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म्यूचुअल फंड डिविडेंड प्लान चुनने का अब कोई मतलब नहीं

असल में, अगर आप फंड में निवेश से नियमित आय चाहते हों, तो भी लाभांश योजना का कोई मतलब नहीं बनता

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 22 Apr 2018 12:16 PM (IST)Updated: Sun, 29 Apr 2018 08:58 AM (IST)
म्यूचुअल फंड डिविडेंड प्लान चुनने का अब कोई मतलब नहीं

एक दौर था जब म्यूचुअल फंड्स के तहत लाभांश के पुनर्निवेश की योजना बेहद आकर्षक और एक हद तक लाभकारी भी थी। लेकिन करों के बदले माहौल में अब इस तरह की किसी योजना का कोई औचित्य नहीं रह गया है। अब तो आलम यह है कि इन योजनाओं के तहत जितनी बार लाभांश मिलेगा, उतनी बार कर चुकाना होगा। दूसरे, अगर इन योजनाओं के तहत लाभांश मिल भी जाता है, तो वह निवेश से ही काटा जाता है और निवेश की रकम कम होती जाती है। इसलिए वर्तमान माहौल में म्यूचुअल फंड के तहत कोई भी लाभांश पुनर्निवेश योजना लेना या ले चुकी योजना को चलाते रहना फायदे का नहीं, बल्कि घाटे का सौदा हो गया है।

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इससे पहले कि आप इस आलेख को आगे पढ़ने की जहमत उठाएं, कृपया सुनिश्चित कर लें कि आपने इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में निवेश का कोई भी हिस्सा डिविडेंड री-इन्वेस्टमेंट प्लान (लाभांश के पुनर्निवेश) में तो नहीं किया हुआ है। अगर ऐसा है, तो आपको इसमें तुरंत बदलाव की जरूरत है, क्योंकि आप गैर-जरूरी करों में अपनी पूंजी बर्बाद कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पर करों की नई योजना इस वर्ष पहली अप्रैल से लागू हो चुकी है। इस नई कर योजना के तहत अब जितनी बार इस तरह की किसी योजना पर लाभांश मिलेगा, आपको उतनी बार कर अदा करना होगा।

असल में इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में लाभांश के पुनर्निवेश की योजना अब बेकार हो चुकी है। कायदे से तो अब म्यूचुअल फंड्स को इस बात के लिए मजबूर किया जाना चाहिए कि वे अपने ऐसे सभी निवेशकों को एक चेतावनी जारी करें। जो निवेशक वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन पर फ्री पोर्टफोलियो मैनेजर सेक्शन के जरिये अपने निवेश पर नजर रखते हैं, उन्हें हम जल्द इस तरह की चेतावनी जारी करना शुरू कर देंगे। हम यह भी बताएंगे कि उन्हें वास्तव में क्या करना चाहिए।

दुर्भाग्य से पुरानी कई निवेश योजनाएं अब भी लाभांश के पुनर्निवेश मोड में ही हैं। लाभांश की पुनर्निवेश योजना कई वर्ष पहले शुरू हुई थी, और इस लिए शुरू हुई थी क्योंकि उन दिनों यह कर बचत करती थी। इससे पहले कैपिटल गेन पर तो कर देना होता था, लेकिन लाभांश पर नहीं देना होता था। इसी को देखते हुए म्यूचुअल फंड कंपनियों ने निवेशकों के सामने लाभांश पुनर्निवेश का विकल्प पेश किया। इसके तहत सभी प्राप्तियों (गेन) का भुगतान लाभांश के तौर पर होता था। जिन निवेशकों को अपने निवेश की रकम बढ़ाते रहना पसंद था, वे बेहद शौक से ऐसी योजनाओं में निवेश किया करते थे क्योंकि उनका लाभांश बिना कर चुकाए फिर से निवेश में बदल जाता था। सच कहें तो लाभांश पुनर्निवेश योजना कैपिटल गेन टैक्स बचाने का एक कानूनी जरिया बन चुकी थी। बाद में इक्विटी कैपिटल गेन पर कर की व्यवस्था खत्म कर दी गई। लेकिन किसी तरह का नफा-नुकसान नहीं होने के बावजूद लाभांश का पुनर्निवेश एक विकल्प के तौर पर पहले की तरह बदस्तूर जारी रहा।

बहुत से निवेशकों ने तो इसे सिर्फ इसलिए जारी रखा क्योंकि वे इसके आदी हो चुके थे। अब कर नियम एक बार फिर बदल गए हैं। अब लंबी अवधि के कैपिटल गेन (एलटीसीजी) और लाभांश, दोनों पर 10 फीसद कर आयद किया गया है। हालांकि एलटीसीजी टैक्स तभी लगेगा जब आप अपना निवेश बेच देंगे। फिर भी, जब भी लाभांश दिया जाएगा या लाभांश का पुनर्निवेश किया जाएगा, म्यूचुअल फंड कंपनी ही उसमें से कर की रकम काट लेगी। इसका मतलब यह है कि पुनर्निवेश योजना जारी रखने से आपका निवेश घटता ही जाएगा। बावजूद इसके कि कैपिटल गेन और लाभांश पर लगने वाले कर की मात्र समान है, आपका वास्तविक रिटर्न बुरी तरह प्रभावित होगा।

असल में बहुत से निवेशकों को यह मालूम ही नहीं है कि फंड पर लाभांश और कंपनी द्वारा दिया गया लाभांश दो अलग-अलग चीजें हैं। फंड्स को अपने निवेश पर लाभांश मिले या नहीं मिले, वे अपने निवेशकों को लाभांश देने के लिए बाध्य नहीं हैं। सच तो यह है कि भारत में म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने वालों के बीच यह सबसे कम प्रचलित जानकारियों में एक है। और ऐसा भी नहीं कि जानकारी का यह अभाव निवेशकों के लिए अकाउंटिंग की छोटी-मोटी चूक जैसी हो, बल्कि यह निवेश के बारे में गलत फैसला करने का प्रमुख जरिया बन जाता है।

म्यूचुअल फंड्स के तहत कैपिटल गेन, लाभांश और ब्याज आय को आपस में बदला जा सकता है। म्यूचुअल फंड्स ज्यादातर इक्विटी में और बांड्स में निवेश करते हैं। दोनों तरह की संपत्तियों (इक्विटी और बांड्स) में कैपिटल गेन (या लॉस) होता है। इसके अलावा, बांड्स पर ब्याज की आय मिलती है, जबकि इक्विटी पर लाभांश आय मिलती है। म्यूचुअल फंड्स के नजरिये से देखें तो ये तीनों ही निवेश एक ही निवेश संपत्ति का हिस्सा हैं। लेकिन निवेशकों के नजरिये से देखें तो ये तीनों उसकी नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) का हिस्सा हैं। फिर भी, म्यूचुअल फंड्स इन संपत्तियों पर गेन को लाभांश के तौर पर वितरित करने के लिए स्वतंत्र हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये गेन कैपिटन गेन हैं या ब्याज आय। ये सब के सब लाभांश के तौर पर वितरित किए जा सकते हैं। असल में इन्हें बोनस के तौर पर भी बांटा जा सकता है।

बुनियादी बात यह है कि चाहे वह कैपिटल गेन हो, लाभांश हो, ब्याज हो या बोनस, सबके लिए कर के मानक अलग-अलग हैं। लेकिन जब आप म्यूचुअल फंड्स के जरिये निवेश करते हैं, तो आपके पास यह विकल्प होता है कि ग्रोथ या डिविडेंड या फिर बोनस प्लान में से कोई भी चुन सकें। उसके बाद जब आपको गेन का भुगतान होगा, तो उसी कैटेगरी में होगा जिसमें आपने डिविडेंड का विकल्प चुना है।

लेकिन इस तरीके में एक विचित्र दिक्कत भी आती है। म्यूचुअल फंड्स निवेश से मिला लाभांश असल में लाभांश है ही नहीं, यह सच कुछ बुरे निर्णय लेने का कारण बन जाता है। निवेशक लाभांश को कॉरपोरेट लाभांश समझ बैठने की भूल कर जाते हैं। कॉरपोरेट लाभांश और म्यूचुअल फंड्स के लाभांश बेहद अलग-अलग हैं। कॉरपोरेट लाभांश किसी कंपनी की माली हालत और उसकी कमाई का पैमाना होता है, जबकि म्यूचुअल फंड्स पर मिला लाभांश असल में निवेशक के अपने ही अकाउंट से एक हिस्से की निकासी होता है।

अगर म्यूचुअल फंड में आपके निवेश की रकम एक लाख रुपये है और उस पर आपको 5,000 रुपये का लाभांश मिलता है, तो निवेश की रकम घटकर 95,000 रुपये रह जाती है। असल में, अगर आप फंड में निवेश से नियमित आय चाहते हों, तो भी लाभांश योजना का कोई मतलब नहीं बनता। आपको ग्रोथ प्लान में निवेश करना चाहिए और रकम निकासी तभी करनी चाहिए जब जरूरत हो। ऐसा हो सकता है कि लाभांश योजना में भुगतान के मौके आपकी जरूरत से मेल नहीं खाएंगे। जो निवेश जरूरत पर काम न आए, उस निवेश का क्या फायदा।

(यह लेख वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार ने लिखा है।)


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