जीवन बीमा को चाहिए नया प्रोत्साहन
वर्ष 2000 के बाद से बीमा उद्योग में नियमों के नजरिये से कई बदलाव देखे गए हैं। लाइफ सेक्टर को गति प्रदान करने के लिए कुछ समर्थ कर कानूनों पर विचार करने की जरूरत है। इस साल हमारे पास वित्त मंत्री जी से जीवन बीमा क्षेत्र के लिए कई अपेक्षाएं
वर्ष 2000 के बाद से बीमा उद्योग में नियमों के नजरिये से कई बदलाव देखे गए हैं। लाइफ सेक्टर को गति प्रदान करने के लिए कुछ समर्थ कर कानूनों पर विचार करने की जरूरत है। इस साल हमारे पास वित्त मंत्री जी से जीवन बीमा क्षेत्र के लिए कई अपेक्षाएं हैं:
बचत व पेंशन की अलग सीमा धारा 80सी के तहत दीर्घकालिक बचत और पेंशन के लिए अलग सीमा एक ऐसा सुझाव है जिस पर बहस तो लगातार हो रही है, लेकिन अभी तक फैसला नहीं हो पाया है। दीर्घकालिक बचतों में कर लाभ को बढ़ाना। इससे जीवन बीमा उत्पादों की मांग में तेजी आएगी।
सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2015-16 में बजट पेश करते समय इस पर ध्यान दिया और धारा 80सीसीडी के तहत एनपीएस में योगदान के लिए 50 हजार रूपये की अतिरिक्त कटौती की घोषणा की। यह एक सकारात्मक कदम था, फिर भी धारा 80सी के तहत बीमा के लिए अलग उप-सीमा का आग्रह करते हैं। एशिया में टोटल मोर्टेलिटी
प्रोटेक्शन गैप बढ़कर 57.8 ट्रिलियन डॉलर पहुंच गया है। जागरूकता बढ़ाने के बावजूद, भारत में भी बीमा का मौजूदा स्तर कुल प्रोटेक्शन जरूरत का 10 प्रतिशत भी पूरा नहीं कर पाएगा (स्विस रे का अध्ययन, 2015)। भारत जैसे देश में जहां सामाजिक सुरक्षा का स्तर बहुत कम है, प्रोटेक्शन लेवल उससे भी अधिक निचले स्तर पर है।
धारा 80सी में अतिरिक्त छूट लोगों को अपने परिवार के वित्तीय भविष्य को सुरक्षित करने के लिए और जीवन बीमा खरीदने के लिए प्रोत्साहित करेगी। इससे उन्हें कर लाभ भी प्राप्त होंगे।
टैक्स गणना व मूल्यांकन सरलीकरण : प्रत्यक्ष कर के संदर्भ में वर्तमान में 10 (10डी) के तहत जीवन बीमा पॉलिसी के लिए कर लाभ का फायदा उठाने के लिए, सम एश्योर्ड अथवा लाइफ कवर पहले वर्ष के प्रीमियम का कम से कम 10 गुना होना चाहिए। हम सरकार से इस सीमा पर विचार करने और कर लाभ प्राप्त करने के लिए इसे घटाकर पांच गुना करने का अनुरोध करते हैं। इससे देश में बीमा की पैठ बढ़ेगी और ग्राहकों पर दोहरे कराधान का बोझ दूर होगा। मौजूदा समय में ग्राहक से पॉलिसी खरीदते समय और सीमा पूरी न होने की स्थिति में मियाद समाप्त होने पर कर वसूला जाता है। इससे उद्योग का विकास प्रभावित हुआ है, क्योंकि लोग बीमा उत्पादों को खरीदने से कतराते हैं जो कि उन्हें दीर्घकालिक बचत के जरिए लिविंग बेनेफिट्स प्रदान करते हैं।
बीमा कंपनियों का टैक्सेशन :
उद्योग के लिए समूची कर संरचना को स्ट्रीमलाइन किए जाने की जरूरत है। इससे संसाधनों के प्रबंधन और उनका अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने में आसानी होगी। कर कानूनों खासतौर पर बीमा कंपनियों के लिए मुनाफे के कंप्यूटेशन (परिकलन) से संबंधित और सेवा कर के लिए कराधान के बिंदु पर अधिक स्पष्टता की मांग करते हैं। इससे मूल्यांकन और वैधानिक प्रक्रियाओं को आसान बनाने में मदद मिलेगी।
मध्य वर्ग में वृद्धि, आमदनी और खर्च का स्तर बढऩे, बीमा जागरूकता में सुधार और आधारभूत संरचना में अधिक निवेश ने भारत में बीमा उद्योग के विकास के लिए एक मजबूत नींव तैयार की है। औसत लोगों की जीवन प्रत्याशा 74 वर्ष पहुंचने के साथ ही, 2020 तक देश की बीमा योग्य आबादी के 75 करोड़ का आंकड़ा छूने की संभावना है। ऐसा अनुमान है कि इस दशक के अंत तक कुल घरेलू बचत में जीवन बीमा उद्योग का योगदान 35 फीसद पहुंच जाएगा। वित्त वर्ष 2009-10 में यह आंकड़ा 26 प्रतिशत था।
बीमा उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था की मदद करने के लिए अनूठी पोजीशन में हैं। उद्योग द्वारा मध्यम से लंबी अवधि के दौरान कई चुनौतियों से निपटने में मदद की जाएगी। हालाकि, बहुत कुछ इस सेक्टर द्वारा नई पूंजी आकर्षित करने की क्षमता के साथ-साथ उद्योग को परिचालन के लिए एक सहायक वातावरण को बढ़ावा देने के लिए पॉलिसी निर्माताओं की क्षमता पर निर्भर करेगा।
तरुण चुग
एमडी एवं सीईओ, पीएनबी
मेटलाइफ