नामित व्यक्ति को बीमा के बारे में जरूर बताएं
जीवन बीमा करवाना आधुनिक जीवन का एक अहम सच बन गया है। देश का जीवन बीमा बाजार आज की तारीख में सबसे ज्यादा प्रतिस्पद्र्धा वाला बाजार बन गया है। दो दर्जन से ज्यादा निजी क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनियां तरह तरह के उत्पाद बेचने में लगी हुई हैं। लेकिन जहां
जीवन बीमा करवाना आधुनिक जीवन का एक अहम सच बन गया है। देश का जीवन बीमा बाजार आज की तारीख में सबसे ज्यादा प्रतिस्पद्र्धा वाला बाजार बन गया है। दो दर्जन से ज्यादा निजी क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनियां तरह तरह के उत्पाद बेचने में लगी हुई हैं। लेकिन जहां तक ग्राहकों की सुविधाओं का सवाल है तो उसे अभी तक संतोषप्रद नहीं कहा जा सकता। निजी क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनी एगॉन रेलीगेयर लाइफ इंश्योरेंस के एमडी व सीईओ केएस गोपालकृष्णन इस बात को स्वीकार करते हैं लेकिन वह यह भी कहते हैं कि अब कंपनियों ने ग्राहकों की संतुष्टि की जरूरत को पहचान लिया है। कंपनियों की तरफ से इस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं ताकि उत्पाद बेचने से लेकर बीमा कवरेज दिलाने तक ग्राहकों को बेहतर सेवा दी जा सके।
कई बार बीमा क्लेम के दावे को खारिज कर दिया जाता है। कंपनियां ऐसे क्यों करती हैं?
- जीवन बीमा क्लेम के खारिज होने की कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन मैंने देखा है कि लोग क्लेम का दावा करने में काफी देरी कर देते हैं। नियमों के मुताबिक दो वर्ष बाद अगर बीमा क्लेम का दावा किया जाता है तो कंपनियां उसे स्वीकार नहीं करती हैं और कई लोग इस अवधि के बाद ही क्लेम का दावा करते हैं। कई बार तो नामित लोगों को मालूम ही नहीं होता कि वह बीमित व्यक्ति दावे के भुगतान के दावेदार हैं। इससे वह दावा ही बाद में करते हैं। साथ ही मैं कुछ और बातें आपका बताना चाहूंगा जैसे अगर दावे की राशि छोटी है तो कंपनियों की तरफ से उसके भुगतान में देरी नहीं की जाती। लेकिन दावे की राशि ज्यादा है या फिर बीमा करवाने के एक ही वर्ष के भीतर बीमित व्यक्ति की मृत्यु हो गई है तो हमें उसकी जांच-पड़ताल करवानी होती है। इसमें कई बार देरी हो जाती है। यहां देरी करना उद्देश्य नहीं होता बल्कि यह तय करना जरूरी है कि बीमा के नाम पर कोई चीटिंग तो नहीं हो रही है। कई बार ग्राहकों के स्तर पर भी सही सूचनाएं नहीं दी जातीं जिसकी वजह से देरी हो जाती है। जैसे पुरानी बीमारी को छिपा दिया जाता है या किसी गंभीर बीमारी का इलाज चल रहा है उसके बारे में नहीं बताया जाता।
लेकिन क्या वजह है कि निजी बीमा कंपनियों का ही क्लेम सेटेलमेंट का अनुपात बेहद खराब है?
-देखिए दूसरी कंपनियां क्या कर रही हैं या उनके स्तर पर क्या गड़बड़ी हो रही है, इसके बारे में मैं तो बात नहीं कर सकता। जहां तक हमारी कंपनी का सवाल है और हमने जो अध्ययन किए हैं उसके आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि हमारा क्लेम सेटेलमेंट अनुपात 90 फीसद से ऊपर है। आने वाले दिनों में इसमें और सुधार किया जाएगा। कई बार कंपनियां इस बारे में जो नियम हैं उनका सही तरह से पालन नहीं करतीं। इसलिए भी क्लेम सेटेलमेंट में दिक्कत आती है। बीमा करवाने के समय ग्राहकों से जो सूचना लेनी चाहिए वह नहीं ली जाती लेकिन जब क्लेम देने का समय आता है तो उन अधूरी सूचनाओं को आधार बना लिया जाता है जो पूरी तरह से गलत है। हमारी कंपनी बीमा करवाने से पहले ग्राहकों के स्तर पर दो बार सत्यापित करवाती है कि वह सही बीमा ले रहे हैं या नहीं। मसलन, एक तो एजेंट के स्तर पर सही जानकारी दी जाती है और फिर जब पहली बार प्रीमियम का चेक आता है तब भी ग्राहक को फोन कर पूछा जाता है कि वह अमुक पॉलिसी ले रहा है और उसकी पूरी जानकारी रखता है या नहीं। इसके बाद पॉलिसी जारी कर दी जाती है और ग्राहक को सारे प्रपत्रों को पूरा करने के लिए 15 दिनों का और समय दिया जाता है कि वह चाहे तो पॉलिसी रिटर्न कर सकता है।
आप बताएं कैसे कोई आश्रित तेजी से बीमा क्लेम को हासिल कर सकता है?
-सबसे पहले तो किसी भी सादे कागज पर साइन मत कीजिए। सिर्फ कंपनी के प्रतिनिधि की तरफ से संबंधित फॉर्म को पूरी तरह से भरने के बाद उस पर हस्ताक्षर कीजिए। इसमें हर सवाल का सही जबाव दीजिए। याद रखिए, गलत जबाव आपकी संभावनाओं को कम कर देते हैं। एक और बात है जिसका बीमित व्यक्ति को ध्यान रखना चाहिए कि जिसे भी वह नामित कर रहा है उसे इसकी सूचना जरूर दे देनी चाहिए। अगर इन बातों का ख्याल रखा जाए तो 80 फीसद समस्याओं का हल हो जाता है। साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि बीमा के फायदे सिर्फ मृत्यु होने के बाद ही नहीं मिलते हैं। बीमा पॉलिसियों के अन्य फायदों के बारे में जरूर कंपनी के प्रतिनिधि से पूछताछ करनी चाहिए। इससे आप किसी प्रकार की धांधली होने से बच सकेंगे।
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