ताकि लैप्स न हो आपकी पॉलिसी
देश में लोग मुश्किल से बीमा पॉलिसी खरीदते हैं, लेकिन आसानी से उसे लैप्स हो जाने देते हैं। आखिर इसकी वजह क्या है। क्या समय पर प्रीमियम न भर पाना भारतीयों की लेटलतीफी है अथवा कुछ और। क्या प्रीमियम को लोग खर्चे की तरह से देखते हैं। इन्हीं सवालों को खंगालने की कोशिश कर
देश में लोग मुश्किल से बीमा पॉलिसी खरीदते हैं, लेकिन आसानी से उसे लैप्स हो जाने देते हैं। आखिर इसकी वजह क्या है। क्या समय पर प्रीमियम न भर पाना भारतीयों की लेटलतीफी है अथवा कुछ और। क्या प्रीमियम को लोग खर्चे की तरह से देखते हैं। इन्हीं सवालों को खंगालने की कोशिश करते हैं। ब्रोकरेज फर्म एस्पिरिटो सैंटो सिक्योरिटीज की हालिया शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय बीमा उद्योग में पॉलिसी लैप्स के हालात चिंताजनक हैं। रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न बीमा कंपनियों द्वारा बेची गईं पॉलिसियों में से 20 से 35 फीसद अपने दूसरे ही साल में लैप्स हो जाती हैं। पॉलिसियां लैप्स होने को लेकर बीमा क्षेत्र के नियामक इरडा ने भी समय-समय पर अपनी चिंता जाहिर की है। किसी बीमा कंपनी की ओर से किसी पॉलिसी के लिए तय समयावधि के भीतर प्रीमियम की अदायगी न किए जाने की स्थिति में उस पॉलिसी को लैप्स माना जाता है। इसका तात्पर्य यह होता है कि बीमा कंपनी और बीमा उपभोक्ता के बीच हुआ अनुबंध समाप्त हो गया है। बीमा उपभोक्ता के लिए यह खासे नुकसान की स्थिति होती है, क्योंकि पॉलिसी बीच में छूट जाने की वजह से वह बीमा संबंधी लाभ से पूरी तरह हाथ धो बैठता है।
आखिर इतनी अधिक संख्या में लोगों द्वारा पॉलिसी बीच में छोड़ने की वजह क्या है? पॉलिसी बाजार डॉट कॉम के सीईओ यशीश दहिया बताते हैं कि अक्सर लोगों को गलत बीमा उत्पाद बेच दिया जाता है। जब उपभोक्ता को इसका एहसास होता है, तो वे पॉलिसी बीच में छोड़ देते हैं। कुछ लोग इसलिए भी पॉलिसी बीच में छोड़ देते हैं, क्योंकि वे प्रीमियम नहीं भर पाते हैं। कुछ लोग यह सोच पॉलिसी बीच में छोड़ देते हैं कि इससे उचित रिटर्न नहीं मिलेगा। कुछ कर बचाने के लिए जल्दबाजी में पॉलिसी खरीदते तो हैं, लेकिन उसे जारी नहीं रख पाते।
कुछ बातों का रखें ध्यान
सवाल यह है कि क्या किया जाए जिससे पॉलिसी बीच में ही न छोड़नी पड़े। अगर बीमा उपभोक्ता पॉलिसी लेने से पहले अपनी संभावित आर्थिक स्थितियों पर विचार कर ले, तो उसे पॉलिसी बीच में नहीं छोड़नी पड़ेगी। उपभोक्ता को उतने ही प्रीमियम की पॉलिसी खरीदनी चाहिए, जितना वह हर साल आसानी से भर सके। इसके अतिरिक्त यदि उपभोक्ता अपनी जरूरतों और बीमा पॉलिसी द्वारा मुहैया कराई जाने वाली सुविधाओं पर विचार करते हुए सही बीमा उत्पाद खरीदेगा तो ऐसी स्थिति नहीं आएगी। यदि बीमा कंपनियां उस पॉलिसी से मिलने वाले संभावित रिटर्न का सही अंदाजा उस उपभोक्ता को देंगी तो उस पॉलिसी को बीच में छोड़ने के लिए उसे मजबूर नहीं होना पड़ेगा।
कई बार यह देखा गया है कि पॉलिसी बेचने के बाद बीमा एजेंट आपकी पॉलिसी में रुचि दिखाना छोड़ देते हैं। यदि बीमा कंपनियां प्रीमियम की नियमित अदायगी के लिए एजेंट को इंसेंटिव दें तो भी स्थिति बेहतर हो सकती है। इसके अलावा यदि आप अपनी बीमा योजना की जिम्मेदारी खुद उठाएंगे तो पॉलिसी बीच में नहीं छूटेगी। कुछ लोगों की पॉलिसी इसलिए लैप्स हो जाती है क्योंकि प्रीमियम की अदायगी का वक्त उन्हें याद नहीं रहता। ऐसे लोग अपनी डायरी में प्रीमियम अदायगी की तारीख को नोट करके रखें। वे प्रीमियम की अदायगी के लिए ईसीएस सुविधा या चेक पिक-अप सेवा ले सकते हैं।
क्यों हो रही है पॉलिसी लैप्स
-20 से 35 फीसद पॉलिसियां दूसरे साल ही लैप्स
-बीमा योजना की प्रकृति को समझना जरूरी
-जल्दबाजी में खरीदी पॉलिसी की असलियत पता नहीं होती
-जरूरत से ज्यादा प्रीमियम की पॉलिसी खरीदना