप बीमा से नहीं की जा सकती। इसी तरह आजकल होम लोन या अन्य कर्ज को भी अलग से कवरेज देने की जरूरत होती है। इसके लिए अलग से बीमा लेना जरूरी हो जाता है।
अमित कुमार राय
चीफ डिस्ट्रीब्यूशन ऑफिसर
एगॉन रेलीगेयर लाइफ इंश्योरेंस
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