नई दिल्ली, एस नरेन। पिछले एक दशक से हम आसान नकदी की स्थितियां और वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में कटौती देख रहे हैं। इसकी वजह से सामान्य रूप से इक्विटी मार्केट के लिए अनुकूल वातावरण का सृजन हुआ। खासकर पिछले एक साल से महामारी से जुड़ी वृद्धि संबंधी चुनौतियों पर काबू पाने के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं ने भरपूर नकदी जारी की। ज्यादातर उभरती और विकसित अर्थव्यवस्थाएं आज अपस्फीति से फिर से मुद्रास्फीति की तरफ बढ़ने की ओर हैं। पर्याप्त नकदी के कारण बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए वैश्विक केंद्रीय बैंकों और सरकारों ने बाजार से धीरे-धीरे अतिरिक्त नकदी वापस लेने के संकेत दिए हैं। यह ऐसा कदम है, जिसका असर भारत सहित वैश्विक बाजारों पर पड़ सकता है।
ऐसी स्थिति में जब हम वैल्युएशन, साइकिल, ट्रिगर्स और सेंटीमेंट (वीसीटीएस) फ्रेमवर्क के हिसाब से भारत के बाजारों को देखते हैं तो भारत मजबूत स्थिति में नजर आता है।
वैल्युएशनः अगर हम संपत्तियों के मूल्यांकन को देखें तो उनके औसत की तुलना में संपत्तियों का मूल्यांकन बढ़ा बना हुआ है। ऐतिहासिक रूप से जब भी किसी संपत्ति वर्ग का पूर्ण मूल्यांकन हुआ रहता है, तो वे अस्थिर हो जाते हैं। हमारा इक्विटी वैल्युएशन इंडेक्स बताता है कि मूल्यांकन हल्का नहीं है और स्पष्ट होता है कि इक्विटी निवेश दीर्घावधि के हिसाब से हुआ है, जबकि संपत्ति आवंटन ढांचे का कड़ाई से पालन किया गया है।
साइकिलः भारत में व्यापार चक्र अनुकूल हो गया है, जो इस वक्त प्रमुख सकारात्मक बात है। कंपनियों ने अपना कर्ज कम किया है, सरकार का राजकोषीय घाटा नियंत्रण में है और वित्तीय क्षेत्र के गैर निष्पादित कर्ज का चक्र भी नियंत्रण में है। बुनियादी ढांचा विकास व अन्य क्षेत्रों में सरकार ने विभिन्न पहल की घोषणा की है, जिससे साफ संकेत मिलता है कि सरकार वृद्धि को समर्थन दे रह है। कंपनियों की कमाई में बढ़ोतरी भी पिछले वित्त वर्ष के अंतिम हिस्से से टिकाऊ तरीके से बहाल हो गई है।
ट्रिगर्सः यूएस फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में बढ़ोतरी की मात्रा और गति, अमेरिका के 10 साल के ट्रेजरी प्रतिफल का अनुमान और कोविड के नए वैरिएंट की गंभीरता और इसके असर प्रमुख ट्रिगर्स हैं, जिन पर नजर रखने की जरूरत है।
सेंटीमेट्सः पिछले 6 महीनों के दौरान निवेशक आक्रामक कीमत वाले आईपीओ सहित आईपीओ में निवेश कर रहे हैं, जो धारणा के दृष्टिकोण से चिंताजनक है।
बाजार का परिदृश्य
हमारे विचार से इक्विटी बाजारों का प्रदर्शन दीर्घावधि के हिसाब से बेहतर रह सकता है, लेकिन हमें मध्यावधि के हिसाब से सावधानी बरतने की जरूरत है। वैश्विक और घरेलू बाजारों के गतिशील वातावरण को देखते हुए हमारा मानना है कि मौजूदा परिदृश्य में सक्रिय निवेश प्रबंधन और मल्टी एसेट रणनीतियां बनाने का वक्त है। इससे निवेशकों को कम अवधि के हिसाब से बेहतर परिणाम मिल सकता है।
अगले साल के दौरान जिन क्षेत्रों में निवेशकों को नकारात्मक निवेश अनुभव हो सकता है, उसमें बगैर कमाई के आईपीओ का विकल्प, डेरिवेटिव्स सेग्मेंट के माध्यम से ज्यादा लिवरेज और सिर्फ इक्विटी में निवेश करके संपत्ति आवंटन की उपेक्षा करना (ऋण, सोना व नकदी की उपेक्षा करना) शामिल है। अगर आपका पोर्टफोलियो जोखिम वाली संपत्तियों से भरा है तो यह अच्छा समय है कि आप उस जोखिम को कम कर दें।
किसी एक संपत्ति वर्ग पर ध्यान केंद्रित करने की जगह ऐसी रणनीतियों को अपनाने की जरूरत है, जिससे एक निवेशक को विभिन्न संपत्ति वर्गों में धन लगाने का मौका मिले। अगर आप इक्विटी संबंधी निवेश पर विचार कर रहे हैं तो योजना श्रेणियों का विकल्प अपनाएं, जिसमें विभिन्न बाजार पूंजीकरण और अवधारणाओं में निवेश को लेकर लचीला विकल्प मिल सके।
क्षेत्रवार चयन के हिसाब से देखें तो हम घरेलू क्षेत्रों जैसे ऑटो, बैंक टेलीकॉम और कुछ रक्षात्मक क्षेत्रों जैसे फार्मा और हेल्थकेयर पर निर्भर होते हैं। हम गैर उपभोक्ता वस्तुओं को कम वजन देते हैं और यह मानकर चलते हैं कि महामारी के दौर के बाद जनसंख्या के निचले तबके के पास नकदी का प्रवाह कम हुआ है और इसकी वजह से खपत के क्षेत्र में दबाव है।
एक निवेशक के लिए दीर्घावधिक के हिसाब से देखें तो हमारा मानना है कि जोखिम पर विचार करने के बाद और इसकी उपेक्षा न करके 2022 में सक्रिय प्रबंधन, दीर्घावधि छोटी रणनीतियों, मल्टी एसेट/एसेट अलोकेशन, लाभ देने वाली कंपनियों में निवेश और नकदी वाले सभी संपत्ति वर्गों में निवेश का वक्त है।
(लेखक आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के ईडी और सीआईओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)
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