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महिलाओं के लिए अलग से हेल्थ कवर जरूरी

अपनी देखभाल के प्रति आमतौर पर महिलाएं उदासीन रहती हैं। उनकी पारिवारिक प्राथमिकताओं में अपनी सेहत की चिंता सबसे नीचे रहती है। लगभग प्रत्येक परिवार की महिला अपने स्वास्थ्य की देखभाल संबंधी कार्यों को फिजूलखर्च या लक्जरी मानती हैं।

By Edited By: Published: Tue, 22 Sep 2015 08:21 AM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2015 09:39 AM (IST)
महिलाओं के लिए अलग से हेल्थ कवर जरूरी

अपनी देखभाल के प्रति आमतौर पर महिलाएं उदासीन रहती हैं। उनकी पारिवारिक प्राथमिकताओं में अपनी सेहत की चिंता सबसे नीचे रहती है। लगभग प्रत्येक परिवार की महिला अपने स्वास्थ्य की देखभाल संबंधी कार्यों को फिजूलखर्च या लक्जरी मानती हैं।

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उनका हर दिन का रुटीन तय था। हमेशा की तरह वह रोज अपने परिवार के लिए सुबह नाश्ता तैयार करती थीं। अपने पांच वर्षीय बेटे को स्कूल छोड़ने जाती थीं। उसके बाद ऑफिस और फिर शाम को घर लौटकर बिस्तर पर थककर तकरीबन गिर जाने से पहले परिवार के लिए डिनर तैयार करतीं और तब खुद खाना खातीं। लेकिन एक दिन सुबह प्रेक्षा साहनी नहीं उठ पाईं। उन्होंने उठने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन उनके शरीर ने इससे इन्कार कर दिया। प्रेक्षा के पति ने फैमिली डॉक्टर को बुलाया। टेस्ट किए गए और अंत में पता चला कि प्रेक्षा के शरीर में हीमोग्लोबिन बेहद कम है।

प्रेक्षा की यह कहानी आमतौर पर हर महिला की कहानी है। वे अपने शरीर से जरूरत से ज्यादा काम लेती हैं। अपनी देखभाल के प्रति आमतौर पर उदासीन रहती हैं। उनकी पारिवारिक प्राथमिकताओं में अपनी सेहत की चिंता सबसे नीचे रहती है। लगभग प्रत्येक परिवार की महिला अपने स्वास्थ्य की देखभाल संबंधी कार्यों को फिजूलखर्च या लक्जरी मानती हैं।

दरअसल महिलाएं इसकी वास्तविकता को नहीं समझतीं कि उनकी सेहत संबंधी जरूरतें उनके पुरुष साथी के मुकाबले अधिक जटिल हैं। आइसीआइसीआइ लोम्बार्ड के 2013 व 2014 के स्वास्थ्य संबंधी विश्लेषण के आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं ऑर्थराइटिस, एनीमिया, मेटाबॉलिक डिसऑर्डर व कैंसर जैसी बीमारियों से पुरुषों के मुकाबले ज्यादा पीड़ित होती हैं। आज जरूरत इसकी है कि उनकी स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को अलग से और स्वतंत्र तौर पर देखा जाना चाहिए। चूंकि महिलाएं अपने पूरे जीवन काल में कई तरह के शारीरिक व मानसिक बदलाव के दौर से गुजरती हैं। इसलिए उनकी स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर खास ध्यान रखना जरूरी होता है।

तीस वर्ष से अधिक की महिलाओं के लिए सुरक्षा संबंधी उपायों को अपनाना आवश्यक है और साथ ही नियमित जांच कराना जरूरी है। इस वर्ग की महिलाओं के लिए सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने वाले पीएपी स्मियर टेस्ट, थायराइड प्रोफाइल, विटामिन डी व विटामिन बी 12 की जांच कराना अति आवश्यक है। इसी तरह 45 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते उनके लिए ईसीजी, रीनल प्रोफाइल, मैमोग्राफी, लिपिड प्रोफाइल वगैरह की जांच कराना जरूरी हो जाता है।

तकरीबन सभी महिलाओं के लिए स्तन व सर्वाइकल कैंसर, हारमोन असंतुलन और ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम के लिए जांच कराना आवश्यक होता है। इनके अलावा महिलाओं में ऑटो इम्यून बीमारियों का खतरा भी काफी अधिक रहता है। इनमें मल्टीपल स्क्लेरोसिस व र्यूमेटाइड ऑर्थराइटिस जैसी बीमारियां शामिल हैं, जिनमें लगातार इलाज की आवश्यकता होती है।

अगर इन बीमारियों का पता शुरू में न चले तो आगे चलकर ये जानलेवा हो सकती हैं। इन बातों की अनदेखी करना काफी खतरनाक हो सकता है। इन बीमारियों से दूर रहने का एकमात्र रास्ता यही है कि इनकी रोकथाम के उपाय हों, जल्द पता लगे और जानकारी होते ही इसका इलाज हो जाए। अधिक उम्र की महिलाओं के लिए बेहद आवश्यक है कि वे स्तन व सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के उपाय करें, पोषक आहार व कैल्शियम की मात्रा को शरीर में बनाए रखें। हारमोन संतुलन के नियमित टेस्ट कराना भी काफी जरूरी है।

आज ज्यादातर महिलाएं इन बीमारियों व स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के प्रति जागरूक हैं। लेकिन महंगे इलाज व रोजमर्रा की दिनचर्या महिलाओं को नियमित मेडिकल जांच कराने से रोकती है। चिकित्सा सुविधाओं की बढ़ती लागत ने किसी के लिए इसका प्रबंध करना मुश्किल बना दिया है। इसका केवल एक ही जवाब है पर्सनल हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी। इस तरह की पॉलिसी न केवल महिलाओं को स्वस्थ जीवन जीने का अवसर देती है, बल्कि इन बीमारियों के रोकथाम के उपाय करने की सुविधा भी प्रदान करती है। अगर महिलाओं के पास व्यक्तिगत हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी हो तो उनके लिए मेडिकल सुविधाएं भी बिना खर्च की चिंता के उपलब्ध कराई जा सकती हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की महिलाएं आमतौर पर सरकारी स्वास्थ्य स्कीमों के दायरे में आती हैं।

लेकिन शहरी महिलाएं स्वास्थ्य संबंधी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी पर ही निर्भर करती हैं। पॉलिसी यदि वे नौकरी करती हैं तो उनके संगठन की तरफ से दी गई हो सकती है या फिर उनके पति के कार्यालय से दी जाने वाली पॉलिसी में वे शामिल होती हैं। यह सुविधा तब कारगर नहीं होती, जब पति नौकरी बदलने के दौर में होते हैं और कोई मेडिकल इमर्जेंसी हो जाती है। या कभी-कभी नियोक्ता ही आपके हेल्थ कवर को कम कर देते हैं। वैसे भी इस तरह की पॉलिसियां आपकी चिकित्सा जरूरतों को पूरा करने में सहायक नहीं होतीं। इसलिए जरूरी है कि महिलाओं के लिए अलग से हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ली जाए।
यह स्पष्ट है कि महिलाएं यदि हेल्थ बीमा के दायरे में आती हैं तो वे प्राथमिक और विशिष्ट दोनों प्रकार की स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल करती हैं। इसलिए अब वक्त आ गया है कि महिलाओं को चिकित्सा संबंधी चिंताओं को अपने हाथों में लेना चाहिए।
अमित भंडारी
हेड, हेल्थ अंडरराइटिंग एंड क्लेम्स आइसीआइसीआइ लोम्बाड

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