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Union Budget 2019: बजट नहीं, बहीखाता पेश कर रही हैं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण; जानें इन दोनों शब्दों के मायने

Union Budget 2019 देश की पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का संसद में अभिभाषण शुरू हो चुका है। दोबारा सत्ता में आयी मोदी सरकार के बजट से लोगों को बहुत उम्मीद है।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 05 Jul 2019 10:40 AM (IST)Updated: Fri, 05 Jul 2019 11:03 AM (IST)
Union Budget 2019: बजट नहीं, बहीखाता पेश कर रही हैं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण; जानें इन दोनों शब्दों के मायने
Union Budget 2019: बजट नहीं, बहीखाता पेश कर रही हैं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण; जानें इन दोनों शब्दों के मायने

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ‘मोदी है तो संभव है’, केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार-2 (Modi Sarkar 2) में भी इस लाइन को सही साबित कर दिया। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वह देश की पहली पूर्ण कालिक महिला रक्षामंत्री बनीं थी। मोदी सरकार-2 में वह देश की पहली महिला वित्तमंत्री बनीं और पहले ही बजट में उन्होंने अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही परंपरा को तोड़ दिया है।

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट को लेकर अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही एक परंपरा को तोड़ दिया है। जब-जब भी वित्त मंत्री बजट पेश करने आते हैं तो उनके ब्रीफकेस पर सबकी नजर होती है। निर्मला सीतारमण देश की पहली महिला वित्त मंत्री हैं और ब्रीफकेस वाली इस परंपरा को तोड़ दिया है। वह लाल रंग की मखमली कवर वाली फाइल में बजट लेकर संसद पहुंचीं हैं। उनका लाल रंग का मखमली कवर वाला बजट कैमरों के सामने आते ही वायरल हो गया।

पारंपरिक बजट ब्रीफकेस की जगह बहीखाते के इस्तेमाल को अंग्रेजों के द्वारा थोपी गई पश्चिमी दासता को खत्म करने के तौर पर भी देखा जा रहा है। वैसे बता दें कि बजट शब्द फ्रेंच शब्द बोगेट से आया है, जिसका मतलब ही ब्रीफकेस होता है। जबकि, बहीखाते का अंग्रेजी में सीधा अर्थ स्टेटमेंट ऑफ अकाउंट होता है। वैसे भी भारत में जो बजट पेश किया जाता है उसमें सरकार अपने अकाउंट को ही जनता के सामने रखती है। बहीखाते के ऊपर लगा अशोक स्तंभ इस बात की तरफ इशारा करता दिख रहा है कि अब बजट से पश्चिमी सोच को पूरी तरह से बाहर कर दिया गया है।

आजादी के बाद पहले वित्त मंत्री आरके शंकमुखम चेट्टी बजट पेश करने के लिए ब्रीफकेस लेकर संसद पहुंचे थे। उनके बाद 1958 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी इसी परंपरा को आगे बढ़ाया। फिर इस परंपरा को यशवंत राव चव्हाण, मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी और अरुण जेटली ने भी आगे बढ़ाया। हालांकि, कृष्णामचारी और मोरारजी देसाई बजट ब्रीफकेस लेकर संसद नहीं पहुंचे, बल्कि वे अपने साथ फाइल लेकर आए थे।


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