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NPS: सुधार के कदमों से निखरेगी एनपीएस की खूबी, धीरे-धीरे दूर की जा रही दिक्कतें

पहले एनपीएस मेंबर रिटायर होते वक्त सिर्फ 60 फीसद रकम निकाल सकता था और उस पर भी उसे टैक्स लगता था। 40 फीसदी हिस्से से उसे एन्युटी खरीदनी होती थी जो टैक्स फ्री थी। दिसंबर 2018 से वह 60 फीसद रकम भी टैक्स फ्री कर दी गई।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Sun, 27 Jun 2021 02:40 PM (IST)Updated: Mon, 28 Jun 2021 07:26 AM (IST)
NPS: सुधार के कदमों से निखरेगी एनपीएस की खूबी, धीरे-धीरे दूर की जा रही दिक्कतें
National Pension System P C : Pixabay

नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। एनपीएस (NPS) भविष्य की सुरक्षा के लिए जरूरी भी है और इसे बाजार की बदलती जरूरतों से स्पर्धा के लिए तैयार भी किया जा रहा है। इंश्योरेंस उद्योग अगर कोई ऐसा एन्युटी प्रोडक्ट लाता है, जो महंगाई दर को पीछे छोड़ सके तो एनपीएस कई दूसरी बचत योजनाओं से बेहतर साबित हो सकती है। नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) से रकम निकालने के नियमों को और आसान बनाया गया है।

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ऐसे लोग जिनके पेंशन फंड में पांच लाख रुपये से कम है, वे अब रिटायरमेंट के समय पूरी रकम निकाल सकते हैं। इससे पहले यह सीमा दो लाख रुपये थी। इसका मतलब है कि किसी स्तर पर यह माना गया है कि एनपीएस से रकम निकालने के नियमों में कुछ समस्या है। कामकाजी आबादी का बड़ा हिस्सा अभी भी पेंशन को उतना जरूरी नहीं मान रहा है जितना उसे मानना चाहिए। उस वर्ग को पूरा रिटायरमेंट फंड नहीं निकालने देना बड़ा मुश्किल काम है। शायद इसी को देखते हुए नई व्यवस्था की गई है।

एनपीएस की दिक्कतों को धीरे-धीरे दूर किया जा रहा है। पहले एनपीएस मेंबर रिटायर होते वक्त सिर्फ 60 फीसद रकम निकाल सकता था और उस पर भी उसे टैक्स लगता था। 40 फीसदी हिस्से से उसे एन्युटी (नियमित आमदनी वाली कोई बीमा योजना) खरीदनी होती थी, जो टैक्स फ्री थी। दिसंबर, 2018 से वह 60 फीसद रकम भी टैक्स फ्री कर दी गई।

ईपीएफ जैसी योजनाओं में यह पहले से हो रहा था। हालांकि, एनपीएस मेंबर के लिए 40 फीसद रकम से एन्युटी खरीदना अब भी जरूरी है। छोटी बचत वाले सदस्यों को एन्युटी खरीदने की इस बाध्यता से मुक्त किया गया है। इससे यह पता चलता है कि अब इस तथ्य को स्वीकार किया जा रहा है कि एन्युटी कहीं न कहीं एक समस्या है।

चर्चा है कि पेंशन अथॉरिटी इंश्योरेंस इंडस्ट्री को इस तरह के एन्युटी प्लान लाने के लिए प्रोसाहित कर रही है, जिसमें कुल बचत राशि इकोनॉमी की ब्याज दरों से जुड़ी हो। दूसरी तरफ वर्तमान में ऐसे एन्युटी प्लान की जरूरत है, जहां एन्युटी से मिलने वाली रकम महंगाई से लिंक्ड हो। सारी दिक्कतों के बावजूद अपने लांच के एक दशक से ज्यादा समय के बाद भी एनपीएस ने रिटर्न और लागत के मोर्चे पर खुद को साबित किया है। एनपीएस मेंबर्स जितने लंबे समय तक निवेश बनाए रखेंगे, इसका असर उतना ही मजबूत होगा।

कुल मिलाकर जो बचतकर्ता बेहतर स्कीम चुनने पर ज्यादा प्रयास और समय नहीं देना चाहते हैं, उनके लिए एनपीएस एक बेहतर पैकेज है, जो रिटायरमेंट के लिए बचत करने वालों के हर मानक पर खरी उतरती है। एनपीएस अनिवार्य पेंशन स्कीम के साथ-साथ स्वैच्छिक स्कीम के तौर पर काम करती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वैच्छिक स्कीम के तौर पर एनपीएस ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाई है।

बचतकर्ताओं से बातचीत के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि जो लोग पर्सनल फाइनेंस पर सलाह दे रहे हैं और ऐसे उत्पाद बेच रहे हैं, वे या तो एनपीएस खरीदने का सुझाव नहीं दे रहे हैं या इसकी बिक्री को हतोत्साहित कर रहे हैं। इसकी वजह बहुत साधारण है कि इसकी बिक्री में कमीशन ज्यादा नहीं है। बचतकर्ताओं को एनपीएस के बारे में जानने और इसकी उपयोगिता को समझने के लिए खुद ही प्रयास करना होगा।

(लेखक वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन डॉट कॉम के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)


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