जीवन बीमा उद्योग में स्थायित्व लाने का अवसर
पहले बाजार में एक ही कंपनी का वर्चस्व था, वहीं पिछले तेरह वर्षो में 24 कंपनियां आ चुकी है। इस अवधि के कुछ वर्षो में जीवन बीमा बाजार ने तेज वृद्धि देखी है। वहीं कुछ वर्ष मध्यम वृद्धि के रहे और प्रतिस्पद्र्धा बढ़ती चली गई। ग्राहकों की आवश्यकताओं और बीमा कंपनियों के बीच बढ़ती प्रत्ि
पहले बाजार में एक ही कंपनी का वर्चस्व था, वहीं पिछले तेरह वर्षो में 24 कंपनियां आ चुकी है। इस अवधि के कुछ वर्षो में जीवन बीमा बाजार ने तेज वृद्धि देखी है। वहीं कुछ वर्ष मध्यम वृद्धि के रहे और प्रतिस्पद्र्धा बढ़ती चली गई। ग्राहकों की आवश्यकताओं और बीमा कंपनियों के बीच बढ़ती प्रतिस्पद्र्धा के कारण विभिन्न प्रकार के उत्पादों एवं नई सोच वाले परिचालनों को बल मिला है। नियामक वातावरण में बदलाव ने भी उद्योग के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है।
वर्ष 2000 में बीमा उद्योग का उदारीकरण होने के बाद से भारतीय बीमा उद्योग में अनेक बदलाव हुए हैं। हालांकि बीमा उद्योग अभी भी पिछले कुछ वषरें की आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण पैदा हुई चुनौतियों की छाया से बाहर निकलने के लिए संघर्षरत है। लेकिन उद्योग के मजबूत बुनियादी कारक स्थायी दीर्घकालिक विकास का खाका तैयार करने का अच्छा संकेत दे रहे हैं।
वर्ष 2001-10 के बीच की अवधि में बीमा उद्योग का तेजी से विकास हुआ है। इस दौरान नए बिजनेस प्रीमियम में 31 फीसद की समग्र औसत विकास दर (सीएजीआर) दर्ज की गई। उसके बाद दो वषरें में सामान्य विकास (2010-12 में नए बिजनेस प्रीमियम में दो फीसद की सीएजीआर) का दौर रहा। बीमा उद्योग के उदारीकरण के प्रथम दशक में नए ढंग के उत्पादों एवं बीमा क्षेत्र के तेज विस्तार के बल पर असाधारण वृद्धि दर्ज की गई और जीवन बीमा उद्योग ने तेज विकास किया। बहरहाल, इस अंधाधुंध वृद्धि ने उत्पाद डिजाइन, बाजार संचालन एवं शिकायत प्रबंधन से संबंधित मुद्दों और उद्योग की दीर्घकालिक सेहत के लिए दिशापरिवर्तन की आवश्यकता को भी जन्म दिया। पिछले दो वषरें में कई नियामकीय बदलाव किए गए हैं। इस दौरान जीवन बीमा कंपनियों ने विभिन्न प्रकार की नई ग्राहक केंद्रित कार्यप्रणालियां अपनाईं। उत्पाद संबंधी बदलावों (जैसे सितंबर 2011 में यूलिप में और अब पारंपरिक उत्पादों में किए जाने वाले परिवर्तन) का उद्योग पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा।
उत्पादों के लिए नए दिशानिर्देश
लिंक्ड और गैर लिंक्ड दोनों तरह के उत्पादों के लिए नए दिशानिर्देश अब वर्ष 2014 की शुरुआत से लागू होंगे। इन्हें पूर्व निर्धारित तिथि से तीन महीनों के लिए बढ़ा दिया गया है। यानी जनवरी से मार्च की महत्वपूर्ण तिमाही में अब बीमा क्षेत्र नए उत्पादों की पूरी रेंज लेकर उतरेगा और बीमा विœेता भी उत्पादों की सभी बारीकियों को पूरी तरह समझ चुके होंगे।
ये नए दिशानिर्देश इरडा के ग्राहक के प्रति रुझान और जीवन बीमा व्यवसाय की दीर्घकालिक प्रकृति के अनुरूप हैं। ये गारंटी उपलब्ध कराने और पारदर्शिता बढ़ाने के दो अति महत्वपूर्ण विषयों का अनुसरण करते हैं। सभी प्रकार के जीवन बीमा उत्पादों के लिए किए गए इन बड़े बदलावों में उच्च मृत्यु लाभ, गारंटीशुदा सरेंडर वैल्यू और अनिवार्य लाभ विवरण शामिल हैं। हालांकि मृत्यु लाभ और सरेंडर वैल्यू से संबंधित परिवर्तन ग्राहकों, खासकर अधिक उम्र वाले ग्राहकों का संपूर्ण परिपक्वता लाभ मामूली रूप से घटा सकते हैं। जैसे पालिसी आइआरआर। लेकिन इससे जीवन बीमा द्वारा लाइफ कवर प्रदान करने का उद्देश्य सुनिश्चित हो सकेगा। अन्य आर्थिक उत्पादों से यह कवर प्राप्त नहीं होता। मौजूदा समय में सभी यूलिप उत्पाद अनिवार्यत: व्यक्तिगत लाभ के विवरण के साथ बेचे जाते हैं। यह शर्त अब अन्य प्रकार के उत्पादों के लिए भी लागू की जा रही है। नए दिशानिर्देशों के अंतर्गत बोर्ड स्तर पर च्विद प्राफिट कमेटी' की स्थापना किए जाने का प्रावधान है। व्यक्तिगत लाभ के ब्यौरे से पालिसी की बिक्री से पूर्व होने वाली वार्ता में पारदर्शिता आएगी। जबकि विद प्राफिट कमेटी से पार्टिसिपेटिंग पालिसी के प्रबंधन में बेहतर सुशासन संभव हो सकेगा। वितरक के कमीशन को प्रीमियम भुगतान की अवधि के साथ जोड़ दिए जाने से बीमा उत्पादों की दीर्घकालिक प्रकृति को बढ़ावा मिलेगा।
उज्ज्वल भविष्य
हालांकि पिछले कुछ वषरें से भारतीय परिवारों की बचत दर में गिरावट देखने को मिली है। लेकिन अभी भी भारत बचत करने वालों का देश है। लेकिन समस्या यह है कि यहां परिवारों द्वारा की जाने वाली बचत या तो निष्œिय पड़ी है या फिर ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स में उसका निवेश होता है, जो निवेशकों को उनकी जिंदगी के विभिन्न लक्ष्य हासिल करने में मदद नहीं करते। इसके अतिरिक्त घरेलू बचत के बड़े हिस्से का निवेश रीयल एस्टेट या सोने जैसी गैर लाभकारी परिसंपत्तियों में करने का चलन बेहद चिंताजनक है।
इसके बावजूद जीवन बीमा उद्योग का भविष्य बहुत उ“वल दिखाई दे रहा है। नियामक ढांचे में किए गए तमाम परिवर्तनों से उद्योग के कामकाज और ग्राहकों के साथ संबद्धता के तरीकों में बदलाव आएगा। समूचे विश्व में जीवन बीमा उद्योग अधिकांश मामलों में उलट चक्रीय ढंग से व्यवहार करता है।
उदाहरण के लिए उच्च चालू खाता घाटा एवं राजस्व घाटा, मुद्रा अवमूल्यन, उच्च ब्याज दर जैसे कारणों की वजह से आर्थिक मंदी आने की परिस्थितियों में बचत दर के उच्च स्तर पर बने रहने की संभावना होती है। मौजूदा हालात ऐसे ही हैं, लिहाजा जीवन बीमा की मांग में बढ़ोतरी होगी। ऐसे अनिश्चित वातावरण में बैंकिंग के साथ-साथ जीवन बीमा बचत का बड़ा माध्यम बनता है। इसलिए बीमा उद्योग का कार्यप्रदर्शन काफी अच्छा रहने की उम्मीद है।
मध्यम वर्ग की बढ़ती संख्या और बीमा योग्य युवा जनसंख्या जैसे भौगोलिक कारकों और सुरक्षा एवं रिटायरमेंट प्लानिंग की आवश्यकता के प्रति बढ़ती जागरूकता से भी भारत में जीवन बीमा के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
अब समय आ गया है कि जीवन बीमा उद्योग ग्राहक केंद्रित व्यवहार, उपभोक्ता की जरूरतों पर आधारित उत्पाद समाधानों, नीतिपरक बाजार संचालन और पारदर्शिता एवं प्रबंधन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भी दोहराए। ऐसा करने से मौजूदा एवं आने वाले वषरें में स्वाभाविक नतीजे के तौर पर बीमा उद्योग का विकास होगा।
राजेश सूद
मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं प्रबंध निदेशक, मैक्स लाइफ इंश्योरेंस