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तेज वृद्धि दर की राह में चुनौतियां, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बेहतर प्रदर्शन कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था

आजादी के अमृत काल में ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था बनना और मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में दो अंकों की वृद्धि दर हासिल करना भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को प्रतिबिंबित करता है परंतु चालू खाता घाटा महंगाई और प्रति व्यक्ति आय इत्यादि के मोर्चे पर कई चुनौतियां बनी हुई हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 06 Sep 2022 10:44 AM (IST)Updated: Tue, 06 Sep 2022 10:44 AM (IST)
तेज वृद्धि दर की राह में चुनौतियां, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बेहतर प्रदर्शन कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बेहतर प्रदर्शन कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था।

राहुल लाल। ब्लूमबर्ग के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आकार के मामले में भारत ब्रिटेन को पछाड़कर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) द्वारा जारी आंकड़ों और मार्च तिमाही के अंत में डालर के विनिमय दर के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 854.7 अरब डालर था। इसी अवधि में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था का आकार 816 अरब डालर था। विशेषज्ञों के मुताबिक आने वाले समय में भारत ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के मुकाबले अपनी बढ़त को और मजबूत करेगा, क्योंकि ब्रिटेन राजनीतिक अस्थिरता और कोरोना के बाद मंदी का सामना कर रहा, वहीं भारत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है।

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दो अंकों में रही वृद्धि दर

चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही अप्रैल से जून के दौरान भारत की जीडीपी में 13.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जो पिछले एक साल में सबसे अधिक है। इस तिमाही में यह वृद्धि दर हासिल करने वाला भारत दुनिया का इकलौता देश है। हालांकि यह वृद्धि दर दो अंकों में अवश्य है, लेकिन आरबीआइ और अन्य एजेंसियों के अनुमानों से कम है। मालूम हो कि आरबीआइ ने पहली तिमाही में वृद्धि दर 16.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था, जबकि एसबीआइ ने 15.7 प्रतिशत का। ऐसे में कह सकते हैं कि इस वित्त वर्ष के बाकी हिस्से में अब इससे अधिक वृद्धि दर रहने की गुंजाइश नहीं है।

आरबीआइ की मानें तो चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में जीडीपी वृद्धि का आंकड़ा घटकर चार प्रतिशत रह जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो पूरे वर्ष के दौरान जीडीपी वृद्धि दर चार प्रतिशत से अधिक रहने की आशा नहीं की जा सकती है। फिर तो आरबीआइ द्वारा अनुमानित 7.2 प्रतिशत का स्तर दूर ही रह जाएगा। यही कारण है कि वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने चालू वित्त वर्ष में अब हमारी जीडीपी की वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 7.7 प्रतिशत कर दिया है। सिटी ग्रुप ने भी वित्त वर्ष 2022-23 के लिए अपना अनुमान पहले के आठ प्रतिशत से घटाकर 6.7 प्रतिशत कर लिया है। एसबीआइ ने भी वृद्धि दर का अनुमान 7.8 से घटाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया है।

सात प्रतिशत वृद्धि दर की संभावना

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबराय ने कहा है कि अगर भारत की जीडीपी अगले 25 वर्ष तक लगातार सात से 7.5 प्रतिशत की दर से भी बढ़ती है तो 2047 तक भारत उच्च मध्य आय वाला देश बन जाएगा। अगर ऐसा होता है तो 2047 में भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 20 लाख करोड़ डालर और इसकी प्रति व्यक्ति जीडीपी करीब 10 हजार डालर होगी। वैसे तो यह लक्ष्य बहुत बड़ा नजर नहीं आता, लेकिन इसे 25 वर्षों तक बरकरार रखना कठिन जरूर है। वित्त वर्ष 1997-98 से 2021-22 तक भारत की औसत सालाना जीडीपी वृद्धि दर छह प्रतिशत रही। देश की जीडीपी वृद्धि दर लगातार पांच साल तक सात प्रतिशत या इससे ऊपर सिर्फ 30 वर्षों में एक बार हुई है। वह है वित्त वर्ष 2003-04 से लेकर वित्त वर्ष 2008-09 तक।

वित्त वर्ष 2016-17 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 9.2 प्रतिशत थी, लेकिन संपूर्ण वित्त वर्ष में यह गिरकर 8.2 प्रतिशत हो गई। वित्त वर्ष 2017-18 में जीडीपी वृद्धि दर और घटकर 7.2 प्रतिशत रह गई। वित्त वर्ष 2018-19 में भी जीडीपी वृद्धि दर गिरकर 6.8 प्रतिशत रह गई। वहीं वित्त वर्ष 2019-20 की आखिरी तिमाही में वृद्धि दर गिरकर 3.2 प्रतिशत रह गई। इस तरह कोरोना काल के पूर्व ही देश की जीडीपी की वृद्धि दर 9.2 प्रतिशत से गिरकर 3.2 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। इस आधार पर अगले पांच वर्षों की अवधि में भी देश की जीडीपी वृद्धि दर औसतन सात प्रतिशत से कम ही रहने का अनुमान है।

लक्ष्य से ज्यादा प्रत्यक्ष कर संग्रह

केंद्र सरकार को इस वित्त वर्ष में 31 अगस्त तक प्रत्यक्ष कर के मद में 4.8 लाख करोड़ रुपये मिल चुके हैं, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के 3.6 लाख करोड़ रुपये से 33 प्रतिशत अधिक है। अनुमान है कि वित्त वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा 14.20 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा, जो कि बजट लक्ष्य से कहीं अधिक होगा। इस वित्त वर्ष में अब तक कारपोरेट कर संग्रह भी पिछले वर्ष की समान अवधि से 25 प्रतिशत बढ़ा है। जीएसटी संग्रह भी लगातार छठे महीने 1.4 लाख करोड़ से ऊपर बना रहा। हालांकि जुलाई की तुलना में अगस्त में जीएसटी संग्रह कम रहा, जबकि जुलाई से पहले पैकेटबंद खाद्य वस्तुओं पर जीएसटी लगाया गया था।

रिकार्ड बनाने की ओर चालू खाता घाटा

वित्त वर्ष 2022-23 में भारत का चालू खाता घाटा नौ साल के उच्च स्तर पर पहुंच सकता है, क्योंकि हाल के महीनों में आयात की तुलना में निर्यात बहुत सुस्त रफ्तार से बढ़ा है। ज्यादातर विकसित देशों में मंदी के डर से वैश्विक मांग कमजोर पड़ी है। इससे अगस्त में देश का निर्यात 1.15 प्रतिशत घटकर 33 अरब डालर रह गया। इसके साथ ही आयात में तेज वृद्धि हुई है। फलतः व्यापार घाटा दोगुने से भी अधिक बढ़कर 28.68 अरब डालर हो गया है। ऐसे में सरकार को निर्यात वृद्धि के मोर्चे पर और भी ऊर्जा लगाने की जरूरत है। प्रति व्यक्ति जीडीपी में वृद्धि की जरूरत : ऐसे में विकसित भारत बनने के लिए प्रति व्यक्ति जीडीपी में वृद्धि की सख्त जरूरत है।

बिबेक देबराय के अनुसार अगले 25 वर्षों तक लगातार सात प्रतिशत वृद्धि दर रहने पर ही 2047 में भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 10 हजार डालर प्रति वर्ष होगी। ब्रिटेन की प्रति व्यक्ति जीडीपी अभी भी 47 हजार डालर प्रति वर्ष से ऊपर है, जबकि भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 2,500 डालर ही है। इसकी एक वजह हमारी आबादी का ब्रिटेन के मुकाबले करीब बीस गुना अधिक होना भी है। प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में अभी 205 देशों में भारत की रैंकिंग 158 है।

भारत अपनी अर्थव्यवस्था में आवश्यक सुधार कर इस सूची में ऊपर आ सकता है। एक समय अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी की अर्थव्यवस्था भी आज के भारत की अर्थव्यवस्था के आकार के बराबर थी, लेकिन उन्होंने समय के साथ आवश्यक सुधार किए और विकसित देश बने। आज जापान दुनिया में उच्चतम गुणवत्ता की उपभोक्ता वस्तुएं बनाने वाले देशों में शुमार है। उसके पास टोयोटा, सोनी, होंडा, पैनासोनिक, मित्सुबिशी जैसी नामी औद्योगिक कंपनियां हैं। इसी तरह दक्षिण कोरिया ने भी दिग्गज हुंडई, सैमसंग और एलजी जैसे उपभोक्ता ब्रांड स्थापित किए हैं। चीन ने एक दूसरा रास्ता चुना। उसने स्वयं को मैन्युफैक्चरिंग हब बना दिया। लागत और दक्षता लाभ के चलते तमाम कंपनियों ने अपनी उत्पादन इकाइयों को चीन में स्थापित कर दिया। भारत को भी इसी तरह की सफलता को दोहराने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था की शक्तियों को पहचानना होगा और कमियों को दुरुस्त करना होगा। भारत में भी चीन की तरह सस्ता श्रम एवं अन्य औद्योगिक सुविधाएं उपलब्ध हैं।

[आर्थिक मामलों के जानकार]


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