निजीकरण, बैंक डिफॉल्ट और NPA: पढ़िए बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े बड़े मुद्दों पर एक्सपर्ट की राय
रिजर्व बैंक के अनुसार सितंबर 2017 की समाप्ति पर देश में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का सकल एनपीए उनके कुल कर्ज का 10.2 फीसद हो गया है।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। पंजाब नेशनल बैंक में हुआ देश का सबसे बड़ा बैंकिंग घोटाला आपको किस चीज की याद दिलाता है? डूबे हुए कर्ज के बढ़ते बोझ की, अकाउंटिंग सिस्टम में व्याप्त खामियों की, आला अधिकारियों एवं नियामकों की लापरवाही की या उसके बाद खुले तमाम छोटे-मोटे फ्रॉड्स की? कुछ भी कह लीजिए दरअसल देश के बैंकिंग सेक्टर में असल दिक्कतें भी यही हैं। देश के बैंकिंग सेक्टर की मौजूदा हालत, आगामी चुनौतियों और इस क्षेत्र में किस तरह के सुधार की जरूरत है? जागरण डॉट कॉम ने इन सभी मुद्दों पर बैंकिंग एक्सपर्ट से बात की है।
बैंक ऑफ बडौदा के पूर्व कार्यकारी निदेशक आर के बख्शी ने जागरण डॉट कॉम से खास बातचीत में कहा कि देश के इतिहास में इतना बड़ा घोटाला कभी नहीं हुआ, इस केस ने पूरे बैंकिंग सिस्टम को हिला कर रख दिया। उनका मानना है कि बैंकिंग सेक्टर की दशा और दिशा सुधारे जाने के लिए बेहद जरूरी है कि बैंकों का स्वामित्व और नियंत्रण अलग अलग किया जाए। ऐसा करने से जहां एक ओर बैंकों के प्रदर्शन में सुधार आएगा, वहीं दूसरी ओर बेहतर जबावदेही भी तय हो सकेगी।
बढ़ेगी प्रोविजनिंग घटेगा बैंकों का मुनाफा
एक और बैंकिंग एक्सपर्ट सतीश सिंह ने बताया कि आने वाले तिमाही नतीजों में बैंकों के मुनाफे गिरते नजर आएंगे, इसकी बड़ी वजह उनकी ओर से डूबे हुए कर्ज की प्रोविजनिंग होगी। नीरव मोदी केस के बाद देश के अलग अलग बैंकों में जो फ्रॉड के मामले सामने आए हैं इन सबका असर बैंकों के आगामी तिमाही नतीजों में देखने को मिलेगा। उनके मुताबिक एनपीए बढ़ने का एक मात्र कारण ये फ्रॉड के मामलों का खुलना ही नहीं है, बल्कि आरबीआई की ओर से 12 फरवरी को जारी सर्कुलर भी है जिसमें एनपीए संबंधी नियम बदले गए हैं।
आपको बता दें कि नए नियम के मुताबिक बैंक ने जो धनराशि उधार दी है, उसके मूलधन या ब्याज की किश्त अगर 90 दिन तक वापस नहीं मिलती तो बैंकों को उस लोन को एनपीए में डालना होगा। ऐसे में बैंकों के एनपीए में एकाएक उछाल देखने को मिलेगा।
बैंक को डिफॉल्ट से बचाना सामूहिक जिम्मेदारी
नीरव मोदी केस के बाद आ रही खबरें कि पंजाब नेशनल बैंक 1000 करोड़ का डिफॉल्ट कर सकता है इसपर प्रतिक्रिया देते हुए बख्शी ने कहा कि बैंक के आकार को देखते हुए व्यवहारिक तौर पर तो यह संभव नहीं है, लेकिन देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक टेक्निकली भी डिफॉल्ट न करे इसके लिए सरकार, बैंक और नियामक सबको साथ मिलकर काम करना होगा। डिफॉल्ट से पूरे बैकिंग सिस्टम की छवि को नुकसान पहुंचेगा।
बैंकिंग सेक्टर में क्यों हो गए इतने एनपीए
रिजर्व बैंक के अनुसार सितंबर 2017 की समाप्ति पर देश में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का सकल एनपीए उनके कुल कर्ज का 10.2 फीसद हो गया है। आइएमएफ के आंकड़ों के अनुसार 2009 में बैंकों का एनपीए कुल कर्ज के करीब 2.2 फीसद के बराबर था। 2009 से 2017 के दौरान आखिर ऐसा क्या हुआ कि एनपीए इतने ज्यादा बढ़ गए?
आर के बख्शी ने बताया कि 2008 की मंदी के बाद सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर भारी निवेश किया। सभी सरकारी बैंकों ने उस दौर में तमाम प्रोजेक्ट को फाइनेंस किया। जिन सेक्टर्स को फाइनेंस किया गया उनमें मेटल, पावर, स्टील सेक्टर प्रमुख थे। जिन प्रोजेक्ट को फाइनेंस किया गया उनका प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। साथ ही कभी कोर्ट के आदेश से माइनिंग रोक दी गई तो कभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्थव्यवस्था के बदलते परिदृश्य की मार इन सेक्टर्स ने झेली। परिणामस्वरूप इन सेक्टर्स का कर्ज बैंकों के लिए एनपीए बन गया।
समस्याओं का निदान स्वामित्व और नियंत्रण अलग हों
देश में सरकारी बैंकों के निजीकरण पर छिड़ी बहस पर प्रतिक्रिया देते हुए बख्शी ने कहा कि सरकार का फोकस देश के कोने कोने में जाकर हर व्यक्ति को बैंकिंग सुविधाएं मुहैया कराने की हैं। ऐसे में केवल मुनाफे के लिए निजीकरण करना ठीक नहीं है। लेकिन बैंकिंग सिस्टम से खामियां दूर करने के लिए बैंको के स्वामित्व और नियंत्रण को निश्चित तौर पर अलग करने की जरूरत है।
पी जे नायक कमेटी की सिफारिशों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि एक बैंक इंवेस्टमेंट कंपनी बनाकर बैंकों का नियंत्रण पूरी तरह से पेशेवर लोगों के हाथ में दे देना चाहिए। वे बैंकों में व्याप्त तमाम बुराइयों को बेहतर तरीके से दूर करके जवाबदेही तय कर पाएंगे। फिर चाहें वे अकाउंटिंग से जुड़ी खामियां हों या आला अधिकारी की लापरवाही से जुड़े मामले हों।
एनपीए रिकवरी के लिए संस्थाओं का तालमेल जरूरी
सुनील सिंह का मानना है कि डूबे हुए कर्ज की रिकवरी के लिए तमाम संस्थाओं का ताममेल जरूरी है तभी हम कम समय में एनपीए की रिकवरी को सुनिश्चित कर सकते हैं। अपनी बात को तर्कसंगत बनाने के लिए उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) का जन्म डूबे हुए कर्ज की बेहतर रिकवरी के लिए ही हुआ। लेकिन आज वहां भी सैकड़ों केस पेंडिंग है। बेहतर रिकवरी के लिए जरूरी है कि सरकार, बैंक, कोर्ट और नियामक के बीच जरूरी तालमेल बनाया जाए।