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..ताकिछत मिले, आफत नहीं

कहते हैं जहां आर्थिक सुधार की सख्त जरूरत महसूस हो, समझ लिया जाना चाहिए कि वहां बहुत पहले से भारी गडबड़ी चल रही थी और पानी सिर से ऊपर जा रहा है। रीयल एस्टेट नियमन को लेकर यह कहावत बिल्कुल सही जान पड़ती है। देश की विभिन्न जिला अदालतों में 70 फीसद केकरीब दीवानी मुकदमे जमीन जायदाद केविवाद से जुड़े हैं। विकास की गति आगे

By Edited By: Published: Mon, 10 Jun 2013 11:47 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
..ताकिछत मिले, आफत नहीं

कहते हैं जहां आर्थिक सुधार की सख्त जरूरत महसूस हो, समझ लिया जाना चाहिए कि वहां बहुत पहले से भारी गडबड़ी चल रही थी और पानी सिर से ऊपर जा रहा है। रीयल एस्टेट नियमन को लेकर यह कहावत बिल्कुल सही जान पड़ती है। देश की विभिन्न जिला अदालतों में 70 फीसद केकरीब दीवानी मुकदमे जमीन जायदाद केविवाद से जुड़े हैं।

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विकास की गति आगे बढ़ी तो अपार्टमेंट कल्चर ने देश केमिडिल क्लास को जीवन भर के लिए कर्जदार बना दिया। इसकेऊपर डेवेलपर्स की मनमानी और इस सेक्टर में काले धन केइस्तेमाल ने आम आदमी की कीमत पर कुछ चंद लोगों की जेब जरूर भरी।

सुपर एरिया केनाम पर ठगा जाना, पार्किंग और बुनियादी सुविधाओं के लिए अलग से जेब ढीली करना, समय पर फ्लैट का पजेशन न मिलना। उपभोक्ता केपास इन सभी चीजों से समझौता करने केअलावा कोई चारा न था। लेकिन चौतरफा तमाम दबावों को झेलने केबाद रीयल एस्टेट बिल देर से ही सही, अब शायद अमली जामा ओढ़ने केलिए तैयार है। रीयल एस्टेट नियमन विधेयकको लेकर हाउसिंग मामलों केमंत्री अजय माकन काफी उत्साह में हैं।

क्यूं खास है रीयल एस्टेट रेगुलेशन बिल

-1000 वर्ग मीटर या 12 से ज्यादा यूनिट वाले सारे प्रोजेक्ट सभी जरूरी मंजूरियों केसाथ रेगुलेटर के पास पंजीकरण कराना अनिवार्य

-पूरे देश में फ्लैट की कीमतों के निर्धारण केलिए कारपेट एरिया को आधार बनाया जाएगा। सुपर एरिया अब बीते जमाने की बात हो जाएगी

-अपार्टमेंट की परिभाषा में कार गैराज को भी शामिल करना जरूरी हो गया है। अब पार्किंग के लिए अलग से चार्ज नहीं कर पाएंगे बिल्डर्स

-ग्राहकों को गलत वायदे करना और भ्रामक विज्ञापन देना अब अपराध की श्रेणी में

-पूरे देश में एकजैसा ही बिल्डर बॉयर एग्रीमेंट बनाने की कोशिश

-सभी मंजूरियां मिलने केबाद ही प्रोजेक्ट की शुरुआत

-सभी मंजूरियों की डीटेल्स बेवसाइट पर होनी जरूरी

-हर तीन माह में प्रोजेक्ट की प्रोग्रेस रिपोर्ट बेवसाइट पर देना जरूरी

-हर प्रोजेक्ट केलिए जुटाए गए पैसे का 70 फीसद अलग अकाउंट में जमा करना होगा

-रीयल एस्टेट एजेंटों को भी कराना होगा पंजीकरण, काले धन पर लगाम लगाने की कोशिश

-नियमों की अनदेखी पर हो सकता है प्रोजेक्ट कीमत का 3 से 10 फीसद जुर्माना

-बार-बार गलती करने वालों के लिए तीन साल की जेल का भी प्रावधान

रेगुलेटर की शक्तियां

सुधार विधेयक में रीयल एस्टेट रेगुलेटर को प्रोजेक्ट केपंजीकरण और नियमों के उल्लंघन की स्थिति में किसी भी प्रोजेक्ट को रद करने का अधिकार प्रस्तावित किया गया है। प्रस्तावित कानून में ग्राहकों की सुरक्षा केसाथ-साथ विवाद की स्थिति में निवारण की व्यवस्था की गई है।

रेगुलेटर खास तरह की कार्रवाई का निर्देश जारी कर सकता है। उदाहरण के लिए, अगर प्रोजेक्ट में किए गए वादे केमुताबिककाम नहीं किया जा रहा है तो वह डेवलपर को उचित बदलाव का निर्देश जारी कर सकेगा। बिना सभी अनुमतियों केप्रोजेक्ट शुरू करने की स्थिति में और भ्रामक प्रचार केजरिये अपने फ्लैट बेचने की शिकायत पाए जाने पर रेगुलेटर डेवलपर पर कुल प्रोजेक्ट की कीमत का तीन से 10 फीसद तक आर्थिक जुर्माना लगा सकता है। कई बार गलती करने की स्थिति में कपनी केप्रोमोटर और डायरेक्टर को तीन साल की जेल का प्रावधान भी किया गया है।

कीमतों का क्या होगा

सबसे पहले यह तथ्य स्पष्ट कर दें कि रेगुलेटर केपास प्रॉपर्टी कीमतों के नियमन की कोई शक्तियां नहीं हैं। इसलिए प्रॉपर्टी की कीमतें मांग और पूर्ति, रॉ मेटेरीयल की कीमत और दूसरे कारकों पर निर्भर करेगी। क्रेडाइ के चेयरमैन ललित कुमार जैन मानते हैं कि हर प्रोजेक्ट में कीमत औसतन 100 से 500 रुपये प्रति वर्ग फीट बढ़ जाएगी।

बड़े रीयल एस्टेट डेवलपर और जानी-मानी रीयल एस्टेट रिसर्च कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों की मानें तो नियमन केबाद प्रॉपर्टी की कीमतों में इजाफा होना तय है। इसकी वजह है कि अभी तक डेवलपर बिना आवश्यक मंजूरी मिले ही सॉफ्ट लांच और प्री-लांच केजरिये पैसे जुटाते थे।

नियमन केबाद कोई भी डेवलपर विभिन्न प्राधिकरणों से आवश्यक मंजूरी मिले बिना नया प्रोजेक्ट लांच नहीं कर सकते। इसकेअलावा डेवलपर को नए प्रोजेक्ट से जुटाई गई रकम का 70 प्रतिशत एक अलग बैंक खाते में रखना होगा, जो उस प्रोजेक्ट केनिर्माण में इस्तेमाल किया जाएगा।

इससे बिल्डर एकप्रोजेक्ट से जुटाए गए धन का इस्तेमाल दूसरे केलिए नहीं कर सकेंगे। इन सबका असर प्रॉपर्टी की कीमतों पर पड़ना लाजिमी है।

क्या है आगे की राह

इस विधेयक को कैबिनेट से पास होने केबाद अब संसद केसमक्ष पेश किया जाना है। माकन का दावा है कि वह आने वाले मानसून सत्र में इस विधेयक को पेश करने की पूरी कोशिश करेंगे। फिर संसदीय समिति की सिफारिशों केबाद इसे संसद के दोनों सदनों की मंजूरी केलिए रखा जाएगा। सदन में पारित होने केबाद विधेयक अधिनियम बन जाएगा। लेकिन कानून बनने केबाद भी हर राज्य में रीयल एस्टेट रेगुलेटर आने में एक साल का वक्त लग सकता है।

विवाद की स्थिति में विकल्प

किसी भी विवाद अथवा परेशानी की स्थिति में ग्राहकों केपास शिकायत निवारण केलिए तीन चरण हैं। सबसे पहले संयुक्त सचिव स्तर का एक अधिकारी केपास शिकायत की जा सकेगी। अगर इस स्तर पर आपको परेशानी का हल नहीं मिलता तो उसके बाद रेगुलेटर केपास जाने का रास्ता खुला है। रेगुलेटर तय वक्त के भीतर आपको आपकी परेशानी का हल देगा। अगर आप रेगुलेटर की राय से इत्तेफाक नहीं रखते हैं तो अपीलीय ट्रिब्यूनल की व्यवस्था भी की गई है।

खुशी की बात यह है कि इसके साथ-साथ ग्राहकों केपास उपभोक्ता फोरम में जाने का रास्ता खुला है। साथ ही किसी बड़ी वित्तीय गड़बड़ी की स्थिति में आर्थिकअपराध शाखा को भी शिकायत की जा सकती है। इस तरह अगर आपको अपना पैसा बिल्डर से वापस चाहिए तो आपको रेगुलेटर के पास जाना होगा, जो आपकी परेशानी को हल करने में आपकी मदद करेगा। उपभोक्ता फोरम का दरवाजा अब भी आपकेलिए खुला है।

कोट्स

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'यह देश का पहला विधेयक है, जिसकेप्रावधान पहले तो ग्राहकों को धोखे से बचाते हैं और बाद में किसी परेशानी की स्थिति का हल भी देते हैं। इससे काले धन केइस्तेमाल पर भी लगाम लगेगी।'

-अजय माकन

आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री

'इस विधेयक की दिशा सही है, लेकिन इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। प्रोजेक्ट कीमत का 70 फीसद अकाउंट में रख पाना व्यावहारिकनहीं है।'

-ललित कुमार जैन

चेयरमैन, क्रेडाइ

हमारी राय

बोनस की टीम इस विधेयक के प्रावधानों की जांच-पड़ताल केबाद इस नतीजे पर पहुंची है कि कानून बन जाने केबाद भी रीयल एस्टेट में काले धन के इस्तेमाल पर लगाम नहीं लग पाएगी। कीमतों को लेकर कई नियमन न होने की वजह से अगर बाजार में 5,000 रुपये प्रति वर्ग फीट वाला फ्लैट किसी को स्पेशल ग्राहक बता कर (लकी ड्रा वगैरह के जरिये) 3,000 रुपये प्रति वर्ग फीट में बेचा जाए।

बाकी का पैसा काले धन के रूप में ले लिया जाय तो इसका कोई हल विधेयक में नहीं है। इसी तरह से कॉमर्शियल प्रॉपर्टी इस अधिनयम के दायरे में नही आती। जमीन की खरीद-फरोख्त भी इसकेबाहर है। इस तरह से यह अधिनियम पूरे रीयल एस्टेट केसिर्फ एक चुनिंदा हिस्से को ही कवर करता है। लेकिन शुरुआत ही सही, उपभोक्ताओं केलिए वरदान से कम नहीं है यह विधेयक।


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