मवेशी बीमा से गरीबी को थामने में मिलेगी मदद
आपको यह बात थोड़ी अजीब लगेगी, लेकिन यह सच है कि भारत के ग्रामीण इलाकों में मवेशियों के लिए पर्याप्त बीमा सुविधा नहीं होने से लाखों लोग हर साल गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। इसकी सच्चाई जानने के लिए बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं है। असम अभी
आपको यह बात थोड़ी अजीब लगेगी, लेकिन यह सच है कि भारत के ग्रामीण इलाकों में मवेशियों के लिए पर्याप्त बीमा सुविधा नहीं होने से लाखों लोग हर साल गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। इसकी सच्चाई जानने के लिए बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं है। असम अभी भयंकर बाढ़ की समस्या से जूझ रहा है। हर साल की तरह इस बार भी वहां जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। अखबारों के मुताबिक, हजारों किसानों के मवेशी फिर बाढ़ में बह गए हैं। इनमें से कई मवेशी इन किसानों के लिए रोजी रोटी के साधन थे, जिसे उन्होंने कर्ज लेकर खरीदा था।
लेकिन अफसोस की बात यह है कि इनमें से 90 फीसद से ज्यादा का कोई बीमा नहीं था। यानी अगर कर्ज लेकर इन्हें खरीदा गया है तो उसे चुकाना भी पड़ेगा। कर्ज नहीं लिया गया है, तब भी वित्तीय बोझ को बर्दाश्त करना एक गरीब किसान परिवार के लिए आसान नहीं होगा। बीमा क्षेत्र की कंपनी स्विस रे ने भारतीय पशुधन व बीमा की कमी पर एक ताजा सर्वेक्षण पिछले हफ्ते जारी किया है। इसमें यह बताया है कि पशुधन का पर्याप्त बीमा नहीं होने से भारतीय किसानों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
इस सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत के ग्रामीण इलाकों में 19.6 करोड़ आवास हैं। इनके पास कुल 10 से 11 करोड़ के बीच पशुधन है। लेकिन 91 फीसद मवेशी व 99.4 फीसद पशुपालकों के पास बीमा की कोई सुविधा नहीं है। जबकि भारत में बाढ़, बीमारी, चारे की कमी जैसी दिक्कतों से पशुओं व पशुपालकों दोनों को जूझना पड़ता है।
भारत में एक तो इन सभी के हितों का ख्याल रखने वाले बीमा उत्पादों की कमी है, और जो कुछ बीमा पॉलिसियां हैं उनको लेकर लोगोंं के बीच जागरूकता नहीं है। खास तौर तो पशुधन रखने वालों के हितों का ख्याल रखने वाले साधारण बीमा की देश में काफी कमी है। किसान जब बैंकों से कर्ज लेता है, तभी उसे बीमा की सुविधा दी जाती है। अगर कोई किसान बगैर लोन के पशु खरीदता है तो उसके लिए बीमा करवाना काफी टेढ़ी खीर है।
इस अध्ययन के मुताबिक, गरीब जनता को उसके पशुधन को बीमा कवरेज देना अर्थव्यवस्था के लिए भी कई तरह से लाभदायक साबित हो सकता है। उदाहरण के तौर पर ग्रामीण क्षेत्र में रहने वालों की आमदनी का एक ठोस जरिया हमेशा बनाए रखा जा सकता है। पशुधन आमदनी का जरिया बनने के साथ ही पौष्टिक खाने का भी साधन बन सकता है, जो ग्रामीण गरीबों को आम तौर पर उपलब्ध नहीं होता। सरकार को हर क्षेत्र की स्थानीय जरूरत के मुताबिक पशुधन बीमा तैयार करने की नीति को बढ़ावा देना चाहिए।
इसके अलावा यह बीमा कंपनियों के लिए भी एक बहुत बड़ा बाजार उपलब्ध कराएगा। देश में जितने लोग काम करते है, उनमें 50 फीसद खेती से जुड़े हुए हैं। कम से कम 61 फीसद ग्रामीण घरों के लिए पशुधन ही आमदनी का का एक अहम जरिया है। इन घरों की 69 फीसद महिलाएं पशुधन से जुड़ी हुई हैं। लेकिन यह बहुत ही जोखिम वाला कारोबार भी है। सबसे बड़ा जोखिम बीमारी है। प्राकृतिक आपदाओं का असर भी कम नहीं होता। इन सभी समस्याओं का समाधान एक उपयुक्त बीमा से किया जा सकता है। पशुधन के लिए बेहतर बीमा सुविधा होने से इन सभी के लिए आय का एक नियमित व अतिरिक्त स्नोत पैदा होगा।