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स्वास्थ्य बीमा अब विकल्प नहीं, अनिवार्यता

बहुत सारे लोग बदलती जीवन शैली के कारण कम उम्र में बीमारी के शिकार हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत की पहचान ऐसे देश के रूप में की है, जहां आने वाले समय में जीवनशैली से जुड़ी बीमारी के सबसे ज्यादा मामले सामने आएंगे। इवेट कंपनी के मैनेजर मय

By Edited By: Published: Mon, 12 May 2014 04:54 AM (IST)Updated: Mon, 12 May 2014 05:31 AM (IST)
स्वास्थ्य बीमा अब विकल्प नहीं, अनिवार्यता

बहुत सारे लोग बदलती जीवन शैली के कारण कम उम्र में बीमारी के शिकार हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत की पहचान ऐसे देश के रूप में की है, जहां आने वाले समय में जीवनशैली से जुड़ी बीमारी के सबसे ज्यादा मामले सामने आएंगे।

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इवेट कंपनी के मैनेजर मयंक देसाई को 45 वर्ष की उम्र में दिल का हल्का दौरा पड़ने से सर्जरी की जरूरत पड़ी। उनकी कार, घर सब लोन पर थे। दोनों बच्चे विदेश में पढ़ते थे और उन पर बीमार पिता की देखभाल की जिम्मेदारी थी। ऐसे में ऑपरेशन के लिए अचानक चार लाख रुपये का इंतजाम मुश्किल था। सौभाग्य से कुछ समय पूर्व एक दोस्त की सलाह पर उन्होंने एक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ली थी। संकट की घड़ी में यह उनके बड़े काम आई। हालांकि बीमा कंपनी ने उनके अस्पताल के बिलों का भुगतान तो कर दिया, परंतु लंबे समय तक आराम करने व काम न करने से घरेलू खर्चो के लिए उनके परिवार को वित्तीय दिक्कत का सामना करना पड़ा।

देसाई का मामला अकेला नहीं है। लोग बदलती जीवन शैली के कारण कम उम्र में बीमारी के शिकार हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत की पहचान ऐसे देश के रूप में की है, जहां आने वाले समय में जीवनशैली बीमारी के सबसे ज्यादा मामले सामने आएंगे। भारत पहले ही विश्व में मधुमेह का गढ़ कहा जाने लगा है। धीरे-धीरे वह जीवनशैली बीमारी का गढ़ भी बनता जा रहा है। ऐसी बीमारी युवाओं को भी तेजी से प्रभावित कर रही हैं। नतीजतन, 40 के बजाय 30 से अधिक उम्र वाले इनकी चपेट में आने लगे हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) व मैक्स हॉस्पिटल के मुताबिक अत्यधिक तनाव, मोटापा व दिल की बीमारी के मामले खतरनाक ढंग से बढ़ रहे हैं। खासकर शहरी युवा वर्ग में। अनियमित दिनचर्या, उल्टा-सीधा खाना व शराब को इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है।

ऐसे में इलाज पर खर्च से भारतीय परिवार तबाह हो रहे हैं। वर्ष 2005 में भारत में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा इलाज पर खर्च 41.83 रुपये था। वहीं 2010 में यह बढ़कर 68.63 रुपये हो गया था। इस दौरान दवाओं पर प्रति व्यक्ति खर्च 29.77 रुपये से बढ़कर 46.86 रुपये हो गया। अस्पताल खर्च 11.22 से बढ़कर 22.47 फीसद पर पहुंच गया। वस्तुत: भारत में लोग आय का औसतन 10 फीसद खचच् स्वास्थ्य देखभाल पर करते हैं। जिन राज्यों में हेल्थ बीमा सुविधा है, वहां यह खचच् लगभग 15 फीसद है, जबकि जहां नहीं है वहां 11 फीसद। ऐसे में अपने और परिजनों की तंदुरुस्ती व सलामती के लिए हेल्थ बीमा की महत्ता समझ में आ जानी चच्हिए।

हेल्थ बीमा के अनेक उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं। इनमें से अपनी जरूरत के हिसाब से उपयुक्त पॉलिसी का चचन किया जा सकता है। स्वास्थ्य बीमा योजनाएं मोटे तौैर पर दो तरह की होती हैं- इंडेम्निटी आधारित व लाभ आधारित। मेडिक्लेम इंडेम्निटी आधारित योजना है, जिसके तहत बीमाधारक के इलाज का समस्त खचच् बीमा कंपनी अदा करती है। बशर्ते वह खचच् बीमित राशि के बराबर या उससे कम हो। परंतु मेडिक्लेम में कई चच्जों का खचच् शामिल नहीं होता। लिहाजा पॉलिसीधारक को मेडिक्लेम खरीदने से पहले सारी शर्ते पढ़नी चच्हिए। मेडिक्लेम भी दो तरह का होता है: फैमिली फ्लोटर प्लान में पूरे परिवार के हेल्थ कवरेज के लिए एक ही प्रीमियम अदा करना होता है। दूसरा, ग्रुप मेडिक्लेम है जिसे कंपनियां कर्मचच्रियों के हेल्थ बीमा के लिए अपना रही हैं।

लाभ आधारित हेल्थ इंश्योरेंस को गंभीर रोग योजना या अस्पताल नकदी योजना में विभाजित किया जा सकता है। गंभीर रोग योजना के मामले में बीमाधारक अपनी किसी गंभीर बीमारी के इलाज का संपूर्ण खचच् बीमा कंपनी से प्राप्त कर सकता है। अस्पताल नकदी योजना में बीमाधारक को रोजाना पहले से तय राशि का भुगतान अस्पताल खचच् के रूप में किया जाता है। इसमें केवल रूम चच्र्जेज शामिल होते हैं, सभी खचचर्् इसमें कवर नहीं होते।

ऐसे में कौन सा हेल्थ प्लान लेना चच्हिए?

मेडिक्लेम अल्पावधि पॉलिसी होती है। इसमें भुगतान अस्पताल के खचच् के हिसाब से होता है। ऐसे में छोटी-मोटी बीमारी, जैसे कि फूड प्वाइजनिंग, अपेंडिक्स की वजह से अस्पताल में भर्ती होने पर यह मददगार साबित हो सकती है। इसमें टेस्ट समेत सभी खचचर्् का भुगतान बीमा कंपनी करती है। परंतु कैंसर जैसी बीमारी में, जिसमें लंबे समय तक व खचचर््ला इलाज होता है, मेडिक्लेम किसी काम की नहीं है। उसके लिए क्रिटिकल इलनेस प्लान लेना चच्हिए, क्योंकि इसमें बीमा कंपनी से एकमुश्त राशि मिलती है, जिसका इस्तेमाल सर्वश्रेष्ठ डॉक्टरों से इलाज में किया जा सकता है। यदि अस्पताल से कुछ बचच्जाए तो बाकी राशि का इस्तेमाल घरेलू खचचर्् में हो सकता है। चच्कि मेडिक्लेम और क्रिटिकल इलनेस प्लान का अलग-अलग मकसद है, लिहाजा दोनों लेना बेहतर है।

उपरोक्त मामले में देसाई ने केवल मेडिक्लेम ले रखी थी। इससे उन्हें अस्पताल का एकमुश्त खचच् तो मिल गया, मगर बाद की जांचच् व दवाओं के लिए उन्हें दिक्कत हुई। फिर भी उपयुक्त हेल्थ पॉलिसी चच्नना आसान नहीं है। सही चच्नाव के लिए आयु, कवर होने वाली बीमारी, बीमा अवधि व प्रीमियम सब कुछ देखना चच्हिए। कम प्रीमियम पॉलिसी तो ठीक है, मगर बीमारी कौन-कौन सी कवर हो रही हैं यह जानना ज्यादा अहम है। ऐसा न हो कि कम प्रीमियम के चच्कर में हेल्थ पॉलिसी ले ली। जब अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ी तो पता चचा वह बीमारी पॉलिसी में कवर ही नहीं है। इंश्योरेंस एग्रीग्रेटर वेबसाइटें विभिन्न हेल्थ पॉलिसियों का तुलनात्मक ब्योरा देती हैं। इन्हें देखकर उचिच निर्णय लिया जा सकता है। कुछ कंपनियां ऑनलाइन हेल्थ इंश्योरेंस भी प्रदान करती हैं। इसमें प्रीमियम कम और फायदे वही होते हैं। ऑनलाइन पॉलिसी लेना ज्यादा आकर्षक व सुविधाजनक है।

इसके अलावा सीआइ राइडर के साथ जीवन बीमा कंपनी से एंडोमेंट पॉलिसी भी खरीदना लाभप्रद हो सकता है। इसमें समग्र कवर प्राप्त होगा। जीवन बीमा लाभों के अलावा सीआइ राइडर के तहत इसमें बीमाधारक को गंभीर बीमारी की स्थिति में इलाज खचच् अतिरिक्त मिलेगा। हेल्थ इंश्योरेंस उत्पादों में आयकर की धारा 80डी के त् ाहत कर लाभ भी मिलते हैं। इसमें बीमाधारक, जीवनसाथी व बच्चोच्च्के हेल्थ इंश्योरेंस पर 15 हजार रुपये तक के सालाना प्रीमियम के डिडक्शन की सुविधा है। जबकि माता-पिता के हेल्थ बीमा पर अदा 15 हजार रुपये तक और यदि वे 65 वर्ष या अधिक उम्र के हैं तो 20 हजार रुपये तक के हेल्थ बीमा पर डिडक्शन का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

टीआर रामचंदच्न

एमडी एंड सीईओ, अवीवा लाइफ इंश्योरेंस


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