निवेश करने के लिए जटिल से बेहतर है सरल योजना
विश्व विख्यात निवेश गुरु वारेन बफेट ने एक बार कहा था, ‘यदि एक महान निवेशक बनने के लिए कैलकुलस या एल्जेब्रा की जरूरत होती, तो मुझे अखबार बांटने के धंधे में वापस जाना पड़ता
हम आधुनिक उपभोक्ता इस प्रकार से सोचने के लिए अभ्यस्त होते हैं: यह दुनिया हमारे लिए इतनी जटिल है कि हम इसे पूरी तरह समझ नहीं सकते। मुझे फैसले लेने के लिए विशेषज्ञों की मदद की जरूरत है। चूंकि विशेषज्ञ जटिल मुद्दों से जूझते हैं, इसलिए जटिल भाषा में बोलने भी लगते हैं। इसलिए हमारे मन में एक धारणा बैठ जाती है कि जो कोई भी जटिल भाषा में बात करता है, वह निश्चित रूप से विशेषज्ञ होगा और जिस चीज के बारे में भी जटिल तरीके से बताया जाता है, वह निश्चित रूप से अच्छा होगा।
एक दशक पहले मैंने पहली बार इस विषय पर लिखा था कि सोचने का यह तरीका पर्सनल फाइनेंस के क्षेत्र में एक अच्छा फैसला लेने की प्रक्रिया में बाधक होता है। चाहे वह बैंक अकाउंट हो या क्रेडिट कार्ड हो या म्यूचुअल फंड हो या बीमा या ब्रोकरेज अकाउंट हो, उत्पादों को इस सोच के साथ डिजाइन किया जाता है कि जटिल चीजें अच्छी होती हैं और अधिक जटिल चीजें बेहतर होती हैं।
कुछ समय पहले एक युवा रिलेशनशिप मैनेजर (सेल्समैन के लिए बैंकिंग सेक्टर में उपयोग किया जाने वाला शब्द) ने मुझसे असेट अलोकेशन के लिए किसी सटीक फॉमरूले की मांग की। वह चाहता था कि जब वह अपने क्लाइएंट को फोन करे, तो एक फॉमरूला के आधार पर वह उन्हें बता सके कि उन्हें अपने धन का कितना हिस्सा किस संपत्ति में निवेश करना चाहिए। मैंने उन्हें एक सच बताया, वह यह था कि किसी के लिए आदर्श असेट एलोकेशन का फैसला करने के लिए कुछ खास-खास नियमों को समझना होता है। इसके बाद व्यक्ति के जीवन की परिस्थितियों को देखते हुए यह तय करना होता है कि उस पर कौन-कौन से नियम लागू किए जाएं और कौन-कौन से नियम नजरंदाज कर दिए जाएं। फैसला लेने की इस प्रक्रिया को इतनी चीजें प्रभावित करती हैं कि किसी एक निश्चित फॉर्मूले का विचार करना ही गलत हो जाएगा।
सेल्समैन को अत्यधिक निराशा हुई। वह सोच रहा था कि मैं अल्फा, गामा, सिग्मा और पाई के साथ कोई फॉर्मूला दूंगा। यदि गणना में कैलकुलस की भी जरूरत पड़े तो वह और भी बेहतर होगा। क्लाइएंट को इन चीजों के आधार पर समझाने से उन पर प्रभाव पड़ेगा। उसने मुझसे कहा कि उसे निराशा हासिल हुई है। उसका मानना था कि कोई न कोई फॉर्मूला जरूर होगा, जो या तो मैं जानता नहीं हूं या जो मैं उसे बताना नहीं चाहता हूं।
विश्व विख्यात निवेश गुरु वारेन बफेट ने एक बार कहा था, ‘यदि एक महान निवेशक बनने के लिए कैलकुलस या एल्जेब्रा की जरूरत होती, तो मुझे अखबार बांटने के धंधे में वापस जाना पड़ता।’ एक सफल निवेशक बनने के लिए किसी को जोड़, घटा, गुणा और भाग से अधिक कुछ और गणित जानने की जरूरत नहीं होती। हालांकि जटिलता की कमाई खाने वाले पेशेवरों को आप यह बात समझा नहीं सकते। ऐसे लोग निवेश की दुनिया में भरे पड़े हैं।
हकीकत यह है कि यह बीमारी सिर्फ पर्सनल फाइनेंस में ही नहीं फैली हुई है। निवेश और कॉरपोरेट फाइनेंस की दुनिया भी इस बीमारी से मुक्त नहीं है। मुझे करीब 15 साल पहले की एक बात याद आ रही है। एक वरिष्ठ बैंक अधिकारी के साथ क्रेडिट रेटिंग को लेकर मेरी चर्चा हो रही थी। उस समय मैं एक नवसिखुए की तरह यह सोचता था कि कोई कर्ज लेने वाला कर्ज लेने के लायक है या नहीं, यह तय करने में क्रेडिट रेटिंग एक बैंक अधिकारी के लिए बड़ा उपयोगी होता होगा। मुझे उस वरिष्ठ बैंक अधिकारी की बात सुनकर हैरानी हुई। उन्होंने कहा कि वास्तव में सिर्फ दो ही रेटिंग होती हैं। एक रेटिंग यह होती है कि व्यक्ति आपका पैसा वापस कर देगा और दूसरी रेटिंग यह होती है कि व्यक्ति आपका पैसा वापस नहीं करेगा। और एक बैंक अधिकारी अच्छी तरह यह समझता है कि कर्ज लेने वाला व्यक्ति इनमें से किस रेटिंग का है।
औपचारिक रेटिंग का उपयोग औपचारिक कार्यो में ही होता है। उनके मुताबिक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी द्वारा जारी की जाने वाली 10 या उससे अधिक प्रकार की रेटिंग और आउटलुक महज एक गतिविधि है। तो जटिलता की जांच कैसे की जाए? एक निवेशक के रूप में हम यह कैसे तय कर सकते हैं कि कोई चीज सरल है या जटिल? वास्तव में यह बहुत सरल काम है। यदि कोई निवेशक (चाहे वह कोई साधारण व्यक्ति हो या पेशेवर हो) किसी उत्पाद पर विचार कर रहा है और यह तय नहीं कर पा रहा है कि यह सरल है या नहीं, तो यह भला सरल कैसे हो सकता है। यदि आपको किसी उत्पाद के बारे में किसी से विश्लेषण लेने की जरूरत है, तो स्पष्ट है कि वह एक जटिल उत्पाद है।
हाल में मैंने फरनैम स्ट्रीट ब्लॉग पर एक पोस्ट पढ़ी। इस पोस्ट का विषय था कि क्या लोगों में जटिलता के प्रति जन्मजात मोह होता है। इसके अनुसार यह मोह एक जन्मजात तार्किक खामी के कारण होता है। इसी के कारण एक व्यक्ति जटिल धारणाओं को अनुचित महत्व देता है। यदि हमारे सामने दो प्रतिस्पर्धी परिकल्पनाएं हों, तो पूरी संभावना है कि हम जटिल परिकल्पना का चुनाव करेंगे। इसका परिणाम यह होता है कि जब हमें किसी समस्या के समाधान की जरूरत होती है, तो संभव है कि हम सरल समाधान को यह सोचकर नजरंदाज कर दें कि यह कभी काम नहीं करेगा और जटिल समाधान को अपना लें। यह संभवत: सच हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम इस स्वाभाविक प्रवृत्ति के गुलाम हैं। यदि हम इस आदत के प्रति भी सतर्क हैं, तो इससे बचने में हम दूसरों के मुकाबले अधिक सक्षम हैं।
(इस लेख के लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार हैं।)