धीरेंद्र कुमार, नई दिल्ली। हाल में सेबी ने एक रिसर्च रिपोर्ट में कहा था कि वायदा एवं विकल्प (एफएंडओ) में 89 प्रतिशत निवेशक अपना पैसा गंवा देते हैं। यानी एफएंडओ निवेशकों का नुकसान करने और एक्सचेंज व ब्रोकरों को लाभ दिलाने के सिवा कुछ नहीं करता। बात यहीं तक रहती तो गनीमत थी। अब निवेशकों का नुकसान और ज्यादा बढ़ाने व एक्सचेंजों को ज्यादा फायदा देने के लिए एफएंडओ ट्रेडिंग का समय आधी रात तक बढ़ने जा रहा है। और हां, मार्केट शेयर के लिहाज से भारत में 'एक्सचेंज' का मतलब एनएसई है।
ट्रेडिंग का समय बढ़ाना अच्छी खबर कैसे है? आखिर, किसी ट्रेडर्स को पैसे बनाने ही क्यों हैं? जब इन पैसों को किसी-न-किसी चीज पर बर्बाद ही करना है। वैसे भी ये एफएंडओ ट्रेडर हैं और यही बात साबित कर देती है कि वो बेहद परोपकारी टाइप के लोग हैं।
एनएसई को तो सारा पैसा खुद ही ले लेना चाहिए, क्योंकि अपने शेयरहोल्डरों की ही तरह एनएसई निहायत ही शरीफ टाइप का कारपोरेट सिटीजन है। एनएसई बाकायदा अपना टैक्स भरता है और कोई पांच से दस साल में बस एकआध बार ही किसी तगड़े घोटाले में फंसता है... नहीं?
तरक्की या त्रासदी
एफएंडओ ट्रेडिंग का समय बढ़ाने के प्रस्ताव पर मिली प्रतिक्रिया भी काफी दिलचस्प है। पक्ष वाले लोग इसके दो कारण गिनाते हैं- पहला कुछ लोग इसे कैपिटल फार्मेशन, बढ़ी हुई लिक्विडिटी, हेजिंग का मौका आदि बताते हैं। दूसरा कारण, जो एक्सचेंज का आधिकारिक कारण है कि ट्रेडिंग का वाल्यूम विदेशी बाजार खींच रहे हैं, इसलिए समय बढ़ाया जाना चाहिए। एक और तीसरा कारण है कि जो कामकाजी लोग हैं, वो दिन में ट्रेड नहीं कर पाते, इसलिए रात में ट्रेड करना उनके लिए आसान होगा।
पहला कारण का तो भारत में होने वाले किसी असली कामकाज से कोई लेना-देना नहीं है। जहां तक दूसरे कारण का ताल्लुक है, तो उसका एक ही जवाब हो सकता है, 'तो?' अब बात रही तीसरे कारण की तो ये समझना मुश्किल है कि इसे अच्छा कारण क्यों कहा जा रहा है। एक ऐसा सिस्टम, जहां लोग दिन में अपनी जिंदगी चलाने के लिए पैसे कमाएं और रात में पैसे गंवाने के लिए ट्रेडिंग करें। ये ऐसी बात तो नहीं ही हो सकती जिसका किसी को इंतजार हो।
तनाव और ओवर-ट्रेडिंग को बढ़ावा
दूसरे पक्ष की बात और भी दिलचस्प लगेगी कि बिजनेस से बाहर का कोई भी व्यक्ति समय बढ़ाने के पक्ष में आवाज नहीं निकाल रहा है। प्रोफेशनल या अकेला निवेशक, ट्रेडिंग करने वाले सभी समान रूप से इसके खिलाफ हैं। ये लोग अपनी बात कहने के लिए तनाव, थकान, कामकाज और जीवन के बीच का संतुलन आदि कारण बता रहे हैं। जिरोधा के सीईओ नितिन कामत का कहना है कि इससे तनाव और ओवर-ट्रेडिंग ही बढ़ेगी। चलिए बात साफ करते हैं कि नियामक को ट्रेडिंग बढ़ाने के बजाए, इंडस्ट्री में कामकाज के विषाक्त हो चले तरीके के बारे में चिंता करनी चाहिए।
जहां तक एक्सचेंज और ब्रोकरों की बात है, तो उनके मुनाफे का रास्ता ट्रेड करने वालों से होकर गुजरता है, जिसमें इन ट्रेडरों के नुकसान का चांस 90 प्रतिशत है। लाखों-करोड़ों की संख्या में होने वाला डेरिवेटिव का सारा ट्रेड, जो भारतीय एक्सचेंजों के कामकाज का 90 प्रतिशत है, कुल मिलाकर कोई पैसा नहीं बनाता और ये गंभीरता से सोचने का मामला है।
(लेखक वैल्यू रिसर्च आनलाइन डाट काम के सीईओ हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)